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रांची लोकायुक्त कार्यालय का पिछले 3 सालों से हाल है बेहाल! हर माह 20 लाख खर्च

झारखंड के लोकायुक्त कार्यालय का हाल पिछले तीन साल काफी बेहाल है। यहां तीन सालों से कर्मचारी और अधिकारी रोज कार्यालय आ रहे हैं और बिना किसी कार्य के घर चले जाते हैं। काम भी शून्य हुआ है। इस कार्यालय के रख-रखाव वेतन बिजली व सुरक्षा मद में प्रत्येक माह 20 लाख रुपये खर्च कर रही है। पिछले तीन सालों से यहां कोई लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की गई है।

झारखंड का एक ऐसा कार्यालय जहां पिछले तीन साल में एक पत्ता नहीं खड़का, एक फाइल नहीं बढ़ी, किसी की कलम नहीं चली, लेकिन कार्यालय प्रत्येक वर्किंग दिवस पर समय से खुला व समय से बंद हुआ।जी हां, बात हो रही है लोकायुक्त कार्यालय की। जहां तीन साल से वहां के कर्मचारी-अधिकारी रोज कार्यालय आते हैं और बिना किसी कार्य के घर चले जाते हैं। बिना किसी काम के ही महीने के अंत में उनके खाते में उनका वेतन पहुंच जाता है।

इस कार्यालय में कुल 40 छोटे-बड़े कर्मचारी-अधिकारी हैं। काम शून्य है फिर भी राज्य सरकार इस कार्यालय के रख-रखाव, वेतन, बिजली व सुरक्षा मद में प्रत्येक माह 20 लाख रुपये खर्च करती आ रही है।

तीन साल पहले तत्कालीन लोकायुक्त का हो गया था निधन

तीन साल पहले जून 2021 में झारखंड के तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस डीएन उपाध्याय का कोरोना से निधन हो गया था। उसके बाद लोकायुक्त के सचिव ने अपने स्तर से फाइल निपटानी चाही।आ रहीं शिकायतों पर संबंधितों से सवाल-जवाब किया, तो राज्य सरकार की तत्कालीन कार्मिक सचिव वंदना दादेल ने एक पत्र लोकायुक्त कार्यालय को भेजा और सरकार के उस निर्णय से अवगत कराया। जिसमें लिखा हुआ था कि नए लोकायुक्त की नियुक्ति होने तक लोकायुक्त कार्यालय में कोई कार्य नहीं होगा।

भ्रष्टाचार के खिलाफ भी नहीं होता कोई काम

अब स्थिति यह है कि यहां भ्रष्टाचार के विरुद्ध शिकायतें तो आती हैं, लेकिन उस पर काम कुछ नहीं होता। इस तरह इस कार्यालय में लंबित शिकायतों की संख्या 2000 से अधिक हो चुकी हैं।अब तो शिकायतकर्ता अपनी शिकायतों की स्थित जानने के लिए रिमाइंडर तक भेजते हैं, लेकिन उन्हें जवाब यही मिलता है कि जब तक लोकायुक्त नहीं आएंगे, फाइल आगे नहीं बढ़ सकती है।

नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद भी लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर नहीं बढ़ी सक्रियता

राज्य में लोकायुक्त के नहीं होने का मामला हाई कोर्ट में भी पहुंचा था। हाई कोर्ट में पहले शपथ पत्र दाखिल कर राज्य सरकार ने नेता प्रतिपक्ष नहीं होने का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ा। अब नेता प्रतिपक्ष बने भी छह माह से अधिक हो चुका है।

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने राज्य में लोकायुक्त, सूचना आयुक्त सहित खाली पड़े सभी पदों को जल्द भरने का आश्वासन दे रखा है, लेकिन उस अनुरूप सक्रियता धरातल पर नहीं दिख रही।