20 oct 2020
आज का समाचार है भारतीय व्यापारियों ने चीन को दी 40 हजार करोड़ की चोट, दिवाली के लिए नहीं खऱीदे चाइनीज सामान। अभी हाल ही में प्रसिद्ध पत्रकार करण थापर को दिये गये एक साक्षात्कार में फारूख अब्दुल्ला ने कहा था कि कश्मीरी भारतीय महसूस नहीं करते चीनी शासन पसंद करते हैं। इसी प्रकार से जबसे 2008 में चाइना की कम्युनिस्ट पार्टी अर्थात वहां की सरकार के साथ राहुल गाँधी ने कांग्रेस की ओर से रूश पर हस्ताक्षर किये हैं तब से चीनी भक्त नजर आने लगे हैं। घटनाक्रम बता रहे हैं कि चीन की मदद से आर्टिकल 370 को छ्व&्य में पुन: लागू कराने के कांग्रेस और फारूख अब्दुल्ला हसीन सपने देख रहे हैं। अर्थात दोनों ही मोदी सरकार का घटनाक्रम बता रहे हैं कि करते करते चीन का पक्ष उसी प्रकार से ले रहे हैं जैसे नेहरुकाल में उनके रक्षा मंत्री कृष्णमेनन और कम्युनिस्ट पार्टियां 1962 युद्ध के समय भी चीन के पक्ष में वातावरण बनाने में लगे थे।
आपको बता दें कि कैट से जुड़े देशभर के सात करोड़ व्यापारियों ने रक्षाबंधन पर चीनी राखी का बहिष्कार कर दिया था, भारत की बनी राखी को सेल किया था, चीन की कायरता के बाद पूरे देश में गुस्सा है।
न्यूज़ नेशन के मुताबिक, नेहरू प्लेस में दिवाली पर बिकने वाले माल की कोई कमी नहीं है लेकिन ये माल चीन के नहीं बल्कि हिंदुस्तान के बने हुए हैं, आपको बता दें कि दिल्ली में मौजूद नेहरू प्लेस एशिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक मार्केट्स में से एक है. इस बार इस बाजार में चीनी सामान नदारद हैंऔर भारतीय सामानों का बोलबाला हैज् मोदी सरकार की नीति और भारतीयों के मजबूत इरादों ने मेक इन इंडिया को मेड इन चाइना पर हावी कर दिया है, इससे लोगों को रोजगार भी मिलेगा और चीन की आर्थिक तौर पर कमर भी टूटेगी।
यूएस-आधारित ब्रेइटबार्ट समाचार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विनिर्माण पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के एकाधिकार को खत्म करने के लिए वैश्विक लड़ाई के नेता के रूप में उभरे हैं, एक भूमिका अब ज्यादातर संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा खाली कर दी गई है।
मोदी चीन के लिए सबसे बड़े वैश्विक प्रतियोगी बन गए
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भारत ने चीन छोड़ कर अन्य जगहों पर विश्वसनीय कारखाने बनाने की इच्छुक अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धी सौदों की पेशकश करना शुरू कर दिया। एक हफ्ते बाद, ्रश्चश्चद्यद्ग ने घोषणा की कि वह अपने उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा चीन से चीन ले जाएगा।
पिछले हफ़्ते की घटना, भारतीय आउटलेटों से आगे निकल गए, जब भारतीय सैनिकों ने भारत और चीन के बीच एक पारस्परिक सीमा रेखा (वास्तविक) नियंत्रण रेखा (लद्दाख) के लद्दाख क्षेत्र में एक सीमा पाई, कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में एक तंबू बनाया। जिसे गैलवन घाटी के रूप में जाना जाता है, पीएलए के सैनिकों ने उक्त लाठी के साथ-साथ चट्टानों और अन्य अल्पविकसित हथियारों से हमला किया।
उस हमले में भारत के बीस सैनिक शहीद हुए थे। लेकिन इन शहीदों ने 50 चीनी सैनिकों और उनके एक कमांडर को भी मार दिया।
चीन निर्मित उत्पादों का बहिष्कार
भारतीय नागरिकों, मोदी के कई समर्थकों ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पुतले जलाए और एक ऑनलाइन “चुनौती” शुरू की, जहां प्रतिभागियों ने खुद चीन निर्मित उत्पादों को कचरे में फेंक दिया।
चीनी राज्य मीडिया ने स्पष्ट रूप से दावा किया है कि, अपने आर्थिक प्रभुत्व पूर्ण होने के साथ, चीन का बहिष्कार एक “आत्मघाती” मिशन है, लेकिन भारत बीजिंग को गलत साबित करने वाला दुनिया का पहला प्रमुख राष्ट्र बन गया है।
इस बीच, एक व्यापारी समूह, कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (हृष्ठ्र) ने भारत के कुछ अधिक व्यापारियों के लिए भारत में अधिक वस्तुओं का निर्माण करके चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने में मदद करने की वकालत की है।
सरकार ने अपनी आधिकारिक सरकार ई-मार्केटप्लेस पर बेचे जाने वाले उत्पादों पर “देश लेबल” अनिवार्य कर दिया है। कुछ मीडिया हाउसों ने आगे बताया कि भारत में बंदरगाहों पर न केवल चीनी सामान, बल्कि अमेरिकी कंपनियों जैसे चीनी निर्मित सामान भी उन्हें देश में प्रवेश करने से रोक रहे हैं।
गैल्वान वैली नरसंहार ने चीन के आर्थिक प्रभुत्व को पूरी तरह से चुनौती दी है कि कई अमेरिकियों ने 2016 में ट्रम्प के निर्वाचित होने पर मतदान किया था। “चीन पर बहिष्कार के लिए भारतीयों का समर्थन और बीजिंग के लिए एक साहसिक सरकार की प्रतिक्रिया अमेरिकी भावना को इंगित करती है।” क्चह्म्द्गद्बह्लड्ढड्डह्म्ह्ल हृद्ग2ह्य की रिपोर्ट।
नई दिल्ली द्वारा चीन के बहिष्कार के लिए उठाए गए ठोस कदम बताते हैं कि कम्युनिस्ट पार्टी को राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं से दूर करना कोरी कल्पना नहीं है। “
अप्रैल में प्रकाशित एक प्यू रिसर्च पोल ने अमेरिकी उत्तरदाताओं के बीच चीन के प्रति 62 प्रतिशत सहित एक रिकॉर्ड-उच्च प्रतिकूलता का उल्लेख किया है अर्थात 62त्न अमेरिकन चीन से नफरत करे लगे हैं। इसीलिए वहां डेमोक्रैट मोदी चीन के लिए सबसे बड़े वैश्विक प्रतियोगी बन गए।
रिपब्लिक दोनों के प्रेसिडेंटशिप के उम्मीदवार ष्द्धद्बठ्ठड्ड का विरोध करने में प्रतिष्पर्धा कर रहे हैं।
अमेरिका के ठीक विपरीत हमारे भारत में विपक्ष विशेष कर राहुल और फ़ारूक़ अबदुल्लाह अब भी पुरजोर चना और उसके प्रेजिडेंट के प्रवक्ता बन बैठे हैं।
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