सड़कों पर ट्रक चलाने वाले 50 फीसदी से अधिकांश ड्राइवर दृष्टि दोष की समस्या से ग्रस्त है। साइटसेवर्स इंडिया एनजीओ की मदद से 34 हजार ट्रक ड्राइवरों की आंखों का इलाज किया गया। इसमें 38 प्रतिशत ट्रक ड्राइवरों में नजदीकी तौर पर देखने की समस्या है। 8 प्रतिशत को दूर की नजर की दिक्कत है।
भारत में 50 प्रतिशत ट्रक ड्राइवरों की आंखें खराब, पढ़िए ये रिपोर्टहाइलाइट्सट्रक ड्राइवरों की आंखों की जांच में बड़ा खुलासाभारत में 50 प्रतिशत ट्रक ड्राइवरों की आंखें खराबनजर कमजोर होने की बड़ी समस्या आई सामनेनोएडा: भारत की सड़कों पर ट्रक चलाने वाले 50 फीसदी से अधिक ड्राइवर किसी ना किसी तरह की दृष्टि दोष की समस्या से ग्रस्त है। इस चौंकाने वाले तथ्य का पता तब चला जब नोएडा स्थित अस्पताल ICARE आई हॉस्पिटल ने साइटसेवर्स इंडिया की मदद से 34 हजार ट्रक ड्राइवरों की आंखों का परीक्षण किया। इनमें से 38 प्रतिशत ट्रक ड्राइवरों में नजदीकी तौर पर देखने में समस्या पाई गई तो वहीं 8 प्रतिशत ट्रक ड्राइवरों को दूर की दृष्टी संबंधित समस्याओं से ग्रस्त पाया गया। वहीं इनमें से 4 प्रतिशत लोग ऐसे थे, जिनमें दूर और नजदीक दोनों तरह का दृष्टि दोष था। नजदीक की वस्तुओं को ठीक से नहीं देख पाने की समस्या से ग्रस्त ज्यादातर लोगों की उम्र 36 से 50 के बीच पाई गई। जिन लोगों में दूर की वस्तुओं को ठीक से नहीं देख पाने की समस्या पाई गई, उनमें से ज्यादातर लोगों की आयु 18 से 35 वर्ष के बीच थी। जानकारी के मुताबिक भारत की सड़कों पर 90 लाख से ज्यादा ड्राइवर ट्रक चलाते हैं।
इसे लेकर नोएडा के ICARE आई हॉस्पिटल के सीईओ डॉ. सौरभ चौधरी ने बताया कि एक नेत्र चिकित्सा अस्पताल होने के नाते हम इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि भारत में बड़ी तादाद में होने वाले सड़क हादसों में ड्राइवरों में व्याप्त दृष्टि दोष की समस्या एक बड़ी वजह होती है। हमने जिन भी ट्रक ड्राइवरों ने नेत्रों की जांच की, वे इस बात से कतई वाकिफ नहीं थे कि उनमें किसी को भी किसी तरह का कोई दृष्टि दोष है। इतना ही नहीं, इनमें से किसी ने कभी भी अपनी आंखों का परीक्षण नहीं कराया था। ऐसे में उनके किसी हादसे का शिकार होने की प्रबल आशंका मौजूद थी। भारतीय सड़कों पर लगभग 90 लाख से भी ज्यादा ड्राइवर ट्रक चलाते हैं। जमीनी स्तर पर किए गए हमारे अध्ययन के आंकड़ों के मुताबिक, अनुमानित तौर पर इनमें से आधे लोगों को किसी ना किसी तरह की नेत्र से जुड़ी समस्याएं जरूर होंगी। अगर ये ड्राइवर किसी पश्चिमी देश में होते तो उन्हें चश्मे और आंखों के सही परीक्षण के बगैर वहां पर ड्राइविंग के लिए अयोग्य करार दिया जाता।रिफ्रैक्टिव एरर की सबसे बड़ी समस्याडॉ. सौरभ चौधरी आगे बताते हैं कि ट्रक ड्राइवरों की आंखों की अच्छी तरह से पड़ताल करने के बाद हमारे सामने यह तथ्य सामने आया कि इनमें से ज्यादातर ट्रक ड्राइवर ‘रिफ्रैक्टिव एरर’ (दूर और नजदीकी वस्तुओं को ठीक से नहीं देख पाने की स्थिति) की समस्या से ग्रसित हैं। ऐसे में हमने अपने पार्टनर साइटसेवर्स इंडिया के साथ मिलकर पीड़ित ट्रक ड्राइवरों को मौके पर ही विभिन्न तरह के रेडी टू क्लिप (R2C) चश्मे मुहैया कराए। जिन भी ट्रक ड्राइवरों में ‘रिफ्रैक्टिव एरर’ जटिल किस्म का पाया गया, उन ट्रक ड्राइवरों को अगले गंतव्य पर कस्टमाइज्ड किस्म के चश्मे प्रदान किए गए। हमने विभिन्न तरह की टेक्नोलॉजी, उपकरणों और ऐप का इस्तेमाल करते हुए ट्रक ड्राइवरों को विभिन्न तरह के चश्मे मुहैया कराए ताकि वे महामार्गों पर चश्मा पहनकर ही ड्राइविंग करें।ट्रक ड्राइवरों को मोतियाबिंद का ज्यादा खतराडॉक्टर के मुताबिक, ट्रक ड्राइवर जिस क्षेत्र में काम करते हैं, उसे एक असंगठित क्षेत्र माना जाता है और यही वजह है कि ट्रक ड्राइवर अपने स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाते हैं। इनमें से ज्यादातर ड्राइवर ग्रामीण इलाकों से आते हैं, जहां आंखों के परीक्षण की किसी भी तरह की कोई व्यवस्था नहीं होती है। ऐसे में ना तो कभी किसी चश्मे के लिए उनका कोई परीक्षण किया जाता है और ना ही नेत्र से जुड़ी किसी अन्य तरह की समस्या के लिए। डॉक्टर सौरभ त्रिवेदी आगे बताते हैं कि हमारा अनुभव बताता है कि लंबे समय तक ट्रक चलाते रहने के चलते ड्राइवरों की आंखें पूरी तरह से सूख जाती हैं और उनमें गंभीर रूप से नेत्र संबंधी एलर्जी जैसी स्थिति का निर्माण हो जाता है। इनमें से 60 से अधिक उम्र के ज्यादातर ड्राइवरों को मोतियाबिंद भी हो जाता है। ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि सभी ड्राइवरों का नियमित रूप से नेत्र परीक्षण करना आवश्यक हो जाता है जो खुद उनकी सुरक्षा के साथ-साथ दूसरों की सुरक्षा के लिए भी बेहद जरूरी है।
रिपोर्ट – मनीष सिंह
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