उत्तर प्रदेश के Bijnor से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने समाज में महिलाओं के प्रति हो रहे अन्याय और शोषण के मुद्दे को एक बार फिर उजागर किया है। यह मामला दिल को दहला देने वाला है, जिसमें एक भाभी ने अपने देवरों पर घिनौनी हरकत करने का आरोप लगाया है और उनके पति ने उसे तीन तलाक देकर घर से बाहर निकाल दिया है। यह खबर एक महिला की आवाज़ और उसके संघर्ष की कहानी है, जो न्याय के लिए दर-दर भटक रही है।
घटना का पूरा विवरण
Bijnor के थाना शेरकोट क्षेत्र के हरेवली इलाके की निवासी फातिमा प्रवीन ने अपने दो देवरों पर आरोप लगाते हुए बताया कि जब वह बाथरूम में नहा रही थी, तभी उसके दोनों देवरों ने चोरी-छिपे उसका वीडियो बना लिया। वीडियो बनाने के बाद वे उसके कमरे में आ गए और उसे धमकाने लगे कि यदि उसने किसी से यह बात कही तो वे उसकी वीडियो वायरल कर देंगे।
इस तरह की स्थिति किसी भी महिला के लिए भयावह हो सकती है, और फातिमा के साथ जो हुआ, वह एक गंभीर अपराध है। फातिमा ने आरोप लगाया कि जब उसने इस घटना के बारे में अपने पति को बताया, तो उसने उसे समझने और समर्थन देने के बजाय तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया।
समाज और कानून की स्थिति
फातिमा का यह मामला केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि यह समाज में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। यह घटना तब सामने आई है जब योगी सरकार ने तीन तलाक कानून को लेकर बेहद सख्त कदम उठाए हैं, और ऐसे मामलों में दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है। इसके बावजूद, आज भी कई पुरुष अपनी पत्नियों को तीन तलाक देने से पीछे नहीं हट रहे हैं। यह घटना इस बात की गवाही देती है कि कानून बनाना एक बात है, लेकिन समाज में उसकी वास्तविक रूप से पालन हो रहा है या नहीं, यह एक बड़ी चुनौती है।
फातिमा प्रवीन का संघर्ष
फातिमा प्रवीन के मुताबिक, उसकी शादी तीन साल पहले मुस्लिम रीति-रिवाज से गुलबहार निवासी गांव मुस्सेपुर थाना कोतवाली देहात के एक व्यक्ति से हुई थी। शादी के कुछ दिन बाद ही उसके पति ने दहेज की मांग करना शुरू कर दी, और उसे मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा। दहेज की मांगों के बावजूद, फातिमा ने अपने ससुराल वालों के साथ समायोजन करने की कोशिश की, लेकिन उसकी मुश्किलें तब और बढ़ गईं जब उसके देवरों ने उसका अश्लील वीडियो बनाकर उसे धमकाना शुरू कर दिया।
यहां तक कि जब फातिमा ने इस घिनौनी हरकत की जानकारी अपने पति को दी, तो उसने न सिर्फ उसे नजरअंदाज किया, बल्कि उल्टा उसे ही दोषी ठहराते हुए तीन तलाक दे दिया। फातिमा का आरोप है कि उसके पति ने उसे बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के तीन तलाक देकर घर से बाहर निकाल दिया।
तीन तलाक कानून के बावजूद महिलाएं क्यों हो रही हैं शोषित?
