गवई बराज सिंचाई परियोजना का 7 को सीएम करने वाले थे उद्घाटन
2019 में भी कोनार परियोजना की नहर उद्घाटन के 12 घंटे बाद ही बह गई थी
Amit Singh
Ranchi : झारखंड के चूहे भी कमाल के हैं. अपनी खास कारस्तानी की वजह से चूहे हमेशा चर्चा में बने रहे हैं. ये चूहे सरकारी फाइलों को चट कर जाते हैं, तो कभी थाने में रखी शराब पी जाते हैं. अस्पताल में शव की आंख खा जाते हैं. रेलवे ट्रैक को नुकसान पहुंचा डालते हैं. अब चूहे करोड़ों के कंक्रीट और सीमेंट से बने बांध को कुतर डाल रहे है. सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन हैरान मत होइए, ये हम नहीं कह रहे हैं. यह कहना है झारखंड जल संसाधन विभाग के जिम्मेवारों का. क्योंकि झारखंड में 2019 के बाद से अबतक अनुमानत: 1430 करोड़ रुपए की लागत से तैयार बांध क्षतिग्रस्त हो चुके हैं. ज्यादातर बांधों के क्षतिग्रस्त होने की वजह चूहों को बताया गया है. इंजीनियरों को भी दोषी ठहराया गया है, मगर चूहों ने बांध कुतर दिए, यह पंक्ति सबसे ज्यादा जांच रिपोर्ट में लिखी हुई मिलेगी.
नहर में पूरी क्षमता से पानी भी नहीं छोड़ा गया था
एक बार फिर से चूहों की वजह से 50 साल पुरानी 131 करोड़ रुपए की लागत से बनी गवई बराज सिंचाई परियोजना की नहर का बांध बह गई है. इस परियोजना का उद्घाटन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 7 अगस्त को करने वाले थे. 30 जुलाई को ट्रायल के दौरान नहर में पूरी क्षमता से पानी भी नहीं छोड़ा गया था. 3 अगस्त को नहर का तकरीबन दो मीटर लंबा बांध टूट कर बह गया. नहर में कई जगह दरारें भी आ गई हैं.
5 जिलों में 5 दशक से हो रहा नहरों का निर्माण
पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा, पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम और जामताड़ा में 5 दशकों से नहरों का निर्माण चल रहा है. फिर भी खेत प्यासे हैं. 2022 में 22 जिले सूखाग्रस्त घोषित किए गए थे. 2023 तक अभी से जलसंकट झेलना पड़ रहा है. जल संसाधन विभाग की नहर सिंचाई योजनाएं क्षतिग्रस्त होने की जगह पूरी होतीं, तो किसानों को संकट नहीं होता. पूर्वी सिंहभूम में स्वर्णरेखा प्रोजेक्ट के तहत 85 करोड़ की नहर योजना में 63 करोड़ रुपए खर्च हो गए. इतनी राशि खर्च होने के बाद भी 90% काम बाकी है. जामताड़ा के नाला क्षेत्र में 10 करोड़ की सिंचाई योजना पर 400 करोड़ खर्च हो गए. 47 साल बाद भी एक बूंद पानी नहीं मिला है. अब भी काम बाकी है.
करोड़ों खर्च के बाद भी नहर सूखी रही
1966-67 में पलामू में अकाल पड़ा था. तब बाई बांकी जलाशय पर काम शुरू हुआ. नहर की खुदाई हुई. कांडी में खरौंधा व मोरबे नहर का निर्माण हुआ. करोड़ों खर्च के बाद भी नहर सूखी रही. 2021-22 से 196 करोड़ से 26 किमी लंबी नहर बन रही है. 1995-96 में मोहम्मदगंज के भीम बराज से 11 किमी लंबी नहर की खुदाई हुई, पर पानी नहीं मिला. चतरा में अंजनवा व प. सिंहभूम में ब्राह्मणी परियोजना का यही हाल है.
हर साल टूटती हैं करोड़ों की नहर
केस स्टडी : 1
26 जुलाई 2023 : चांडिल मुख्य नहर से छोडे गए पानी को जब कालझोर मुख्य नहर में छोड़ा गया, तब मुख्य नहर टूट गई. इस मुख्य नहर से ही कालझोर, छोलागोड़ा, जहारघुटू, वृंदावनपूर, राजाबासा, बेतालपूर आदि गांवों वहोते हुए नजर का पानी जाता है. ग्रामीण क्षतिग्रसत नहर की मरम्मत कर रहे हैं.
केस स्टडी : 2
30 जनवरी 2023 : पंचखेरो जलाशय व डोमचांच प्रखंड के केशो जलाशय का शिलान्यास 1984-85 में किया गया था. वर्ष 2013-14 में पंचखेरो जलाशय का निर्माण पूरा हो गया. वर्तमान में कई जगह डैम से निकलने वाले नहर के बांध क्षतिग्रस्त हो गए है.
केस स्टडी : 3
3 जनवरी 2021 : झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिला के हाटगम्हरिया प्रखंड अंतर्गत कुशमुंडा नदी पर करोड़ों की लागत से बनाया गया नहर टूट गया. यह स्थिति 13.5 किमी लंबी नहर में कई जगह बनी हुई है. यह योजना 2020 में 17 करोड़ 60 लाख की लागत से शुरू हुआ था.
केस स्टडी : 4
1 दिसंबर 2021 : पश्चिमी सिंहभूम के मंझारी प्रखंड क्षेत्र की सिंचाई परियोजना तोरलो डैम का नहर क्षतिग्रस्त हो गया. करोड़ों की लागत से दो साल पहले ही नहर निर्माण कार्य शुरू हुआ था, लेकिन कार्य पूर्ण हुआ भी नहीं कि टूटना भी शुरू हो गया.
केस स्टडी : 5
31 अगस्त 2020 : जल संसाधन विभाग के चैनपुर-दो प्रमंडल की ओर से बनवाई जा रही नहर क्षतिग्रस्त हो गए. बिशुनपुर में सिचाई कार्य के लिए बनी नहर की लागत 17 करोड़ रुपए है. बरसात के कारण नहर क्षतिग्रस्त हो गई है.
केस स्टडी : 6
24 अगस्त 2018 : मसानजोर डैम के मयूराक्षी बांध तब नहर की शाखा बारिश की वजह से टूट गई. मुख्य नहर में 150 क्यूसेक पानी छोड़़ा गया था.
केस स्टडी : 7
2 सितंबर 2019 : तत्कालीन सीएम रघुवर दास ने उत्तरी छोटानागपुर क्षेत्र की बहुप्रतीक्षित कोनार सिंचाई परियोजना का उद्घाटन किया था. उदघाटन के 12 घंटे बाद ही परियोजना की नहर का बांध टूट गया. इस पर 42 साल से काम चल रहा है, जिसपर अबतक 22 सौ करोड़ खर्च हो चुके हैं.
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