छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह क्या लगातार चौथी बार जीत का रिकार्ड बना पाएंगे? क्या 15 साल के शासन के बाद सत्ता विरोधी लहर नहीं है? क्या पार्टी का कैडर संतुष्ट है? इन सवालों के जवाब बीजेपी आलाकमान हर राज्य में तलाश रहा है, लेकिन कम से कम छत्तीसगढ़ में अब तक संगठन के दम पर ही सत्ता पर काबिज पार्टी को भरोसा है कि बहुमत मिल ही जाएगा. भरोसे का कारण भी है. सरकार से नाराजगी तो पार्टी के काडर में थी. बीजेपी आलाकमान को पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के गुस्से की जानकारी महीनों पहले से थी. उनकी इस नाराजगी को दूर करने के लिए मेहनत 6 महीने पहले से ही शुरू हो चुकी है. बीजेपी के राष्ट्रीय सह-संगठन महासचिव सौदान सिंह को इस गुस्से को शांत करने में लगाया गया है.
सौदान सिंह छत्तीसगढ़ की जमीनी राजनीति का हर मर्ज जानते हैं. इस नुस्खे ने रंग जमाना भी शुरू कर दिया है. कार्यकर्ताओं को थामने के लिए सौदान सिंह ने 6 महीने पहले ही राज्य का सघन दौरा शुरु कर दिया था. बूथ से लेकर ब्लॉक स्तर तक के कार्यकर्ताओं की छोटी बड़ी बैठकें की. हर बैठक लगभग 3 से 8 घंटे तक चली. हर बैठक में कमोबेश अपनी ही सरकार से नाराजगी सामने आयी. सबकी शिकायतों को नोट किया गया.
हर बैठक के अंत में उन्होंने कार्यकर्ताओं को बस यही कहा कि आपका गुस्सा जायज है तो हम घर बैठ जाते हैं और सरकार हार जाएगी. तब कार्यकर्ता कहते थे कि नहीं सरकार तो बनानी है. यानी मान जाते थे कि चुनाव जीतना है. सूत्रों की माने तो सौदान सिंह ने बस्तर जैसे नक्सली क्षेत्र के 22000 बूथों तक के कार्यकर्ताओं के पास जाकर सीधी बातचीत की है. अब संगठन तो दुरुस्त कर लिया और कार्यकर्ताओं को भी मना लिया लेकिन रमन सिंह सरकार के पंद्रह साल के कामकाज पर कैसे वोट लाएंगे? सरकार का दावा है कि उनका काम दूसरे राज्यों से कई बेहतर रहा है. मसलन नक्सली समस्या. सरकार का दावा है कि उनकी कड़ाई ने नक्सलियों को सिर्फ तीन जगहों पर समेट दिया गया है. नक्सली सिर्फ बस्तर, राजनंदगांव और महाराष्ट्र की सीमा तक सिमट गए हैं जिनके खिलाफ अभियान में कोई नरमी नहीं आने वाली है.
बोनस मिल, अपना परचम, 1 रुपये किलो चावल , चप्पल, जूते मुफ्त, तेंदू पत्ते जमा करने
इसके साथ ही गरीबों के लिए 1 रुपये किलो चावल और 3 रुपये किलो चना, 25 पैसे प्रति किलो नमक, चप्पल, जूते मुफ्त, तेंदू पत्ते जमा करने वाले आदिवासियों के लिए राम बाण हैं. रमन सिंह सरकार का दावा है कि छत्तीसगढ़ में किसान सबसे ज्यादा सुखी हैं, क्योंकि किसानों को न सिर्फ बोनस मिल रहा है बल्कि जिस दिन फसल बेची उसी दिन पैसा खाते में पहुंच जाता है. 29 सितंबर को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह रायपुर में होंगे जहां एक विशाल शक्ति केन्द्र यानि बूथ स्तर का सम्मेलन बुलाया गया है, ताकि चुनावों की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा सके. इस बैठक में तमाम सांसद और विधायक भी हिस्सा लेंगे. अमित शाह पांच सितम्बर को भी रायपुर जाएंगे. यहां पर विकास यात्रा को हरी झंडी दिखाएंगे.
अब बात राज्य के जातीय समीकरण की. छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति के 11-12 फीसदी, अनुसूचित जनजाति के 26 फीसदी, फारवर्ड 4-5 फीसदी और ओबीसी 50-55 फीसदी है. इनमें से ज्यादातर कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक रहे हैं. अब भी चुनावी प्रचार के दौरान कई इलाको में इंदिरा गांधी की तस्वीर का इस्तेमाल कांग्रेस करती रही है.
पिछले कुछ चुनावों की तरह इस बार भी अजित जोगी अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे और कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी करेंगे. अंत में तय है कि जीत हासिल करने के लिए संगठन को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा. इसलिए छत्तीसगढ़ मे हाई कमान सतर्क जरुर है लेकिन चिंतित नहीं.
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