सोमनाथ मंदिर : नेहरू ने की अवहेलना, पटेल ने जीर्णोद्धार किया और अब इसे ऊंचा कर रहे हैं हैं पीएम मोदी: नेहरू से लेकर राहुल गांधी और ‘दूसरी राजनीतिक संभावनाएं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को छूत जैसा समझ रहे हैं। अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण को भी नेहरू के उत्तराधिकारी राहुल गांधी तक देखते और देख रहे हैं। अयोध्या, केदारनाथ, चारधाम, सोमनाथ, काशी विश्वनाथ… सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उदय की चमक सिद्ध हो रहे पीएम मोदी। भारत भव्य मंदिरों की दिव्यता और भव्यता को दुनिया नमन कर रही है। सोमनाथ परिसर मंदिर की आत्मा तो पुरानी होगी लेकिन काया अस्त व्यस्त होगी।
पीएम मोदी ने 21 नवंबर, 2022 को अपने साथी के दिनारें कहा कि, “ तीर्थस्थलों का विकास सौराष्ट्र का सोमनाथ मंदिर का जीवंत उदाहरण है। भगवान सोमनाथ की गण को लेकर हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि भक्ति प्रणाय कृतावतारं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये। अर्थात, भगवान सोमनाथ की कृपा अवतीर्ण होती है, कृपा के विक्रेता खुल जाते हैं। जितनी बार गिराया गया, उतनी ही बार खड़ा हुआ सोमनाथ मंदिर, जिन प्रकृति में सरदार पटेल जी के प्रयासों से मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ, वो दोनों ही हमारे लिए एक बड़ा संदेश है…”
अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए होने वाले भूमिपूजन की भावना में देश के तमाम महत्वपूर्ण मंदिरों की मिट्टी और नदियों को जल दिया गया, ताकि मंदिर निर्माण के लिए पीएम नरेंद्र मोदी संतों की प्रतिष्ठा में भूमि पूजन तथा उनका उपयोग किया गया। लेकिन सात दशक पहले जब ऐसी ही कोशिश सोमनाथ की प्राण प्रतिष्ठा के लिए दुनिया भर से मिट्टी बनने के लिए हुई थी तो नेहरू काफी नाराज हो गए थे।
मूल रूप से दुनिया के हर हिस्से से इन मामूली चीजों को मंगाया जाना प्रतीक था, भारत की वसुधैव कुटुंबकम की सूक्ष्म भावना पुरानी का, जिसमें सनातन जीवन दर्शन को किसी धर्म विशेष की जगह पूरी दुनिया और मानवता के कल्याण के लिए कार्य करने वाला बताया गया है। विश्वभर में सनातन धर्म का पालन किया: भारत धरता ‘विश्वगुरु है, इसलिए वसुधैव कुटुम्बकम। http://www.sanskritikrashtravad.com/article/1085/
नेहरू का नकली सेक्युलरिज्म: सरदार पटेल, के एम मुंशी जैसे लोगों के प्रयासों व भारत की सनातन परंपरा के लोगों द्वारा दिए गए धन के अनुसार जब सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार हो गया तब भी नेहरू को ना तो इसमें कोई दिलचस्पी थी, ना वे इसे लेकर अनुग्रह को लेकर आए देखना चाहते थे। राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को जीर्णोद्धार के मंदिर के समारोह में जाने से रोकने के लिए उचित प्रयास किए गए थे। क एम मुंशी को भी नेहरू ने एक बार हड़काने का प्रयास किया था। उन्हें बुलाकर समझाना चाहा था कि ये सब जो आप लोग कर रहे हैं, ये सब मुझे हिन्दू पुनरुत्थान के लिए किया गया कार्य करता है।
नेहरू की धर्मनिरपेक्षता: सरदार पटेल, के एम मुंशी जैसे लोगों के प्रयासों व भारत की सनातन परंपरा के लोगों द्वारा दिए गए धन के अनुसार जब सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार हो गया तब भी नेहरू को ना तो इसमें कोई दिलचस्पी थी, ना वे इसे लेकर अनुग्रह को लेकर आए देखना चाहते थे। राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को जीर्णोद्धार के मंदिर के समारोह में जाने से रोकने के लिए उचित प्रयास किए गए थे। केएम मुंशी मुंशी को भी नेहरू ने एक बार हड़काने का प्रयास किया था। उन्हें बुलाकर समझाना चाहा था कि ये सब जो आप लोग कर रहे हैं, ये सब मुझे हिन्दू पुनरुत्थान के लिए किया गया कार्य करता है।स्कीम, डिवीज़न के बाद के भारत में, सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण विशेष रूप से कठिन हो गया, विशेष रूप से प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के शासन में, जिन्होंने मंदिर के पुनर्निर्माण के सभी प्रयासों को “हिंदू पुनरुत्थानवाद” के प्रयासों के रूप में देखा।. 1950 में पटेल की मृत्यु के साथ, मुंशी के खाते में पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी आ गई। मुं मुंशी ने अपनी किताब ‘पिलग्रिमेज टू फ्रीडम’ में लिखा है कि 1951 की शुरुआत में कैबिनेट बैठक के बाद नेहरू ने उनसे कहा, “मुझे सोमनाथ को अधिकार करने की आपकी कोशिश पसंद नहीं है।
