लखनऊ: लखीमपुर खीरी की गोला गोकर्णनाथ विधानसभा सीट (Gola Assembly Seat) पर हुए उपचुनाव में हार के बाद सपा की दो तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आईं। सपा मुखिया ने हार की जिम्मेदारी प्रशासन के दुरुपयोग और चुनाव आयोग की भूमिका पर डाल दी। वहीं, सोशल मीडिया पर सपा का रंज बसपा पर भी फूटा। एक के बाद एक ट्वीट कर सपा ने बसपा पर भाजपा को वोट ट्रांसफर करवाने के आरोप लगाए। वहीं, बसपा प्रमुख मायावती ने सोमवार को इसका जवाब देते हुए सपा पर तंज किया है कि इस बार तो हम लड़े भी नहीं, फिर क्यों सपा हार गई? तीन साल पहले गठबंधन सहयोगी रहे दोनों दलों के आपसी रंज और तंज के सार्वजनिक हो रहे किस्सों की वजह तलाशी जानी शुरू हो गई है।
बसपा क्यों बनी सपा की चिंता?
चुनाव में बसपा की मौजूदगी और गैर-मौजूदगी दोनों ही सपा के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। उपचुनावों के ट्रेंड तो यही इशारा कर रहे हैं। बसपा लड़ रही है तो सपा की जमीन खिसक रही है। बसपा चुनाव से बाहर रह रही है तो बसपा के वोट का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के खाते में जा रहा है। आजमगढ़ उपचुनाव में सपा की हार की एक बड़ी वजह बसपा उम्मीदवार गुड्डू जमाली की मुस्लिम वोटों में सेंधमारी थी। वहीं, रामपुर में बसपा ने उम्मीदवार नहीं उतारा। यहां दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के खाते में गया और उसे जीत मिली। वोटों के इस बदलते समीकरण के बीच सपा की एक बड़ी चिंता बसपा की मुस्लिम वोटों को साधने के लिए बढ़ी सक्रियता भी है। 2022 के चुनाव में सपा के साथ एकतरफा खड़े रहे अल्पसंख्यकों ने आजमगढ़ उपचुनाव में ही नए विकल्प के संकेत दे दिए। इमरान मसूद सहित दूसरे मुस्लिम चेहरों को साथ रखकर बसपा जनाधार बढ़ाने में लगी है, जिसका सीधा नुकसान सपा को होगा। दूसरी ओर, आजम खां की सजा और सदस्यता रद होने के बाद सपा के सामने बड़ा मुस्लिम चेहरा तैयार करने का भी संकट गहरा गया है। आजम की लड़ाई में सपा नेतृत्व पर उपेक्षा के आरोप अलग से लग रहे हैं।
मैनपुरी और रामपुर में भी अहम होगी बसपा की भूमिका
सपा के लिए मैनपुरी लोकसभा और रामपुर विधानसभा सीट पर 5 दिसंबर को होने वाला उपचुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बना है। चुनाव में बसपा उतरती है तो भी सपा की मुश्किलें बढ़ेंगी। नहीं उतरती है तो भी सपा संशय में है। 2019 का लोकसभा चुनाव सपा-बसपा ने मिलकर लड़ा था। इसके बाद भी मैनपुरी से मुलायम की जीत का अंतर 2014 के 3.64 लाख वोट से घटकर 94 हजार वोट पर आ गया था। यह गढ़ में सेंध लगने का साफ संकेत है। मैनपुरी में अति-पिछड़े और दलित वोटरों की प्रभावी संख्या है। बसपा अगर चुनाव नहीं लड़ती है और यह वोट भाजपा के पाले में जाता है तो सपा के लिए एक और गढ़ गंवाने का खतरा बढ़ जाएगा। इसलिए, सपा ने अभी से बसपा को भाजपा की ‘बी’ टीम घोषित करना शुरू कर दिया है, जिससे भाजपा-विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके और बसपा की ओर खिसकते वोटों को रोका जा सके।
तो उपचुनाव में नहीं उतरेगी बसपा?
मायावती के सपा पर किए गए तंज और सवालों में उपचुनाव की रणनीति भी दिख रही है। माया ने कहा है कि यह देखना अहम होगा कि मैनपुरी और रामपुर सीट सपा बचा पाती है कि नहीं? साफ तौर पर इन सीटों पर मायावती सपा-भाजपा के बीच लड़ाई मान रही हैं और अपनी दावेदारी नहीं दिखा रही हैं। माया का यह भी कहना है कि बसपा प्राय: उपचुनाव नहीं लड़ती। इससे यही संकेत मिल रहे हैं कि मैनपुरी और रामपुर दोनों ही सीटों के उपचुनाव में बसपा उम्मीदवार नहीं उतारेगी। अगर नतीजे सपा के पक्ष में नहीं आए तो बसपा फिर दावे के साथ कह सकेगी कि सपा, भाजपा को हराने में सक्षम नहीं है और आजमगढ़ की तरह उस पर वोट बांटने का आरोप नहीं लगेगा। ऐसे में वही यूपी में भाजपा का विकल्प है। नतीजे सपा के पक्ष में गए, तब भी बसपा यह कह सकेगी कि वह भाजपा के विरोध की लड़ाई लड़ रही है।
सपा का बसपा पर हमला
बसपा के टिकट और रणनीति भाजपा कार्यालय से निर्धारित होते हैं। दलितों पिछड़ों और मुसलमानों को बांटकर भाजपा चुनाव जीतने की रणनीति बनाती है, जिसमें बसपा भाजपा की सहयोगी है। बसपा ने हर बार दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के वोटों का भाजपा से सौदा किया है और इन बिरादरियों को धोखा दिया है! पहले भी कई बार बसपा का भाजपा के साथ गठबंधन हो चुका है। कई मौकों पर स्वयं मायावती ने सपा को हराने के लिए भाजपा को समर्थन का खुला ऐलान किया। 2019 में सपा ने दलित-पिछड़े को एक करने के लिए आगे बढ़कर बसपा को ज्यादा सीटें और सम्मान दिया, लेकिन अंदरूनी तौर पर बसपा ने धोखा दिया।
मायावती ने दिया जवाब
यूपी के खीरी की गोला गोकर्णनाथ विधानसभा सीट का उपचुनाव भाजपा की जीत से ज्यादा सपा की 34,298 वोटों से करारी हार के लिए काफी चर्चाओं में है। बीएसपी जब अधिकांशतः उपचुनाव नहीं लड़ती है और यहां भी चुनाव मैदान में नहीं थी, तो अब सपा अपनी इस हार के लिए कौन सा नया बहाना बनाएगी? अब अगले महीने मैनपुरी लोकसभा और रामपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में, आजमगढ़ की तरह ही, सपा के सामने अपनी इन पुरानी सीटों को बचाने की चुनौती है। देखना होगा कि क्या सपा ये सीटें भाजपा को हराकर पुनः जीत पाएगी या फिर वह भाजपा को हराने में सक्षम नहीं है, यह पुनः साबित होगा।
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