01-01-2021
2020 निस्संदेह चीन की पोल खोलने वाले वर्ष के रूप में सिद्ध हुआ है। चीन ने जरूरत से ज्यादा दुश्मनी इस साल अपनी बकवास कूटनीति के बल पर मोल ले ली है, और ऐसे में अब अगला वर्ष रूठे हुए को मनाने में बीतने वाला है, योंकि चीन ज्यादा दिन तक दुनिया से अलग थलग नहीं रह पाएगा।
चीन ने एक नहीं, अनेक मोर्चों पर कई देशों से दुश्मनी मोल लेने की भूल की। उसे लगा कि वुहान वायरस से जूझ रही दुनिया पर अपनी मर्जी थोपना बच्चों का खेल होगा। परंतु हुआ ठीक उल्टा। अमेरिका तो अमेरिका, अब ताइवान और नेपाल से छोटे-छोटे देश भी चीन को ठेंगा दिखाने लगे हैं। अभी हमने अफ्रीकी महाद्वीप की बात भी नहीं की है।
इसक अलावा जिस प्रकार से चीन ने बिना सोचे समझे भारत और जापान के क्षेत्रीय अखंडता को ललकारा, उससे उसने इंडो पैसिफिक क्षेत्र में अपने ही शामत को निमंत्रण दिया। भारत और जापान दोनों ही क्त्रष्ठ समूह के सक्रिय सदस्य है, जिसमें चीन के धुर विरोधी देश अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल है। अभी एक माह पहले ही इस समूह के अंतर्गत मालाबार नौसेना युद्ध अयास आयोजित कराया गया, जिसका संदेश स्पष्ट था – चीन इंडो पैसिफिक में अपने विस्तारवाद के बारे में सोचे भी नहीं, वरना अंजाम बहुत बुरा होगा।
इसीलिए चीन ने अब अपने ‘विरोधियोंÓ को मनाना शुरू कर दिया है। लेकिन ये प्रक्रिया कोई नई बात नहीं है, बल्कि इसकी शुरुआत तो सितंबर से ही हो चुकी थी। अभी चीन ने हाल ही में ्रस्श्व्रहृ के साथ दक्षिण चीन सागर के परिप्रेक्ष्य में कोड ऑफ कंडट पर हस्ताक्षर किया है।
ASEAN pulls a fast one over इसके अलावा चाइना ने कई तरीकों से जापान को मनाने का भी प्रयास किया, ताकि चीन और जापान के बीच संवाद फिर से स्थापित हो और शी जिनपिंग जापान का दौरा करें। लेकिन जापान का रुख स्पष्ट है – पहले चीन सेंकाकू द्वीप पर अपना दावा छोड़ें, फिर सोचेंगे।
भारत के परिप्रेक्ष्य में चाइना की हालत तो और भी खराब है। रणनीतिक हो या फिर आर्थिक मोर्चा, भारत ने हर क्षेत्र में चाइना की नानी याद दिला दी है। स्थिति तो यह हो चुकी है कि दुनिया भर को चावल एसपोर्ट करने वाले चीन को भारत से चावल इपोर्ट करना पड़ रहा है। इसके अलावा पूर्वी लद्दाख में जिस प्रकार से भारत ने मोर्चाबंदी कर रखी है, उससे चीन के कथित पराक्रम की धज्जियां उड़ा दी गई है –
इतना ही नहीं, चाइना की वुल्फ़ वॉरियर कूटनीति भी किसी काम न आई। अटूबर में विदेश मंत्री वांग यी यूरोप के दौरे पर इसलिए गए थे ताकि यूरोपीय देशों को अपने पाले में कर सके, लेकिन उनके तौर तरीके ने उलटे यूरोप में उन्ही के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी। अभी भले ही यूरोपीय संघ और चीन के बीच एक बड़ी निवेश डील पक्की हुई हो, लेकिन ये संबंध श्व के अध्यक्ष एंजेला मर्कल के छोडऩे के बाद भी बने रहेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसी भांति अमेरिका में जो बाइडन के आने से चाइना ने रूस से भी नजदीकी बढ़ाने का प्रयास किया है, लेकिन पुतिन चीन की चिकनी चुपड़ी बातों में शायद ही फंसना चाहेंगे।
2021 वो वर्ष है जब चाइना की अकड़ पूरी तरह मिट्टी में मिल जाएगी और वह हर देश से अपने संबंध पहले जैसे करने की भीख माँगता फिरेगा। लेकिन चूंकि उसकी औपनिवेशिक मानसिकता नहीं बदल सकती, इसलिए चाइना की इस नई नीति के झांसे में ज्यादा देशों या गुटों के फँसने की संभावना न के बराबर है।
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