Aligarh में एक महत्वपूर्ण न्यायिक फैसला सुनाया गया है, जिसमें पॉक्सो (POCSO) कोर्ट ने नए कानून बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) के तहत रेप के एक दोषी को 20 साल की सजा सुनाई। यह प्रदेश में इस कानून के अंतर्गत पहली सजा है, जबकि देश में दूसरी बार ऐसा हुआ है। इस फैसले ने समाज में न्याय के प्रति एक नई उम्मीद जगाई है, खासकर उन बच्चों के लिए जो यौन शोषण के शिकार होते हैं।
घटनाक्रम का विवरण
यह मामला एक मानसिक रूप से विक्षिप्त किशोरी से दुष्कर्म से संबंधित है। विशेष लोक अभियोजक महेश सिंह के अनुसार, यह घटना 19 जुलाई को हुई जब 11 वर्षीय किशोरी अपने घर के बाहर बैठी थी। आरोपित भरत भूषण उर्फ सोनू ने उसे 10 रुपये का लालच देकर दुष्कर्म किया। इस भयानक घटना का वीडियो एक स्थानीय युवक ने मोबाइल से बना लिया, जिससे मामले की गंभीरता और बढ़ गई।
किशोरी के पिता ने तुरंत पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद बीएनएस की धारा 65 (2) के तहत भरत भूषण के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत किया गया। पुलिस ने तेजी से कार्रवाई करते हुए आरोपित को गिरफ्तार कर लिया।
न्यायिक प्रक्रिया का महत्व
21 सितंबर को आरोप तय किए गए, और 23 सितंबर को अदालत ने साक्ष्य पेश करने के लिए तारीख दी। पीड़िता की गवाही और चश्मदीद युवक के बयान महत्वपूर्ण साबित हुए। इन सबूतों के आधार पर, अदालत ने शनिवार को भरत को दोषी करार दिया। विशेष न्यायाधीश सुरेंद्र मोहन सहाय ने न्याय का मार्ग प्रशस्त करते हुए उसे 20 साल की जेल की सजा सुनाई और 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। इस जुर्माने में से 40 हजार रुपये पीड़िता को क्षतिपूर्ति के रूप में देने के आदेश भी दिए गए।
मिशन शक्ति अभियान का प्रभाव
इस फैसले को मिशन शक्ति अभियान के तहत एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। यह अभियान महिला सुरक्षा और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए राज्य सरकार द्वारा चलाया जा रहा है। विशेष लोक अभियोजक महेश सिंह ने बताया कि इस अभियान के अंतर्गत प्रभावी तरीके से पैरवी की गई, जिससे न्याय की इस प्रक्रिया को तेजी मिली।
समाज में जागरूकता का महत्व
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि समाज में बच्चों के प्रति यौन शोषण के मामलों में गंभीरता से विचार किया जा रहा है। न्याय प्रणाली ने यह संदेश दिया है कि ऐसे अपराधों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषियों को सख्त सजा मिलेगी।
- सामाजिक जागरूकता: समाज में बच्चों के प्रति यौन शोषण को रोकने के लिए जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। अभिभावकों को बच्चों को इस तरह के मामलों में बात करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए कदम उठाने चाहिए।
- शिक्षा का रोल: स्कूलों में भी बच्चों को आत्मरक्षा के तरीके और सुरक्षित रहने के लिए आवश्यक शिक्षा दी जानी चाहिए।
- संस्थागत समर्थन: सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर ऐसे मामलों में प्रभावी मदद और कानूनी सहायता प्रदान करनी चाहिए।
अलीगढ़ की इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि जब समाज और कानून मिलकर काम करते हैं, तो न्याय का सूरज कभी न कभी जरूर निकलता है। इस फैसले ने न केवल पीड़िता को न्याय दिलाया है, बल्कि अन्य बच्चों के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि उन्हें न्याय की उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए।
यह महत्वपूर्ण है कि हम सब मिलकर ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए आगे आएं और समाज में एक सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए काम करें। न्याय प्रणाली ने इस बार एक सही कदम उठाया है, और हमें उम्मीद है कि ऐसे फैसले आगे भी होते रहेंगे।
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