विषय था ‘झारखंड में महिलाओं की स्थिति’
Ranchi : 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है. इस अवसर पर शुभम संदेश ने अपने कार्यालय परिसर में एक संगोष्ठी का आयोजन किया. जिसका विषय था ‘झारखंड में महिलाओं की स्थिति’. इस संगोष्ठी में विभिन्न क्षेत्र में सक्रिय महिलाओं ने हिस्सा लिया और अपने विचार रखे. आइए आपको बताते हैं. क्या हैं इन महिलाओं के विचार.
मुक्ता सिंहझारखंड में महिलाओं की स्थिति बेहतर : मुक्ता सिंह
साहित्यकार मुक्ता सिंह ने कहा कि अगर झारखंड की बात की जाए तो महिलाओं की स्थिति यहां अच्छी है. कई उच्च पदों पर महिलाएं काम कर रही हैं. राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाएं काफी आगे हैं. सांसद से लेकर मेयर के पद पर महिलाएं विराजमान हैं. मीडिया के क्षेत्र में भी महिलाओं की अच्छी खासी संख्या है. अगर झारखंड के इतिहास की बात करें तो सिगनी दई से लेकर फूलो झानो तक का गौरवमय इतिहास हमारे सामने है. लेकिन बहुत से लोगों को इनके बारे में पता तक नहीं है. इसे जानने की जरुरत है.
महिलाओं की स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार नहीं : रश्मि शर्मा
साहित्यकार रश्मि शर्मा ने कहा कि झारखंड में महिलाओं की स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है. ब्रिटिश काल में एक कहावत प्रचलित थी ‘पीठ पर छउवा माथ पर खांची , जब देखो तब समझो रांची’. कमोबेश आज भी वही स्थिति है. झारखंड के आदिवासी और ग्रामीण इलाकों की महिलाओं की स्थिति में कोई बहुत ज्यादा सुधार नहीं आया है, जबकि शहरी क्षेत्र से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर हैं और महिलाएं उससे लाभान्वित हो सकती हैं. शहरी क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर बढ़ाने की आवश्यकता है.
झारखंड में महिलाओं में बढ़ी है शिक्षा के प्रति जागरूकता : डॉ सुनीता यादव
समाजसेवी डॉ सुनीता यादव ने कहा कि झारखंड में महिलाओं की स्थिति बेहतर है. मैं बिहार से आती हूं. अगर वहां से तुलना करती हूं तो यहां की महिलाओं को बेहतर स्थिति में पाती हूं. झारखंड में बेटी गोद लेने की परंपरा है और अभी भी लोग बेटी को ही गोद लेने में प्राथमिकता देते हैं. यह अच्छी बात है. घरों में काम करने वाली महिलाएं अपने बेटियों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना चाहती हैं. इसके लिए वे और ज्यादा मेहनत करती हैं. ये बहुत बड़ी बात है.
स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं, अभी भी है भेदभाव : ज्योति कुमारी
उद्योगपति ज्योति कुमारी ने कहा कि अभी झारखंड में महिलाओं की स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है. महिलाओं में साक्षरता दर काफी कम है. साक्षरता दर बढ़नी चाहिए, तभी महिलाओ की स्थिती में सुधार आ पाएगा. जबकि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक काम करती हैं. फिर भी वेतन देने के मामले में हमेशा उन्हें पुरुषों से कमतर आंका जाता है. उन्हें उनकी मेहनत का सही प्रतिफल नहीं मिलता है.
कई क्षेत्रों में महिलाएं कर रहीं उत्कृष्ट कार्य : प्रीता अरविंद
साहित्यकार प्रीता अरविंद ने कहा कि झारखंड में महिलाओं की स्थिति में अपेक्षाकृत सुधार आया है. शिक्षा को लेकर महिलाओं में काफी जागरुकता आई है. मेरे घर में काम करने वाली लड़की ने काम करते हुए एमए किया. तो वो मेरे लिए गर्व की बात थी. आज रांची में महिलाएं पिंक ऑटो चला रही हैं. बिहार में जब मैंने कैब चलाते हुए लड़की को देखा तो लगा कि परिवर्तन हो रहा है. झारखंड में महिला साहित्यकार पूरे देश और दुनिया में नाम कमा रही हैं. कई थाने ऐसे हैं जहां सिर्फ महिला कर्मी ही हैं.
