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हाथियों व नाना प्रकार के पशु-पक्षियों के लिए विश्वविख्यात दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी के जंगलों में सैकड़ों प्रकार की दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भंडार हैे। इसकी जानकारी मिलने के बाद दलमा के डीएफओ डा. अभिषेक कुमार ने जड़ी-बूटियों को संरक्षित करने का प्लान बनाया है। डीएफओ ने बताया कि औषधीय पौधों में अर्जुन, काला शीशम, कालमेघ, अमलताश, बीजासाल,इमली, गुलर, पीपल, बरगद, चिरायता, आंवला, हर्रे, बहेरा जैसे लुप्त प्राय पौधे पाए गए हैं। काला शीशम को तो इंडियन फारेस्ट एक्ट-1972 के तहत संरक्षित घोषित किया गया है, जिसमें इसका व्यापार करना गैरकानूनी है। दलमा में पाए जाने वाले प्रमुख औषधीय पौधों व उसके उपयोग पर अब तक वन विभाग ने कोई निर्णय नहीं लिया है।
काला शीशम – काला शीशम का हर भाग का उपयोग किसी न किसी बीमारी के लिए लाभदायक है। इससे पेट दर्द, मोटापा, अपच की दवा बनती है। पेशाब करते समय परेशानी होने पर शीशम के पत्ते का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होता है। हैजा में शीशम की गोलियां खाने से फायदा होता है। आंख दर्द में शीशम के पत्ते का रस और शहद मिलाकर डालने से दर्द गायब हो जाता है। हर तरह के बुखार, जोड़ों का दर्द, गठिया, रक्त विकार, कफ, पेचिश, घाव के अलावा कुष्ठ जैसी बीमारी में काला शीशम रामबाण है।
मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए कालमेघ का जैसा नाम है वैसा काम है। इसका प्रयोग सामान्य बुखार व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने, पेट की गैस, कीड़े, कब्ज, लीवर की समस्याओं का इलाज में किया जाता है। इसका उपयोग जलन, सूजन को कम करने, लीवर की सुरक्षा देने में किया जाता है।
दलमा में बहुतायत पाया जाता है। यह एक औषधीय पेड़ है। इसका छाल का प्रयोग औषधीय रुप में किया जाता है। इसका उपयोग हृदय रोग, पेट की गैस, पेचिस, डायबिटीज कंट्रोल, हड्डी को जोड़ने में अर्जुन छाल का उपयोग किया जाता है।
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