ब्रह्मा बाबा की 55 वीं पुण्यतिथि को विश्व शान्ति दिवस के रूप में मनाया गया

यह सृष्टि परिवर्तन की बेला है :  ब्रह्माकुमारी किरण दीदी

18 Jan 2024

रायपुर : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के संस्थापक ब्रह्मा बाबा की 55 वीं पुण्यतिथि को श्रद्घापूर्वक विश्व शान्ति दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर संस्थान के शान्ति सरोवर रिट्रीट सेन्टर में अयोजित समारोह में ब्रह्माकुमारी किरण दीदी ने बतलाया कि वर्तमान समय विश्व इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण समय संधिकाल अथवा संगमयुग चल रहा है। यह सृष्टि परिवर्तन की बेला है। जबकि निराकार परमपिता परमात्मा अपने साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा देकर संस्कार परिवर्तन और नई सतोप्रधान दुनिया की पुर्नस्थापना करा रहे हैं।  उन्होंने बतलाया कि इस संस्थान में प्रजापिता ब्रह्मा बाबा को परमात्मा, भगवान अथवा गुरु का दर्जा नहीं दिया जाता है। अपितु वह भी एक इन्सान थे जिन्होंने नारी शक्ति को आगे कर ईश्वरीय सेवा के द्वारा महिला सशक्तिकरण का कार्य किया। उन दिनों समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की थी किन्तु ब्रह्माबाबा ने महिलाओं में छिपी नैतिक और आध्यात्मिक शक्तियों को सामने लाकर विश्व के आगे एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया।      ब्रह्माकुमारी किरण दीदी ने वैश्विक बदलाव की चर्चा करते हुए कहा कि जब सृष्टि प्रारम्भ हुई तो सतोप्रधान थी। उस समय यह देवभूमि कहलाती थी। सभी प्राणी मात्र दैवी गुणों से सम्पन्न होने के कारण देवी और देवता कहलाते थे। चहुं ओर सुख और शान्ति व्याप्त थी। किन्तु द्वापर युग से समाज में नैतिक पतन होने से दु:ख-अशान्ति की शुरुआत हुई। तब विभिन्न धर्म पैगम्बरों ने अपने-अपने धर्मों की शिक्षा देकर नैतिक और सामाजिक गिरावट को रोकने का कार्य किया। जिससे कि अधोपतन की गति में कमी जरूर आयी लेकिन पूरी तरह से उस पर रोक नही लग सकी।

उन्होंने कहा कि आज विश्व में भौतिक चकाचौंध बहुत है लेकिन दु:ख, अशान्ति, तनाव, बिमारी आदि की भी कमी नहीं है। अब यह सृष्टि इतनी पुरानी और जर्जर हो चुकी है कि इसका विनाश ही एकमात्र समाधान है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय न तो राजनीतिक नेता विश्व का उद्घार कर सकते हैं, न ही कोई वैज्ञानिक अथवा धार्मिक नेता ही यह कार्य करने में सक्षम हैं। यह परमपिता परमात्मा का कार्य है। जो कि वह वर्तमान संगमयुग पर आकर कर रहे हैं। वर्तमान संसार में कोई सार नहीं बचा है। जीवन में दिनों-दिन बढ़ रही चिन्ता, तनाव, दु:ख और अशान्ति ने समाज को नर्कतुल्य बना दिया है। ऐसे समय प्रजापिता ब्रह्माबाबा ने आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग के द्वारा समाज को एक नई राह दिखाई है।

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