… भूतकाल में जो मेरा विश्वास है, वही वर्तमान में मुझे काम करने की शक्ति देता है और भविष्य की दिशा में देखने की दृष्टि देता है। मेरे लिए स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं, जो मेरी भागवत गीता कंठित ले, या फिर हमारे देश के करोड़ों लोगों को उनका विश्वास फैला ले, जिस दृष्टि से वो मंदिरों को देखते हैं, और इसकी वजह से हमारे जीवन के करोड़ों लोगों को छिन्न – अलग हो जाओ। मुझे ये सुअवसर प्राप्त हुआ है कि सोमनाथ के मंदिर के पुनर्निर्माण के सपने को साकार होते हुए देख सका। मुझे लगता है और इसके बारे में मैं पूरी तरह से गूंथा हूं कि एक बार अगर ये मंदिर हमारे लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण बिंदुओं के रूप में स्थापित हो जाएगा, तो फिर ये हमारे लोगों को धर्म के सही स्वरूप और हमारी शक्तियों के बारे में जो स्वतंत्रता के इन दिनों में और उसके व्यवहार के होश से भी सचेत करेगा, केएम मुंशी का यह पत्र उनकी पुस्तक पिलग्रिमेज टू फ्रीडम से लिया गया है।
देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जिन्हें प्राणप्रतिष्ठा के लिए मुंशी ने आमंत्रित किया था, उनकी प्रतिरोधी की कोशिश नेहरू ने जरूर की, लेकिन राजेंद्र बाबू नहीं माने। वो 11 मई 1951 को हुए प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में मुख्य यजमान के तौर पर शामिल हुए और भारतीय संस्कृति में सोमनाथ के महत्व को रेखांकन करते हुए ऐतिहासिक भाषण दिया। बृजेश कुमार सिंह ने भी अपने एक लेख में इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला है।
13 नवंबर 1947 के दिन सरदार पटेल ने खुद प्रभास पाटण आखिरी बार औरंगजेब के समय में 1701 में विध्वंस करते हुए इस मंदिर का फिर से निर्माण करने का संकल्प लिया था, भारत के गौरव के इस प्रतीक को फिर से उसका भव्य स्वरूप में आने का संकल्प लिया किया था। ये सातवीं बार सोमनाथ मंदिर के निर्माण की शुरुआत हुई थी।
सरदार पटेल के दिसंबर 1950 में देहांत के साथ ही सोमनाथ मंदिर के निर्माण की खिलाफत करने वाले चेहरे फ्रैंक बाहर आ गए, जिसमें खुद जवाहरलाल नेहरू भी थे। सरदार के न रहने पर पणिक्कर को भी भारत की सनातन परंपरा से ज्यादा चीन की चिंता हो रही थी, जिस चीन के प्रति उनके प्रेम ने भारत के जॉयक की बलि भी प्रस्थान किया जो बाद में देखने में आया। सरदार पटेल ने अपनी मौत के पहले ही चीन के बारे में जानकारी लेकर जाहिर चेतावनी की थी, जो पणिक्कर की राय से उलटी थी।
सोमनाथ मंदिर में 56 रत्न तथा हीरों से जडि़त खंभे थे जिन पर लगा सोना विभिन्न शिवधर्मी राजाओं द्वारा दिया गया था। इन खंभों पर बेशकीमती हीरे जवाहरात, रुबिया, मोती, पन्ने आदि जड़े थे। सोमनाथ का शिवलिंग 10 फुट ऊंचा और 6 फुट चौड़ा है। महमूद ने मंदिर से करीब 20 करोड़ दिन पहले लूट कर ज्योतिर्लिंग को तोड़ दिया था। फिर अपना शहर गजनी (अफगानिस्तान) के लिए कूच कर दिया गया था।
प्राचीन, मध्यकाल में हम एक ऐसे देश के रूप में जाने के लिए प्रसिद्ध थे, जहां धन-दौलत उमरती थी और यह सच था। हमें सोने की चिड़िया के रूप में सही मायने में और सही तरीके से जाना जाता था, सोना हमेशा भारतीयों की पसंदीदा रहा है क्योंकि इसे कई कीमती माना जाता है और अक्सर वैश्विक माना जाता है।
इसलिए हम प्राचीन काल से ही धार्मिक उद्देश्यों के लिए बहुत उदार रहे हैं। दानतो जाहिर है कि मंदिर हमेशा भारत में सबसे खास स्थान पर रहे हैं।
“जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वो भारत देश है मेरा…” फिल्मी प्राप्तकर्ता राजेंद्रकृष्ण के इस गीत के सच का एक उदाहरण सोमनाथ मंदिर का इतिहास है।
यू पी ए सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री रहे पी. मैंने कहा कि नई पीढ़ी को यह बताता है कि भारत की गौरवशाली घटना हो रही है, जहां दूध और शहद की नदियां बहती थीं, पूरी तरह से गलत है। उन्होंने कहा कि राज कि भारत में गरीबी हमेशा रही और इसे समृद्ध देश के रूप में अपनाया करने के तथ्य मिथा था। उन्होंने कहा कि यह शिक्षा देना कि भारत 500 साल पहले जल और दूध-शहद का देश था, तथ्यात्मक रूप से गलत है। भारत में गरीब था और है। वे रुके नहीं, आगे उन्होंने कहा कि भारत के गौरवशाली अतीत के शिक्षकों की पुस्तकों को जला दिया जाना चाहिए।
कार्ल मार्क्स भी यही सोचते थे : कम्युनिज़्म के पितामह काल मार्क्स भी भारत को ऐतिहासिक रूप से गरीब देश मानते थे। उनका दावा था कि भारत का ‘स्वर्णकाल’ गज एक भ्रम है। भारत हमेशा से घबराहट और भूखों का देश रहा। यही नहीं, मार्क्स ने कहा था कि ब्रिटिश शासकों ने भारत के कुटीर उद्योगों और उद्योगों को नष्ट करके ही अच्छा किया, ताकि भारत आधुनिक हो सके।
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