छत्तीसगढ़ प्रदेश में पहली बार आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव ने एक ओर जहां जनजातीय समुदाय की विलुप्त होती पारंपरिक नृत्य शैलियों, वाद्ययंत्रों और पहनावे को जीवंत कर सबके सामने प्रतियोगिता के रूप में लाने का अवसर दिया। वहीं दूसरी ओर उन आदिवासी कलाकारों को प्रोत्साहन और पहचान भी मिला जो अपने हुनर को दिखाने के लिए मंच तलाश रहे थे। राज्य में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार बनने के बाद वर्ष 2019 के नवंबर से दिसंबर माह में विकासखंड से लेकर राज्य स्तर पर राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के तहत प्रतियोगिताएं आयोजित की गई। इन प्रतियोगिताओं में शामिल होने जनजातीय कलाकारों के लिए कोई आयु सीमा तय नहीं की गई। इसके पीछे यह मंशा रही कि सभी को आयु सीमा से मुक्त होकर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिल सके। यह पूरी प्रतियोगिता चार थीम पर आधारित रही। इसमें विवाह, फसल कटाई, पारम्परिक त्यौहार तथा अन्य ओपन कैटेगिरी के विषय शामिल थे।
धमतरी जिले में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव को लेकर जनजातीय समुदाय में अच्छी-खासी दिलचस्पी देखने को मिली। यहां ब्लॉक से लेकर राज्य स्तर पर आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। पारम्परिक और विलुप्त होती नृत्य शैलियों, वाद्ययंत्रों को देखने-सुनने में ग्रामीणों में विशेष रूप से रुचि रही। महोत्सव के आगाज से ही इसका बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार किया गया। नतीजन जिले के लगभग 500 प्रतिभागियों ने इस नृत्य महोत्सव में हिस्सा लिया।
इसमें से एक दल ’जय गढ़िया बाबा आदिवासी लोक नर्तक दल सरईटोला’ को राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला। इस दल ने ’फसल कटाई के समय किए जाने वाले नृत्य’ के जरिए जनजातीय संस्कृति की छटा को मंच से बिखेरा।
राज्य में पहली बार आयोजित इस राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में देश के अन्य जनजातीय बाहुल्य राज्यों के प्रतिभागियों ने भी शिरकत की। इसमें मुख्यतः मध्यप्रदेश, ओड़िसा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, राजस्थान, झारखंड, गुजरात, और पूर्वोत्तर राज्यों के जनजातीय समुदाय ने हिस्सा लिया। इस राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के जरिए वनवासियों की सांस्कृतिक धरोहर, नृत्य शैली, पारम्परिक वेशभूषा, सामाजिक गुण और व्यवस्था को देखने, समझने और युवाओं को इससे जुड़ने का अच्छा मौका मिला। देखा जाए तो यह अपने आप में अनूठा प्रयास रहा, जिसने आदिवासी हुनर को मंच, पहचान, नाम के साथ-साथ सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखने की चाह को एक नया आयाम दिया।
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