प्रयागराज: संगम नगरी में Mahakumbh 2025 को दिव्य और भव्य बनाने के लिए मेला प्रशासन ने तैयारियों को युद्धस्तर पर शुरू कर दिया है। महाकुंभ मेला न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आस्था, और सभ्यता का अद्भुत प्रतीक भी है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं, और इस बार भी प्रशासन ने हर पहलू पर विशेष ध्यान दिया है ताकि यह मेला और भी आकर्षक और प्रभावशाली बन सके।
अखाड़ों का भूमि पूजन के बाद अब धर्मध्वजा की स्थापना की प्रक्रिया जारी है। इसे महाकुंभ मेले की महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा माना जाता है। शनिवार को संगम में वैष्णव सम्प्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़ों – पंच दिगम्बर अनी अखाड़ा, पंच निर्मोही अनी अखाड़ा और पंच निर्वाणी अनी अखाड़ा – की धर्मध्वजा विधिपूर्वक स्थापित की गई। धर्मध्वजा की स्थापना के साथ ही इन अखाड़ों की पेशवाई की शुरुआत भी होती है, जिससे मेला क्षेत्र में एक नई ऊर्जा का संचार होता है। इस कार्य में वैदिक मंत्रोच्चार का विशेष महत्व है, जो इसे और भी आध्यात्मिक बनाता है।
धर्मध्वजा की स्थापना का धार्मिक महत्व
धर्मध्वजा की स्थापना का अर्थ सिर्फ एक परंपरा की पूर्ति नहीं है, बल्कि यह समस्त धार्मिक क्रियाओं की शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक है। इसे एक तरह से सभी कार्यों की सफलता और शुभारंभ के लिए किया जाता है। हर धर्मध्वजा को इष्टदेव को समर्पित किया जाता है। इस अवसर पर पंच निर्मोही अनी अखाड़े के संत महंत राजेंद्र दास ने बताया कि धर्मध्वजा पर स्वयं हनुमान जी विराजमान होंगे। हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त करने से अखाड़े की शुरुआत अत्यधिक पवित्र और सफल रहेगी। महंत राजेंद्र दास ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में इस बार मेला प्रशासन द्वारा की जा रही तैयारियों की सराहना की। उनका कहना था कि इस बार मेला सबसे भव्य और व्यवस्थित तरीके से आयोजित किया जाएगा, जिसमें सभी साधु-संत मिलकर एकजुट होकर पुण्य के मार्ग पर अग्रसर होंगे।
राष्ट्रीय संतों की उपस्थिति
धर्मध्वजा स्थापना के इस पवित्र मौके पर राष्ट्रीय संत रामजानकी ट्रस्टी देवेंद्र दास जी महाराज, दुर्गा दास जी महाराज और अन्य प्रमुख संतों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इन संतों का आशीर्वाद मेले को और भी विशेष बना देता है। संतों ने श्रद्धालुओं को संदेश दिया कि अंधेरे से प्रकाश की ओर जाने के लिए महाकुंभ मेला एक आदर्श स्थान है। यहाँ आने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है, और यह आयोजन आत्मिक उन्नति का भी एक मार्ग है।
महाकुंभ मेला 2025 में शामिल होने वाले प्रमुख अखाड़े
महाकुंभ मेला भारतीय सनातन धर्म की विशालता और विविधता का प्रतीक है। यहाँ कुल 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जो विभिन्न संप्रदायों से जुड़े होते हैं। इन अखाड़ों में से सबसे बड़ा अखाड़ा जूना अखाड़ा है, जो शैव सम्प्रदाय से संबंधित है। शैव संप्रदाय के सात प्रमुख अखाड़े हैं। इसके अलावा उदासीन परंपरा के तीन अखाड़े और वैष्णव संप्रदाय से जुड़े तीन अखाड़े भी महाकुंभ मेले में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं।
