SikandraRao incident गत वर्ष दो जुलाई को भोले बाबा के सत्संग में हुई भगदड़ एक ऐसा हादसा है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलने वाले इस हादसे में 121 निर्दोष लोगों की मौत हुई और सैकड़ों लोग घायल हुए। यह हादसा सिर्फ भीड़ के कारण नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और कुप्रबंधन का जीता-जागता उदाहरण बन गया।
अनुमति 20 हजार, पहुंचे ढाई लाख श्रद्धालु
सत्संग के लिए महज 20 हजार लोगों की अनुमति दी गई थी। लेकिन आयोजन स्थल पर जबरदस्त प्रचार-प्रसार और प्रसिद्धि के कारण करीब ढाई लाख लोग पहुंच गए। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के इकट्ठा होने के बावजूद सुरक्षा और व्यवस्था के लिए केवल 69 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया। यह आंकड़ा खुद ही यह बताने के लिए पर्याप्त है कि किस हद तक लापरवाही बरती गई।
एलआईयू की चेतावनी की अनदेखी
घटना से पहले स्थानीय खुफिया इकाई (एलआईयू) ने स्पष्ट चेतावनी दी थी कि 50 हजार से अधिक लोगों की भीड़ जमा हो सकती है। इंस्पेक्टर सिकंदराराऊ ने भी 29 जून को पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर एक लाख से अधिक लोगों के जुटने की संभावना जताई थी और अतिरिक्त पुलिस बल की मांग की थी। बावजूद इसके, उच्च अधिकारियों ने इस रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया।
हादसे के दिन की भयावहता
हादसे वाले दिन सुबह से ही भीड़ का सैलाब उमड़ना शुरू हो गया था। आयोजन स्थल पर व्यवस्था बेहद कमजोर थी। न तो भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बैरिकेडिंग थी और न ही आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए कोई पुख्ता योजना। जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई, भगदड़ की स्थिति उत्पन्न हुई। जब स्थिति हाथ से बाहर हो गई, तब तक देर हो चुकी थी। 121 लोगों की मौत और कई घायल हो गए, लेकिन मदद पहुंचने में काफी समय लग गया।
हाईकोर्ट का कड़ा रुख
अब, इस घटना को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस के डीएम और एसपी को हलफनामे के साथ तलब किया है। अदालत ने पूछा है कि हादसे और बदइंतजामी के लिए उनकी जिम्मेदारी क्यों न तय की जाए। एसआईटी और न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में भी माना गया कि भीड़ को देखते हुए पर्याप्त इंतजाम नहीं किए गए थे।
पुलिस की जिम्मेदारी पर सवाल
पूर्व डीजीपी अरविंद कुमार जैन ने अमर उजाला से बातचीत में कहा था कि इतने बड़े आयोजन के लिए कम से कम 600-700 पुलिसकर्मियों की आवश्यकता थी। बावजूद इसके, प्रशासन ने सिर्फ 69 कर्मियों की तैनाती कर खुद को जिम्मेदारी से अलग कर लिया।
आयोजन की विफलता और सबक
यह हादसा धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा उपायों की अनदेखी का स्पष्ट प्रमाण है। ऐसे आयोजनों के लिए पुख्ता प्लानिंग, भीड़ प्रबंधन, और आपातकालीन सेवाओं का होना बेहद जरूरी है। इस घटना ने दिखाया कि भीड़ के सटीक अनुमान, उचित पुलिस बल, और सुरक्षा उपकरणों की कमी कितनी घातक साबित हो सकती है।
सरकार की कार्यवाही पर सवाल
हालांकि, इस घटना के बाद जांच समितियां गठित की गईं और दोषियों पर कार्यवाही का आश्वासन दिया गया। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इससे भविष्य में ऐसे हादसे रुकेंगे? हर साल देश में धार्मिक आयोजनों के दौरान भगदड़ की घटनाएं सामने आती हैं। क्या सरकार और प्रशासन इससे सबक लेकर बेहतर व्यवस्था सुनिश्चित करेंगे?
जनता को भी सतर्क रहने की जरूरत
इस हादसे ने यह भी दिखाया कि सिर्फ प्रशासन नहीं, बल्कि आम जनता को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है। ऐसी जगहों पर अनावश्यक भीड़ न बढ़ाना, व्यवस्था का पालन करना और किसी भी अफवाह से बचना बेहद जरूरी है।
निष्कर्ष नहीं, बल्कि बदलाव की मांग
सिकंदराराऊ की यह घटना हमें याद दिलाती है कि सुरक्षा और जागरूकता कितनी अहम हैं। हाईकोर्ट की इस मामले में सख्ती उम्मीद जगाती है कि दोषियों को सजा मिलेगी और भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।
मुख्य बिंदु:
- स्थान: सिकंदराराऊ, उत्तर प्रदेश
- तिथि: 2 जुलाई, पिछले वर्ष
- हादसा: भगदड़
- मृतक: 121
- अनुमति: 20,000
- भीड़: 2.5 लाख
- जांच: एसआईटी और न्यायिक आयोग