वैश्य समाज के गोबर की मलरियों (दीपक के आकार के कंडे बनाकर रस्सी में पिरोते हैं) की माला से होली तैयार की जाती है। ब्रह्म मुहूर्त में घर के आंगन में होली जलाई जाती है। होली की आंच में छोटी-छोटी बाटी सेंकी जाती है। इसके बाद बाटी में घी, गुड़ मिलाकर प्रसाद बांटा जाता है। वैश्य समाज में होलाष्टक लगते ही घरों में मलरियां बनाने का काम शुरु हो जाता है। इसके लिए गाय के गोबर से दिए के आकार में छोटे-छोटे कंडे बनाए जाते हैं। उनके बीच छेद कर दिए जाता है। उन्हें धूप में सुखाया जाता है। सूखनने पर उन्हें रस्सी में पिरेाकर ११ मलाएं बना ली जाती हैं। मलरियां बनाने का काम होली के दो दिन पहले बंद कर दिया जाता है। वैश्य महासम्मेलन भोपाल के पुराने शहर के अध्यक्ष प्रवीण गुप्ता ने बताया कि मलेरियों की माला बढ़ते क्रम के आधार पर बनाई जाती है। होली के दिन आंगन में लोहे की पात्र (तगाड़ी) में सबसे नीचे सबसे बड़ी माला रख दी जाती है। इसके बाद क्रम से मालाएं जमाकर होलिका तैयार की जाती हैं। ब्रह्म मुहूर्त में मोहल्ले में जलने वाली सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर आंगन में होली प्रज्वलित की जाती है। साथ ही बाटियां सेंकी जाती हैं। बाटी तैयार होने के बाद उसमें घी और गुड़ मिलाकर प्रसाद बांटा जाता है।
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