कृषि के विकास में वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान: मंत्री श्री रामविचार नेताम

कृषि मंत्री श्री रामविचार नेताम ने कहा है कि देश में कृषि और उद्यानिकी के विकास में कृषि वैज्ञानिकों को महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कृषि वैज्ञानिकों को वर्तमान दौर में लोगों के जरूरत के मुताबिक कृषि क्षेत्र में अपडेट रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आजादी के पहले देश में भुखमरी की स्थिति थी। आवश्यकता के अनुरूप अनाज का उत्पादन नहीं हो पाता था, जिसके कारण अन्य हमें देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। हमारे देश के कृषि वैज्ञानिकों, रिसर्चर, प्रोफेसर के नीत नए तकनीकों की खोज और उत्पादन में वृद्धि के प्रयास का प्रतिफल है कि आज हमारे पास अन्न का पर्याप्त भंडार है और दूसरे देशों को निर्यात भी करते हैं। मंत्री श्री नेताम आज कृषि महाविद्यालय रायपुर में आयोजित तीन दिवसीय छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश के कृषि विज्ञान केन्द्रों की 31वीं क्षेत्रीय कार्यशाला’ के शुभारंभ समारोह को संबोधित कर रहे थे। मंत्री श्री नेताम ने इस मौके पर कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा लगायी गयी प्रदर्शनी का अवलोकन किया तथा पत्रिकाओं का विमोचन किया।

कृषि मंत्री श्री नेताम ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘‘एक गांव, एक फसल’’ का आव्हान किया है। देश को सक्षम और समृद्धशाली बनाने के प्रधान मंत्री श्री मोदी के इस सोंच के अनुरूप कृषि वैज्ञानिकों और इस क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को नवीन तकनीक और दलहन-तिलहन व मिलेट्स फसलों का खोज कर उत्पादन में वृद्धि करने की दिशा में कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश भर में अनेक जिलों में कृषि विज्ञान केन्द्र स्थापित हैं। कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिक का रिसर्च और किसानों में विभिन्न फसलों के प्रति जागरूकता उनकी महती योगदान को दर्शाता है। श्री नेताम ने इस मौकंे पर उन्होंने हरित क्रांति के जनक महान कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामी नाथन को भी याद किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति डॉ. (कर्नल) गिरिश चंदेल ने कहा कि कृषि के विकास और किसानों को समृद्ध बनाने में कृषि विज्ञान केन्द्रों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मूल रूप से कृषि विश्वविद्यालय का काम शिक्षा विस्तार और शोध का है। लेकिन वास्तव में कृषि विद्यालय के शोध को किसानों तक पहुंचाने का काम कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा किया गया है। यह एक सराहनीय कदम है। उन्होंने कहा कि कृषि को सुदृढ़ बनाने विज्ञान केन्द्रों द्वारा नए-नए तकनीकों किसानों तक पहुंचने का काम किया गया है। जिससे कम लागत और उत्पादन में वृद्धि संभव हुआ है। आज बाजार आधारित कृषि विकास की जरूरत है कृषि विज्ञान केन्द्र इस पर काम कर रहा है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ मंे अब धान का पर्याप्त उत्पादन हो रहा है। देश में चावल निर्यात में छत्तीसगढ़ का 17 से 18 प्रतिशत का योगदान है। उन्होंने कहा कि मिलेट फसलों कोदो-कुटकी का अच्छा बाजार का भी उपलब्ध हो रहा है। मिलेट फसल के अच्छे भाव मिलने से किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं।

कार्यशाला को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक (कृषि विस्तार) डॉ. रंजय के. सिंह और कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान जबलपुर के निदेशक डॉ. एस.आर.के. सिंह ने भी संबोधित किया। इस मौके पर मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिक, शोधकर्ता, प्राध्यापक और छात्र-छात्राएं उपस्थित थी। कार्यशाला का आयोजन इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान जबलपुर के संयुक्त तत्वाधान में किया जा रहा है।

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