अभी एकजुट होकर और आगे जाने की जरूरत है : सुतोपा नंदी
इंटरप्रेन्योर सुतोपा नंदी ने कहा कि मैं 16 साल मस्कट में रही. अभी 2 साल पहले रांची लौटी हूं तो परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिख रहा है. महिलाओं की स्थिति में अपेक्षाकृत काफी सुधार हुआ है. साक्षरता दर जरुर कम है लेकिन जागरुकता बढ़ी है. अभी जो महिला सक्षम है, उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह और महिलाओं को अपने साथ जोड़े. झारखंड की महिलाएं हर क्षेत्र में अच्छा कर रही हैं. चाहे राजनीति हो, खेलकूद हो या फिर बॉलीवुड हो, महिलाओं को अभी एकजुट होकर और आगे आने की जरुरत है.
पहले के मुकाबले जागरुकता में बढ़ोतरी हुई है : मानसी राय महापात्रो
शिक्षाविद् मानसी राय महापात्रो ने कहा कि शिक्षा के विकास के साथ-साथ वातावरण भी तैयार होना चाहिए. पहले के मुकाबले जागरुकता बढ़ी है. पहले सैनिटरी नैपकिन को लेकर शर्मिंदगी होती थी. लेकिन अब इसे एक सामान्य चीज मानी जा रही है. सह शिक्षा में भी सुधार हुआ है. ग्रामीण क्षेत्रों में और प्रयास करने की जरूरत है. सभी क्षेत्र की महिलाओं को आगे आना होगा. तभी महिला दिवस की सार्थकता रहेगी.
आमि नारी शौब पारी : नीलू दासगुप्ता
शिक्षिका नीलू दासगुप्ता ने कहा कि महिलाओं की स्थिति संतोषजनक कही जा सकती है. हमारा समाज पुरुषशासित है. लेकिन अब पहले की तरह स्थिति नहीं है. अब महिलाएं पुरुषों को स्कूटी में अपने पीछे बिठाकर चल रही हैं. झारखंड में महिलाएं सुरक्षित हैं. रात के 11 बजे भी घर से निकलने में कोई परेशानी और डर नहीं है. बांग्ला में एक कहावत है आमि नारी आमी शौब पारी
मृणालिनी अखौरीलेडीज फर्स्ट की बजाय जेंट्स फर्स्ट का जमाना आ रहा है : डॉ मृणालिनी अखौरी
गायिका डॉ मृणालिनी अखौरी झारखंड में महिलाओं की स्थिति पहले की तुलना में अच्छी हुई है. अगर मैं खुद की बात करूं तो मैंने बरसों स्ट्रगल किया है. मुझे नेल्सन मंडेला सम्मान भी मिला है. हमारे समाज में महिलाओं को काफी कुछ झेलना पड़ता है. अभी भी अभिभावक लड़कियों को कुछ करने से रोकते हैं. ऐसे अभिभावकों से मैं अपील करूंगी कि ऐसा ना करें. स्थिति को बदलना है. खेलकूद से लेकर कला के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिती बढ़ी है. अब लेडिज फर्स्ट की बजाय जेंट्स फर्स्ट का जमाना आ रहा है.
महिलाओं की सोच और व्यक्तित्व में आया है बदलाव : सुनीता सर्राफ
फिटनेस एक्सपर्ट सुनीता सर्राफ ने कहा कि मैं कई क्षेत्र से जुड़ी हुई हूं और महिलाओं को मोटिवेट करने का प्रयास करती हूं. पिछले 12 साल से फिटनेस के क्षेत्र में काम कर रही हूं और इससे ना सिर्फ फिटनेस बल्कि उनकी पर्सनैलिटी में परिवर्तन आ रहा है. जो महिलाएं सिर्फ घर गृहस्थी और बच्चे पालती थीं वे एक्सरसाइज करने के लिए घर से बाहर निकल रही हैं. उससे उनका व्यक्तित्व बदला है. वे डिप्रेशन से निकल रही हैं. व्यवसाय करना चाह रही हैं. महिलाएं अपने उत्पादों की प्रदर्शनी लगा रही हैं. तो ये बदलाव साफ दिख रहा है.
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