तीन तलाक कानून का मकसद था मुस्लिम महिलाओं को एक सुरक्षित और समान अधिकार देना। 2019 में संसद द्वारा पारित तीन तलाक विरोधी कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कोई भी मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को केवल मौखिक रूप से तीन बार तलाक कहकर तलाक नहीं दे सके। इस कानून के तहत तीन तलाक को एक दंडनीय अपराध घोषित किया गया है, जिसमें दोषी को तीन साल की सजा हो सकती है।
लेकिन, फातिमा के मामले में यह सवाल उठता है कि आखिर इस कानून का पालन क्यों नहीं हो सका? समाज में ऐसे कई उदाहरण सामने आते रहते हैं, जहां तीन तलाक के कानून के बावजूद महिलाएं अपने पतियों द्वारा शोषित हो रही हैं। कानून होते हुए भी यदि उसे पूरी तरह से लागू नहीं किया जाता, तो वह कानून समाज में कोई ठोस बदलाव नहीं ला सकता।
न्याय की गुहार
फातिमा ने अब अपने लिए न्याय की मांग करते हुए बिजनौर के एसपी अभिषेक और न्यायालय मजिस्ट्रेट नगीना के समक्ष इंसाफ की गुहार लगाई है। उन्होंने अपनी शिकायत में यह बताया कि उनके साथ न केवल शारीरिक और मानसिक शोषण हुआ है, बल्कि उन्हें तीन तलाक देकर सामाजिक रूप से भी प्रताड़ित किया गया है।
पीड़िता का कहना है कि वह इस मामले में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहती है, ताकि भविष्य में किसी और महिला को इस तरह की स्थिति का सामना न करना पड़े। वह चाहती है कि उसके देवरों और पति पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए, ताकि ऐसे अपराधियों को सबक मिल सके।
महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों में बढ़ोतरी
यह घटना महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों की एक और कड़ी है। खासकर ग्रामीण इलाकों में ऐसी घटनाएं अधिक होती हैं, जहां महिलाएं अक्सर समाज के दबाव में अपनी आवाज नहीं उठा पातीं। अश्लील वीडियो बनाने, ब्लैकमेलिंग और तीन तलाक जैसे अपराध ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आम होते जा रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में बढ़ोतरी देखी गई है। इसमें घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना, तीन तलाक, और यौन शोषण प्रमुख हैं। हालांकि सरकार ने इन मामलों पर कड़े कानून बनाए हैं, लेकिन इसके बावजूद इनकी संख्या में कमी नहीं आ रही है।
समाज और परिवार की भूमिका
ऐसे मामलों में समाज और परिवार की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। फातिमा के मामले में भी यही देखने को मिलता है कि जब उसने अपने परिवार और समाज के सामने अपनी परेशानी रखी, तो उसे सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ा। बहुत से मामलों में महिलाएं अपनी बात खुलकर इसलिए नहीं कह पातीं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि उन्हें ही गलत ठहराया जाएगा।
समाज को यह समझने की जरूरत है कि महिलाओं के प्रति होने वाले ऐसे अपराधों को नज़रअंदाज़ करना, उन्हें और बढ़ावा देने के समान है। परिवारों और समाज के अन्य सदस्यों को पीड़ित महिलाओं का साथ देना चाहिए, ताकि वे न्याय की मांग कर सकें।
क्या समाधान है?
इस तरह के मामलों से निपटने के लिए सख्त कानूनी कार्रवाई के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता भी जरूरी है। महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना, उनके लिए मदद के रास्ते खोलना, और उन्हें अपने हक के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित करना आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत है।
सरकार को भी तीन तलाक कानून को सख्ती से लागू करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। इसके साथ ही पुलिस और न्यायालयों को भी ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि पीड़िताओं को जल्द से जल्द न्याय मिल सके।
बिजनौर की यह घटना न सिर्फ एक महिला के साथ हुए अन्याय की कहानी है, बल्कि यह समाज में फैली उस मानसिकता का भी प्रतीक है, जो महिलाओं के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता को सीमित करती है। तीन तलाक कानून के बावजूद यदि महिलाओं को इस तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ता है, तो यह हम सभी के लिए चिंता का विषय है।
फातिमा प्रवीन का संघर्ष यह बताता है कि न्याय की राह भले ही कठिन हो, लेकिन यदि पीड़ित महिलाएं अपनी आवाज उठाएं और समाज उनका साथ दे, तो बदलाव संभव है। महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को रोकने के लिए समाज, कानून और प्रशासन को एक साथ आकर काम करना होगा, तभी फातिमा जैसी पीड़िताओं को न्याय मिल सकेगा।