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Sambhal हिंसा पर बवाल, विपक्षी दलों का हंगामा, सरकार पर लग रहे गंभीर आरोप

mata prasad

राजधानी लखनऊ में मंगलवार को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडे ने एक प्रेस वार्ता के दौरान Sambhal हिंसा को लेकर सत्ताधारी भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला। उनके बयान ने पूरे राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, क्योंकि उन्होंने न केवल राज्य सरकार को निशाने पर लिया, बल्कि पुलिस और प्रशासन की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए।

संभल हिंसा: एक गंभीर मुद्दा

संभल जिले में हाल ही में हुए हिंसक प्रदर्शन और साम्प्रदायिक झड़पों ने यूपी की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को एक बार फिर से गरमा दिया। इस हिंसा में कई लोग घायल हुए थे और कई दुकानों में तोड़फोड़ की गई थी। अब जबकि मामला शांत होने की दिशा में था, विपक्षी दलों ने इस हिंसा के मामलों में सरकार की विफलता को उजागर करना शुरू कर दिया है।

नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडे ने कहा, “संभल में हुई हिंसा पर डीजीपी (राज्य पुलिस प्रमुख) ने हमें आश्वासन दिया था कि निष्पक्ष जांच की जाएगी, लेकिन जब हम मौके पर जाने की योजना बना रहे थे तो हमें तीन दिन बाद जाने के लिए कहा गया। यह पूरी स्थिति सवालों के घेरे में है।” उन्होंने आरोप लगाया कि प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का पालन नहीं किया जा रहा है और सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही।

सरकार पर गंभीर आरोप

माता प्रसाद पांडे ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार संविधान का सम्मान नहीं करती है। उन्होंने कहा, “घटना के दिन जियाउर्हमान संभल में नहीं थे, फिर भी सरकार उनकी मौजूदगी का झूठा दावा करती है। यह सब साबित करता है कि सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने की जरूरत है।” उनका कहना था कि सरकार और प्रशासन जानबूझकर मामले को नकारा जा रहा है, जबकि यह एक गंभीर मुद्दा है।

नेता प्रतिपक्ष ने यह भी कहा कि पुलिस बयान देने में अपनी गलती को छुपाने की कोशिश कर रही है। “पुलिस अब अपने बचाव में कुछ भी बयान देने को तैयार है, लेकिन तथ्य यह है कि पुलिस और प्रशासन दोनों ही इस मामले में पूरी तरह से नाकाम साबित हुए हैं,” पांडे ने जोर देकर कहा।

लोकतंत्र पर हमला: विपक्ष का आरोप

माता प्रसाद पांडे ने भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वर्तमान सरकार लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का पालन नहीं करती है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह के मामलों में न्याय का गला घोंट देती है। “इस सरकार को लोकतंत्र और संविधान में विश्वास नहीं है,” पांडे ने स्पष्ट रूप से कहा।

उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि इस सरकार ने लोकतंत्र को कमजोर किया है और संविधान की धज्जियां उड़ाई हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि भाजपा के लिए सत्ता से ज्यादा महत्वपूर्ण उनके राजनीतिक लाभ हैं, जबकि आम जनता और संविधान की रक्षा की कोई अहमियत नहीं दी जा रही।

विपक्षी दलों की भूमिका और आगे की रणनीति

संभल हिंसा के बाद सपा (समाजवादी पार्टी) के प्रतिनिधिमंडल ने भी संभल दौरा करने का ऐलान किया था, लेकिन पांडे के अनुसार, सरकार ने उन्हें तीन दिन बाद जाने का निर्देश दिया। इस पर सपा ने विरोध किया है और कहा कि सरकार की इस तरह की कार्रवाई से यह साफ हो जाता है कि सरकार मामले को लेकर गंभीर नहीं है।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि विपक्ष अब इस मुद्दे को और तूल देने का फैसला कर चुका है। “हम जनता के बीच जाएंगे और उन्हें बताएंगे कि सरकार किस तरह से संवैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन कर रही है। इस मामले में अगर उचित कार्रवाई नहीं की गई तो हम और सख्त कदम उठाएंगे,” पांडे ने अपनी बात पूरी की।

क्या है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट?

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 में पारित किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत में धार्मिक स्थलों की स्थिति को यथासंभव पूर्ववत बनाए रखना था। इस कानून के तहत, किसी भी धार्मिक स्थल की धार्मिक स्थिति में बदलाव को रोकने की कोशिश की जाती है। ऐसे में, जब पांडे ने इस एक्ट के पालन न होने की बात की, तो यह निश्चित रूप से राज्य और केंद्र सरकार दोनों के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है। उनका कहना था कि यह कानून अगर सही तरीके से लागू होता, तो ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होती।

पुलिस की निष्पक्षता और जांच प्रक्रिया

संभल हिंसा की निष्पक्ष जांच की दिशा में कई सवाल उठाए जा रहे हैं। पुलिस द्वारा दी जा रही बयानबाजी और जांच प्रक्रिया पर विपक्षी दल लगातार सवाल उठा रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि पुलिस ने इस मामले में शुरुआत से ही ठीक तरीके से काम नहीं किया और सही सबूतों को एकत्र करने में लापरवाही दिखाई है।

“हम इस मामले में निष्पक्ष जांच की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन अगर पुलिस ने इसमें कोई ढील दी तो हम अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।” पांडे ने इस पर भी जोर दिया।

क्या आगे बढ़ेगा यह मामला?

संभल हिंसा अब एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। विपक्षी दलों के लिए यह मुद्दा भाजपा सरकार के खिलाफ एक और हमले का मौका बन गया है। उधर, राज्य सरकार भी इस मामले में अपनी सफाई पेश कर चुकी है, लेकिन विपक्षी दलों की दबाव और समाज के विभिन्न वर्गों की चिंता को देखते हुए इस मामले में जल्द ही कोई ठोस कदम उठाए जाने की संभावना है।

आखिरकार, इस पूरे मामले ने राज्य की कानून-व्यवस्था और प्रशासनिक क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, जो आने वाले समय में चुनावी मुद्दा बन सकते हैं।