उत्तर प्रदेश के Kaushambi जिले में एक दर्दनाक घटना ने शिक्षा के पवित्र क्षेत्र को हिलाकर रख दिया है। मंझनपुर ब्लॉक के उच्च प्राथमिक विद्यालय नेवारी के हेड अध्यापक शैलेंद्र तिवारी ने अपने ही छात्र आदित्य कुशवाहा के साथ ऐसा व्यवहार किया, जिसे किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस घटना ने न केवल आदित्य की आंखों की रोशनी छीन ली, बल्कि शिक्षा प्रणाली की उन कमजोरियों को भी उजागर किया है, जिनके कारण इस तरह की घटनाएं घटित होती हैं।
घटना का विवरण
आदित्य कुशवाहा, जो कि छठी कक्षा का छात्र है, 9 मार्च 2024 को स्कूल में पढ़ाई करने गया था। अचानक किसी बात पर नाराज होकर हेड अध्यापक शैलेंद्र तिवारी ने आदित्य पर डंडा फेंक दिया। यह डंडा सीधे उसके बाईं आंख पर लगा, जिसके कारण आंख से खून निकलने लगा। यह सुनकर आप सोच सकते हैं कि एक शिक्षक, जो छात्रों के भविष्य को संवारने का जिम्मा उठाता है, वह खुद ही एक अपराधी बन गया।
घटना के बाद आदित्य की मां, श्रीमती देवी ने तुरंत इसकी शिकायत पुलिस में की, लेकिन उनकी शिकायत को नजरअंदाज कर दिया गया। इसके बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी और बीएसए के निर्देश पर एक जांच कराई गई, जिसमें 15 अप्रैल 2024 को रिपोर्ट आई कि शिक्षक का व्यवहार गलत था। लेकिन इसके बावजूद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
चिकित्सा की निराशाजनक स्थिति
आदित्य के माता-पिता ने अपने बच्चे का इलाज सद्गुरू नेत्र चिकित्सालय जानकीकुंड, चित्रकूट में कराया। दो बार ऑपरेशन के बाद चिकित्सकों ने बताया कि गंभीर चोट के कारण उसकी आंखों में रोशनी लौटने की संभावना नहीं है। यह जानकर उनकी माता का दिल टूट गया। ऐसे में, पीड़ित परिवार ने शिक्षा विभाग और प्रशासन से न्याय की गुहार लगाई, लेकिन उनकी मेहनत पर पानी फिरता रहा।
फर्जी सुलह का प्रयास
आदित्य के परिजनों को न्याय दिलाने की कोशिशों के बीच, शिक्षक ने एक और निंदनीय काम किया। उसने पीड़ित परिवार को सुलह-समझौते के नाम पर 10 लाख रुपये का एक फर्जी चेक थमाया। यह न केवल एक अपराध था, बल्कि एक गहरी मानसिकता का भी परिचायक था, जिसमें एक शिक्षक अपनी गलती को छुपाने के लिए और भी अधिक धोखाधड़ी करने पर उतारू हो गया।
सीडब्लूसी में गुहार
जब पीड़ित परिवार ने देखा कि न्याय की कोई संभावना नहीं है, तो उन्होंने सीडब्लूसी (चाइल्ड वेलफेयर कमिटी) का दरवाजा खटखटाया। इस मामले ने डीएम मधुसूदन हुल्गी का ध्यान खींचा, जिसके परिणामस्वरूप आरोपी शिक्षक शैलेंद्र तिवारी के खिलाफ धारा 326 के तहत मामला दर्ज किया गया। यह एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने शिक्षा प्रणाली में एक सख्त संदेश दिया कि शिक्षकों को उनके कृत्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा।
शिक्षा प्रणाली की समस्याएं
यह घटना केवल एक व्यक्ति की क्रूरता का मामला नहीं है, बल्कि यह उस व्यापक समस्या का संकेत है, जिसमें शिक्षकों के अधिकारों और छात्रों के अधिकारों के बीच का संतुलन बिगड़ गया है। भारत की शिक्षा प्रणाली में यह आवश्यक है कि बच्चों को सुरक्षित वातावरण में पढ़ाया जाए। लेकिन जब शिक्षक खुद हिंसा का सहारा लेते हैं, तो यह प्रश्न उठता है कि क्या हमारे स्कूल वास्तव में बच्चों के लिए सुरक्षित स्थान हैं।
मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता
इस प्रकार की घटनाओं के निरंतर बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, समाज को शिक्षकों की मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है। शिक्षकों को केवल ज्ञान का传播क नहीं, बल्कि बच्चों के लिए मार्गदर्शक और संरक्षक भी होना चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि उनका व्यवहार बच्चों पर गहरा प्रभाव डालता है।
शिक्षा का पवित्र उद्देश्य
शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान का संचार करना नहीं है, बल्कि बच्चों को एक सुरक्षित और प्रेरणादायक वातावरण में विकसित करना है। ऐसे मामलों में शिक्षा प्रणाली को कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में कोई और मासूम इस प्रकार की क्रूरता का शिकार न बने। इसके लिए न केवल प्रशासनिक स्तर पर, बल्कि समाज के सभी वर्गों को एक साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
इस Kaushambi घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में क्या सुधार करने की आवश्यकता है। यह जरूरी है कि हम शिक्षकों की जवाबदेही सुनिश्चित करें और उन्हें प्रशिक्षित करें कि वे छात्रों के प्रति संवेदनशील और सकारात्मक तरीके से पेश आएं। केवल इसी तरह हम एक सशक्त और सुरक्षित भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।
यह मामला केवल आदित्य कुशवाहा का नहीं है, बल्कि यह सभी छात्रों का है। हमें अपने बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के लिए एकजुट होकर आवाज उठानी होगी। शिक्षा एक ऐसा अधिकार है, जिसे हर बच्चे को सुरक्षित रूप से प्राप्त होना चाहिए।