चिंतनीय : झारखंड में सूखे की चपेट में 38% भू-भाग – Lok Shakti
November 2, 2024

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चिंतनीय : झारखंड में सूखे की चपेट में 38% भू-भाग

Pravin Kumar

Ranchi : एक ओर जहां दुनिया के कई देशों में पानी को बचाने के लिए तरह-तरह के उपाय किए जा रहे हैं, बूंद-बूंद पानी का हिसाब रखा जा रहा है, वहीं झारखंड में लगभग 80% सतही और 74% भू-जल राज्य के बाहर चला जाता है. झारखंड की भौगोलिक स्थिति के कारण राज्य का 38% क्षेत्र सूखे के चपेट में आ जाता है. यह चैंकाने वाला तथ्य हाल ही में जारी स्विचऑन फाउंडेशन के अध्ययन रिपोर्ट में समाने आया है, जो पर्यावरण संरक्षण पर काम करता है. संस्था की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 के प्री-मॉनसून सीजन में सबसे कम जल स्तर हजारीबाग जिले में 0.03 मीटर से नीचे पाया गया और कोडरमा जिले में यह 9.7 मीटर तक पहुंच गया. 2022 में मॉनसून औसत से कम दर्ज किया गया था. राज्य के लगभग 90% जलाशय केवल 40% ही भरे थे. राज्य के भू-जल (अंडरग्राउंड वाटर) स्तर में 2022 के प्री-मॉनसून सीजन में दो मीटर की गिरावट आयी थी.

बोरिंग के कारण भूजल में फ्लोराइड की मात्रा सीमा से अधिक हो गई

संस्था ने अपने अध्ययन में पाया कि नलकूपों की शुरुआत के बाद से पिछले दो दशकों में राज्य में भूजल स्तर में जबरदस्त गिरावट आयी है. बोकारो, गिरिडीह, गोड्डा, गुमला, पलामू, रांची में डीप होल बोरिंग के कारण भूजल में फ्लोराइड की मात्रा सीमा से अधिक हो गयी है. पश्चिमी सिंहभूम, रांची और सरायकेला जिलों के अधिकांश क्षेत्रों में भूजल में गिरावट हो रही है. इसी अवधि के दौरान गहराई से भूजल स्तर (डीजी़ब्ल्यूएल) का भी अध्ययन किया गया था.
अध्ययन से पता चलता है कि झारखंड में 15 प्रमुख नदियों, दामोदर, मयूराक्षी, बराकर, कोयल, शंख, सोन, औरंगा, मोरे, कारो, बांसलोई, दक्षिण कोयल, खरकई के अलावा तालाबों के ताजे पानी के स्रोत राज्य में मौजूद हैं. राज्य की स्वर्णरेखा नदी जैसी स्थिति ही राज्य की कई अन्य नदियों की भी होनेवाली है.

राज्य के 30% लोग पीते हैं फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाइट्रेट और आइरन युक्त पानी

अध्ययन से पता चला है कि लगभग 30% आबादी फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाइट्रेट और आयरन युक्त पानी पी रही है. कुछ जिलों में, पीने के पानी के स्रोत में फ्लोराइड 1.5एमजी/लीटर से अधिक है और पानी दूषित है. अध्ययन के आधार पर संगठन ने सभी सक्रिय भूजल स्रोतों के आधारभूत अध्ययन की सिफारिश की है. प्रभावी भूजल के रिचार्ज का भी सुझाव भी दिया है. सुझाव में कहा गया है कि मॉनसून के दैरान जलस्रोतों का बेहतर रिसाव हो, इसके लिए जल स्रोतों से गाद निकालने की जरूरत है. अध्ययन के आधार पर कहा गया है कि पानी के सतत उपयोग को बढ़ावा देने, कृषि और घरेलू क्षेत्रों में पानी की बर्बादी से बचने, जल संरक्षण के लिए एकीकृत दृष्टिकोण और मौजूदा नीतियों, अधिनियमों और जल संरक्षण से संबंधित योजनाओं को प्रभावी बनाने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है.आने वाले समय में संस्था अपने अनुभवों के आधार पर झारखंड में ग्राउंड वाटर को लेकर एसएजी समूह के बीच जागरूकता कार्यक्रम चलाने की योजना है.  स्विचऑन फाउंडेशन 2008 के बाद से कई नवीन परियोजनाओं का नेतृत्व करने का दावा करता है. अक्षय ऊर्जा पहुंच, कृषि और आजीविका, कौशल विकास और शिक्षा और पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रों में सफल पहल की है . पिछले 15 वर्षों में फाउंडेशन ने इन क्षेत्रों में 10,00,000 से अधिक लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने का दावा किया है.

सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने भी जतायी थी चिंता

पिछले दिनों सेंट्रल ग्राउंड बोर्ड ने झारखंड में भू-जल के गिरते स्तर पर रिपोर्ट जारी की थी. इसके मुताबिक 2020 की तुलना में भू-जल की निकासी 2.22 प्रतिशत बढ़ी है. वर्ष 2020 में जहां भू-जल की निकासी 29.13 प्रतिशत थी, वह 2022 में बढ़ कर 31.35 प्रतिशत हो गयी. राज्य में सबसे अधिक धनबाद और कोडरमा में भू-जल का दोहन हो रहा है. धनबाद में 75 प्रतिशत तो कोडरमा में 66.10 प्रतिशत है. पश्चिमी सिंहभूम में यह आंकड़ा मात्र 9.93 प्रतिशत का ही है. फिलहाल झारखंड में 1.78 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीक्यूएम) भू-जल का दोहन हो रहा है.

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