Farrukhabad: तीन दशक पुराने दहेज हत्या मामले में आखिरकार अदालत का फैसला आ गया। 31 साल पहले पत्नी की हत्या कर शव नदी में फेंकने वाले आरोपी पति को 7 साल कठोर कारावास की सजा सुनाई गई है। इसके साथ ही अदालत ने 22 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया है। अगर जुर्माना नहीं भरा गया तो 2 महीने की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी। यह फैसला एडीजे पंचम रितिका त्यागी की अदालत ने सुनाया।
क्या था पूरा मामला?
जनपद आगरा के थाना जैतपुरा के गांव कोरथ निवासी रामदेव सिंह ने अपनी 20 वर्षीय बहन पूनम की शादी मोहम्मदाबाद थाना क्षेत्र के कुबेरपुर डूंगरसी गांव निवासी रमेश सिंह से की थी। शादी के कुछ ही समय बाद पति रमेश सिंह, चंदन व उसकी पत्नी मिथलेश सहित परिवार के अन्य सदस्य दहेज की मांग करने लगे। दहेज की मांग पूरी न होने पर पूनम को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा।
24 फरवरी 1994 को गांव वालों से खबर मिली कि पूनम की हत्या कर दी गई है। जब परिजन ससुराल पहुंचे तो पूनम का कोई पता नहीं चला। उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचना दी, लेकिन पुलिस ने कार्रवाई करने से इनकार कर दिया। बाद में 18 जुलाई 1994 को पुलिस अधीक्षक के आदेश पर मुकदमा दर्ज किया गया।
31 साल तक चला न्याय का संघर्ष
इस मामले की विवेचना के बाद चार आरोपियों के खिलाफ दहेज हत्या और शव छिपाने का चार्जशीट दायर की गई। हालांकि, सुनवाई के दौरान आरोपी चंदन और उसकी पत्नी मिथलेश की मौत हो गई। आखिरकार, लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद अदालत ने पति रमेश सिंह को दोषी करार दिया और 7 साल की कठोर कैद की सजा सुनाई।
भारत में दहेज हत्या के चौंकाने वाले आंकड़े
दहेज प्रथा भारत में एक गहरी सामाजिक समस्या है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हर साल 7,000 से अधिक महिलाओं की हत्या दहेज के कारण होती है।
- 2017 से 2021 के बीच भारत में 35,493 दहेज हत्या के मामले दर्ज किए गए।
- उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 11,874 मामले सामने आए।
- बिहार (5,354), मध्य प्रदेश (2,859), पश्चिम बंगाल (2,389), और राजस्थान (2,244) भी इस सूची में शामिल हैं।
दहेज हत्या के कुछ और चर्चित मामले
- इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला:
एक अन्य मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 29 साल पुराने दहेज हत्या केस में निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए फिर से मुकदमे की सुनवाई करने का आदेश दिया। - आजमगढ़ की घटना:
1994 में आजमगढ़ में शादी के दो साल बाद एक महिला संदिग्ध परिस्थितियों में जलकर मर गई। सुप्रीम कोर्ट ने पति की सजा बरकरार रखते हुए कहा कि पति उसी कमरे में था, लेकिन उसने कोई बचाव नहीं किया।
क्या कहता है भारतीय कानून?
दहेज प्रथा को रोकने के लिए भारत में कई सख्त कानून लागू हैं।
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961: दहेज लेना-देना अपराध है।
- IPC धारा 304B: दहेज हत्या के लिए 7 साल से आजीवन कारावास का प्रावधान है।
- IPC धारा 498A: पति और ससुराल पक्ष द्वारा क्रूरता करने पर 3 साल तक की सजा हो सकती है।
समाज की जिम्मेदारी
हालांकि कानूनी सख्ती के बावजूद दहेज हत्या के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। इसके लिए समाज को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है।
- लोगों को अपनी बेटियों को आत्मनिर्भर बनाना होगा ताकि वे दहेज प्रथा का शिकार न हों।
- शादी में दहेज को बढ़ावा देने वालों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए।
- लड़कियों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाने से ही इस कुप्रथा को खत्म किया जा सकता है।
निष्कर्ष नहीं, हकीकत!
यह मामला दिखाता है कि न्याय मिलने में भले ही देर हो, लेकिन सच छुपाया नहीं जा सकता। 31 साल बाद ही सही, पीड़िता को इंसाफ मिल गया। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक देश में महिलाएं दहेज की बलि चढ़ती रहेंगी?
क्या अब भी लोग बेटियों को सुरक्षित मान सकते हैं? क्या समाज जागेगा और इस बुराई को खत्म करेगा?
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