जम्मू-कश्मीर हवाई अड्डा परिसर में एयरबेस पर ड्रोन से हुआ आतंकी हमला प्रमाण है कि दुश्मन देश नहीं चाहता कि भारत में शांति स्थापित रहे, आम-जनता अमन चैन से रहे, लोक बन्दूक से सन्दूक तक आये। सवाल उठता है कि इस प्रकार के आतंकवाद से कैसे निपटा जाए। कारबम, ट्रकबम, मानवब और अब ड्रोन से हमला- इन हिंसक एवं अशांत करने वाले षडयंत्रों को कौन मदद दे रहा है? राष्ट्र की सीमा पर इन आतंकवादी घटनाओं को कौन प्रश्रय दे रहा है? एक हाथ में समझौता और दूसरे हाथ में आतंकवाद-यह कैसे संभव है? जैसे ही प्रांत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के शुरुआत की आहट हुई, वैसे ही यह आतंकी हमला सामने आया है। पाकिस्तान नहीं चाहता कि जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक सरकार बने।
पाकिस्तान की मंशा को कमतर कभी नहीं समझना चाहिए। दुश्मन राष्ट्र कभी नहीं चाहते कि किसी किस्म का भारत-पाकिस्तान के बीच समझौता हो और अमन-चैन कायम हो। पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को हर वक्त सामने रखता है, ऐसा करते हुए वह यह चाहता है कि किसी तरीके से भारत में गड़बड़ी पैदा करे, उपद्रव बढ़ाए, अशांत एवं आतंकवादी वातावरण बनाये। चाहे सांप्रदायिक उपद्रव हो या आतंकी उपद्रव, वह तरीके खोजता रहता है कि भारत में और विशेषतः जम्मू-कश्मीर में हलचल मची रहे। भारत अस्थिर हो। यही उनका मुख्य मकसद है। केन्द्र सरकार इस दृष्टि से सावधान है, लेकिन सावधानी एवं सर्तकता के बावजूद खतरा बना रहता है। पाकिस्तान की वर्तमान सरकार नाकाम है, वहां आम-जनता त्रस्त है, परेशान है, त्राहि-त्राहि मची हुई। अपनी इन असफलताओं से जनता का ध्यान हटाने के लिये वह ऐसे हमले करके अपने पक्ष में वातावरण बनाना चाहता है। इन हमलों के लिये चीन का दबाव भी बराबर बना हुआ है। चीन यह चाहता है कि भारत पर दबाव बना रहे। चीन को पता है कि उसे टक्कर देने वाला एकमात्र भारत ही है,
अतः वह भारत को आतंकवाद व अशांति में उलझाए रखना चाहता है। इसलिये चीन पाकिस्तान को हर संभव सहायता देता है, नयी तकनीक एवं नये हथियार देकर वह उसे भारत पर हमले करने के लिये उकसाता रहता है। जैसे शांति, प्रेम, अहिंसा खुद नहीं चलते, चलाना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार आतंकवाद भी दूसरों के पैरों से चलता है। जिस दिन उससे पैर ले लिए जाएँगे, वह पंगु हो पाएगा। इसलिये पाकिस्तान को पंगु करना आतंकवाद को समाप्त करने का प्रथम पायदान है।
गौरतलब है कि ड्रोन से आतंकी हमले के ताजा घटनाक्रम में सैन्य या अन्य संवेदनशील प्रतिष्ठानों की ऊंची दीवारें, कंटीले तार और सेना की चैकियां अब आंतकी हमलों को रोकने के लिए नाकाफी है। एक सुरक्षित दूरी से दुश्मन हमला कर सकता है। ऐसे ड्रोन होते हैं जो 20 किलोमीटर तक उड़ान भर सकते हैं और साथ ही कुछ किलोग्राम के भार भी अपने साथ लेकर उड़ सकते हैं। आतंकवाद निर्यात भी किया जाता है और आयात भी किया जाता है जिसको अंग्रेजी में ‘स्मगलिंग’ कहते हैं। अब ड्रोन इस स्मगलिंग का माध्यम बन रहा है, जिससे नशीले पदार्थों, हथियारों, नकली नोटों और खतरनाक कैमिकल्स को इधर से उधर किया जाता है। जिसने कितने ही सशक्त सरकारी तंत्रों के सिर पर पिस्तौल तानी हुई है।
यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पिछले दो सालों से पाकिस्तान एके-47 एसॉल्ट राइफल, गोला बारूद और ड्रग भारत भेजने के लिए यूएवी का इस्तेमाल कर रहा है। विशेष तौर पर पंजाब और जम्मू बॉर्डर पर ऐसा किया जा रहा है। अतीत में कई ड्रोन देखे गए हैं और इन्हें निष्क्रिय भी किया गया है और हथियार भी बरामद हुए हैं। ड्रोन देशविरोधी गतिविधियों के लिए इसलिए भी सुरक्षित है, क्योंकि रडार कुछ सैन्य ड्रोन का पता लगा सकते हैं, लेकिन छोटे क्वाडकॉप्टर का नहीं। ऐसे में सुरक्षाबलों के लिए यह कड़ी चुनौती है।
इस बार ड्रोन से हमला पाकिस्तान का एक प्रयोग ही था, जिससे वह हमारी सुरक्षा एवं सर्तकता को जांचना चाहता था। यही कारण है कि इस हमले से ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। यह सच्चाई है, दोनों ड्रोन हमले या विस्फोट के बाद वापस चले गए हैं, इससे पता चलता है कि हमारा एंटी ड्रोन सिस्टम कामयाब नहीं हुआ। यदि हमारा कोई सिस्टम है, तो वह बड़े ड्रोन के लिए बना है और छोटे ड्रोन के लिए हम सुरक्षा तंत्र अभी तक विकसित नहीं कर पाए हैं, इस पर हमें मुस्तैदी से ध्यान देना पड़ेगा। हमें सोचना पड़ेगा कि पाकिस्तान को इसका जवाब कैसे दिया जाए। हमारी सरकार, प्रशासन और सुरक्षा बलों को आगे की राह सोचनी चाहिए।
पाकिस्तान में ड्रोन का सर्वाधिक इस्तेमाल होता रहा है। ड्रोन का इस्तेमाल 2011 से लेकर 2020 तक अमेरिकी सेना ने भी खूब किया है और अमेरिका ड्रोन के लिए पाकिस्तान की हवाई पट्टी का इस्तेमाल करता था। अनुमान यह है कि पांच से सात हजार लोग ड्रोन हमलों में मारे गए। अमेरिका कहता है कि मारे जाने वालों में 80 से 90 प्रतिशत आतंकवादी थे, लेकिन दूसरे संगठनों ने हिसाब लगाया है कि वास्तव में बड़ी संख्या में नागरिक मारे गए हैं, जिनमें बच्चे और औरतें शामिल हैं। हैरानी की बात है कि सार्वजनिक रूप से ड्रोन के इस्तेमाल का खंडन किया जाता रहा है। गौर करने की बात है, भारत एवं पाकिस्तान दोनों देशों के बीच फरवरी में समझौता हुआ है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा पर कोई फायरिंग नहीं होगी। दोनों देशों के बीच एलओसी साढ़े सात सौ किलोमीटर लंबी है और यहां अभी तक शांति रही है। लेकिन अब फिर पाकिस्तान ने समझौता का उल्लंघन किया है। ऐसी स्थिति में रोषभरी टिप्पणियों व प्रस्तावों से पाकिस्तानी हरकतों एवं आतंकवाद से लड़ा नहीं जा सकता। आतंकवाद से लड़ना है तो दृढ़ इच्छा-शक्ति चाहिए। नरेन्द्र मोदी सरकार ने अब तक जिस तरह ईमानदारी से ठान रखा था तो आतंकवाद पर काबू पाया जाता रहा है। अब और अधिक सख्ती से आतंकवाद के खिलाफ लड़ना होगा और पाकिस्तान को करारा जबाव देना होगा। हम जानते हैं कि बालाकोट का गंभीर असर पड़ा था। क्या हमें एक और बालाकोट करना चाहिए? हमें पाकिस्तान पर सीमित हमला कर ड्रोन के हमले का जबाव तो देना ही चाहिए।
केन्द्र सरकार की सख्ती को देखते हुए पाकिस्तान का भारत में घुसपैठ करना या आतंकवादी हमला करना अब आसान नहीं रहा। इसलिए यह नया तरीका उसने इस्तेमाल किया है। अगस्त 2020 में चेतावनी मिल गई थी कि हमला हो सकता है। ड्रोन से हमले के बारे में पहले से ही पता था। स्पष्ट है, पाकिस्तान ने हमले का एक नया ही क्षेत्र खोल एवं तरीका इजाद किया है। वे अभी तक ड्रोन के जरिए हथियार, मादक द्रव्य और नकली नोट फेंकते थे, लेकिन अब इन्होंने जैसे हमला किया है, हमें भी जवाब देने के नए तरीके खोजने पड़ेंगे। पाकिस्तान को समय रहते करारा जबाव नहीं दिया गया तो उसके हौसलें बुलन्द हो जायेंगे। हालांकि इस घटना ने सुरक्षा बलों को सुरक्षा को लेकर अपनी तैयारियों को नए सिरे से बनाने का अवसर जरूर दे दिया है।