Hathras में कोतवाली मुरसान क्षेत्र के अहरई गांव में पति-पत्नी के बीच हुए झगड़े ने एक बार फिर पुलिस की कार्यशैली को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। यह मामला अब विवाद का रूप ले चुका है और पुलिस की कार्रवाई के तरीके पर न सिर्फ स्थानीय लोगों बल्कि राजनीतिक नेताओं की भी नजरें जम गई हैं। इस मामले में एक दरोगा पर गंभीर आरोप लगे हैं, जिससे पुलिस विभाग में खलबली मच गई है।
महिला की शिकायत और पुलिस की कार्रवाई
अहरई गांव की निवासी निशा ने अपने पति बबलू पर मारपीट का आरोप लगाते हुए कोतवाली हाथरस गेट में शिकायत दर्ज कराई थी। निशा, जो बंगाल से ताल्लुक रखती हैं, ने बताया कि उनकी शादी तीन साल पहले बबलू से हुई थी। शादी के बाद से ही उसके पति और ससुराल वाले उसे मारपीट और मानसिक उत्पीड़न का शिकार बना रहे थे। उसने आरोप लगाया कि कई बार उसे घर से निकाल दिया गया और उसके साथ बुरी तरह से पेश आया गया।
Hathras पुलिस ने निशा की शिकायत पर बबलू को थाने बुलाया और उसकी पूछताछ की। इस दौरान बबलू के परिजनों का कहना है कि थाने में ही एक दरोगा ने बबलू को बेरहमी से पीटा, जिससे उसकी हालत बिगड़ गई। परिवार ने बबलू को जिला अस्पताल में भर्ती कराया, जहां उसका उपचार चल रहा है। इस घटना ने पुलिस की छवि को एक बार फिर दागदार कर दिया है।
दरोगा पर गंभीर आरोप
बबलू और उसके परिजनों का कहना है कि जब वह थाने में थे, तब एक दरोगा ने बबलू को बेरहमी से पीटा। इस हिंसक घटना के बाद बबलू की तबीयत गंभीर रूप से बिगड़ गई, और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। परिजनों ने आरोप लगाया कि पुलिस की यह कार्रवाई पूरी तरह से अवैध और क्रूर थी। यह घटना ऐसे समय में हुई है जब पुलिस विभाग की छवि पहले ही कुछ मामलों में खराब हो चुकी है।
सीओ कृष्ण नारायण का बयान
कोतवाली के सीओ कृष्ण नारायण ने इस पूरे मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि पत्नी की शिकायत पर पुलिस ने एनसीआर दर्ज की थी और बबलू को पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया था। सीओ ने स्पष्ट किया कि पूछताछ के दौरान बबलू के साथ कोई मारपीट नहीं हुई थी और उसके साथ पूरी तरह से सम्मानपूर्वक व्यवहार किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि बबलू की तबीयत खराब होने का मामला उसके परिवार वालों द्वारा उठाया गया एक बहाना हो सकता है।
अस्पताल में राजनीति का दखल
इस बीच, भाकियू नेता भी जिला अस्पताल पहुंचे और मामले की जानकारी ली। उनके दौरे से यह स्पष्ट हो गया कि इस घटना में राजनीतिक दलों ने भी अपनी रुचि दिखानी शुरू कर दी है। इसने मामले को और गंभीर बना दिया और स्थानीय प्रशासन के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। भाकियू नेताओं ने अस्पताल में मौजूद मीडिया से बातचीत करते हुए आरोपों की जांच की मांग की और पुलिस विभाग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए।
क्या है पूरा मामला?
यह पूरा मामला उस समय शुरू हुआ जब निशा ने पति बबलू के खिलाफ हाथरस गेट कोतवाली में एक लिखित शिकायत दी। निशा ने बताया कि बबलू और उनके परिवार वाले उसे घर से बाहर निकालने और मारपीट करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। वह कई बार अपने घरवालों के पास भी चली जाती थी, लेकिन ससुराल वाले उसे वापस ले आते थे और उसकी बेइज्जती करते थे।
पुलिस ने निशा की शिकायत पर एक एनसीआर (नॉन-कॉग्निजेबल रिपोर्ट) दर्ज की थी। फिर पुलिस ने बबलू को थाने बुलाकर उसकी पूछताछ शुरू कर दी। इस दौरान बबलू के स्वास्थ्य में अचानक गिरावट आई, और उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। परिजनों का कहना है कि अस्पताल पहुंचने के बाद ही बबलू ने आरोप लगाया कि थाने में एक दरोगा ने उसे बेरहमी से पीटा।
मामला राजनीतिक और सामाजिक नजरिए से
यह मामला अब सिर्फ एक घरेलू विवाद नहीं रहा; यह अब एक बड़ा मुद्दा बन चुका है जिसमें पुलिस की भूमिका और स्थानीय प्रशासन की छवि पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। घटना के बाद से ही स्थानीय लोगों के बीच आक्रोश फैल गया है, और लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है कि पुलिस को इस तरह की घटनाओं में पूरी निष्पक्षता से काम करना चाहिए।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसी घटनाएं पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली में सुधार की आवश्यकता की ओर इशारा करती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी घटनाओं के कारण आम जनता का पुलिस से विश्वास उठता जा रहा है।
जांच की मांग
बबलू के परिजनों और भाकियू नेताओं ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि मामले में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि यह संदेश जाए कि पुलिस को किसी भी तरह के दुराचार के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
यह घटना हाथरस की पुलिस व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता को उजागर करती है और साथ ही, ऐसे मामलों में लोगों को न्याय मिलने के लिए सख्त कार्रवाई की जरूरत है।
कुल मिलाकर, यह घटना एक बार फिर उस सवाल को जन्म देती है कि क्या पुलिस विभाग वास्तव में अपने कर्तव्यों को सही तरीके से निभा रहा है या फिर उसका रवैया अब भी पुराने समय की तरह ही कठोर और गैर-जिम्मेदाराना है।