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मध्याह्न भोजन योजना से सपनों को मिले पंख

मेरा परिवार बहुत गरीब है । जितने हाथ-उतने काम के सिद्धांत पर घर का खर्चा चलता है । परिवार में हर उम्र के लोग कुछ न कुछ काम करते हैं और उनसे जो पैसा आता है उससे भोजन और घर की बाकी ज़रूरतें पूरी होती हैं । लेकिन मेरा मन काम करने का नहीं बल्कि पढ़ लिखकर कुछ बनने का था ।
 
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लिहाजा मैंने काम न करके पढ़ने की बात घर में कही । घर वालों ने मेरी बात को पहले तो गंभीरता नहीं लिया लेकिन जब मैं ज्यादा गंभीर हुआ तो पहले तो उन्होंने समझाया कि काम करो, इसी से पेट भरेगा ।मैं नहीं माना तो उन्होंने ताना मारना शुरू कि. कि पढ़ लिखकर कौन सा तीर मार लेगा, इसके बाद उन्होंने कहा कि काम नहीं करेगा तो खाएगा क्या । इसी बीच स्कूल वालों ने कहा कि सरकार स्कूल  रेगुलर आने वाले बच्चों को खाना देती है । उनकी बात सुनकर घर वाले स्कूल भेजने को तैयार हुए ।अब मुझे वहां बढ़िया खाना तो मिलता ही है, ड्रेस और किताबें भी मिलती हैं, हमें तो फीस भी नहीं जमा करनी पड़ती है । अब मैं बहुत खुश हूं और पढ़ाई भी अच्छे से चल रही है । मुझे विश्वास है कि मैं बड़ा होकर अपने घर को इस गरीबी से बाहर निकाल पाऊंगा।