जब शैव संप्रदाय से जुड़े अखाड़े ‘हर-हर महादेव’ के उद्घोष से मेला क्षेत्र को गुंजायमान करते हैं, तो वहीं वैष्णव संप्रदाय के लोग ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष करते हैं। यह सांप्रदायिक और धार्मिक विविधता महाकुंभ मेले को और भी समृद्ध और आकर्षक बनाती है। इन अखाड़ों की पूजा-पद्धतियाँ, संस्कृतियाँ और धार्मिक कृतियाँ भारतीय धार्मिक विविधता को एक साथ प्रस्तुत करती हैं, जो इस मेले को विश्वभर में अद्वितीय बनाती हैं।
संगम नगरी में तैयारियाँ जोश और उल्लास के साथ
प्रयागराज में महाकुंभ मेला आयोजन की तैयारियों में प्रशासन पूरी तरह जुटा हुआ है। सड़कें, पुल, घाट, और मेला क्षेत्र को सुंदर और सुरक्षित बनाने के लिए काम तेज़ी से चल रहा है। संगम क्षेत्र में श्रद्धालुओं के लिए रहने, खाने-पीने और स्नान करने की सुविधाओं का भी विशेष ध्यान रखा जा रहा है। प्रशासन का उद्देश्य है कि श्रद्धालु यहाँ आते समय किसी भी तरह की कठिनाई का सामना न करें। इसके अलावा, मेला क्षेत्र में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं, ताकि हर श्रद्धालु को अपनी यात्रा शांति से पूरी करने का अवसर मिल सके।
महाकुंभ मेला के दौरान आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में होती है। हर साल मेला प्रशासन श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधाएँ और व्यवस्था प्रदान करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। इसके अलावा, प्रशासन द्वारा पर्यावरण को भी ध्यान में रखते हुए सटीक कदम उठाए जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए, जल संरक्षण और स्वच्छता के लिए कई पहल की जा रही हैं, ताकि मेला क्षेत्र को स्वच्छ और सुरक्षित रखा जा सके।
क्यूं है महाकुंभ मेला इतना महत्वपूर्ण?
महाकुंभ मेला न केवल धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता के इतिहास का एक अहम हिस्सा भी है। हर 12 साल में एक बार आयोजित होने वाला यह मेला चार प्रमुख स्थानों पर आयोजित होता है – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। प्रयागराज का महाकुंभ मेला विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे ‘संगम’ के स्थान पर आयोजित किया जाता है, जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदियाँ मिलती हैं। इसे तात्त्विक रूप से ‘तीर्थराज’ भी कहा जाता है, जो सभी तीर्थों का राजा माना जाता है।
महाकुंभ मेला में हिस्सा लेना व्यक्ति के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण और पुण्यकारी अवसरों में से एक होता है। यहाँ स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, और यह धार्मिक यात्रा आत्मिक शांति और मानसिक उन्नति की दिशा में एक कदम होता है।
इस बार Mahakumbh 2025 को और भी भव्य और दिव्य बनाने के लिए विभिन्न आयोजन और कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसके अलावा, डिजिटल इंडिया के तहत मेला प्रशासन ने ऑनलाइन पंजीकरण और अन्य डिजिटल सुविधाओं की भी शुरुआत की है, ताकि श्रद्धालुओं को यात्रा में कोई परेशानी न हो।
Mahakumbh 2025 की तैयारियाँ बहुत ही धूमधाम से चल रही हैं, और संगम नगरी में हर जगह धार्मिक उल्लास और उत्साह का माहौल है। इस बार के मेले में जहां एक तरफ भव्यता और दिव्यता का माहौल होगा, वहीं दूसरी ओर प्रशासन की तैयारियों ने यह सुनिश्चित किया है कि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की कोई कठिनाई न हो। धर्मध्वजा स्थापना से लेकर अन्य धार्मिक गतिविधियों तक, यह मेला भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक गौरव का प्रतीक बनकर उभरेगा।