Ram Vivah: सरयू तट पर होगा राम विवाह उत्सव का भव्य आयोजन, 27 से 30 नवंबर तक चलेगा रामायण मेला – Lok Shakti

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Ram Vivah: सरयू तट पर होगा राम विवाह उत्सव का भव्य आयोजन, 27 से 30 नवंबर तक चलेगा रामायण मेला

अयोध्या: सरयू तट पर राम कथा पार्क में 27 से 30 नवंबर तक आयोजित होने वाले 41वें रामायण मेला की तैयारी बैठक में इस साल के नवीन प्रारूप की रूपरेखा और कार्यक्रम पेश किए गए। समिति के 4 सदस्यों की कमिटी गठित की गई जो देश भर के विद्वानों को राम कथा पर प्रवचन के लिए आमंत्रित करेगी।इस वर्ष भी डॉ. जनार्दन उपाध्याय को तुलसीदल पत्रिका के संपादन की रूप रेखा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

रामायण मेला समिति के महामंत्री डॉ. वी एन अरोड़ा ने बताया कि रामायण मेला समिति के संयोजक आशीष मिश्र ने कुछ नए थीम पर कार्यक्रम को करवाने का प्रस्ताव रखा है, जो कि सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष रामायण मेला में राम विवाह का उत्सव मनाया जाएगा। सांस्कृतिक कार्यक्रम में 4 दिन पारंपरिक तरीके से राम जी का विवाह कराने का निर्णय किया गया है ।

चार दिवसीय कार्यक्रम इस तरह होंगे
पहले दिन
माता सीता का गौरी पूजन।
फूल बगिया में सीता जी का राम जी को देखना और सखियों द्वारा संवाद।
गौरी पूजन, धनुष टूटना, रावण उपहास, रावण बाणासुर संवाद, परशुराम आगमन, परशुराम लक्ष्मण संवाद, स्वयंवर गीत।

दूसरे दिन
राम लखन जी का गुरु विश्वामित्र जी की आज्ञा के बाद दशरथ जी से मिलना, बारात आगमन गीत, द्वार पूजा, मिथिला की गारी, परछावन, बारातियों का उपहास, विवाह मंडप आगमन, विवाह गीत, वर पूजन, दोनों कुल का वंशावली वर्णन, कन्यादान, पाव पूजन, पाणिग्रहण, सिंदूरदान, सप्त पद गीत, भावर फेरे गीत, विवाह सखियों के द्वारा परिहास मजाक उड़ाना, लोकाचार गीत।

तीसरे दिन
राम कलेवा, समधी मिलन, सब को विदाई देकर संतुष्ट करना भोजन मजाक, जनकपुर से डोम और डोमिन राम जी अपने थाली में से भोजन देते हुए धूम द्वारा गीत गाना।

चौथे दिन
प्रेम वस बारातियों का लगभग एक महीना मिथिला में रुकना, विदाई रस्म, विदाई गीत, सुरैया जी द्वारा राम जी को समझाना, अंगूठी की रस्म, समस्त जनकपुरी प्रसन्न होकर बारातियों का विदाई करना अयोध्या में सीता जी का आगमन के बाद पूजन परछावन एवं अयोध्या में उत्सव गीत।

अपनी परंपराएं पूरी दुनिया में करेंगे प्रचारित
समिति के उपाध्यक्ष महंत जनमेजय शरण ने बताया कि इस प्रकार के पारंपरिक कार्यक्रम होने पर हमारे पारंपरिक गीत एवं परंपराएं पूरी दुनिया में प्रचारित एवं प्रसारित होंगी। साथ ही खो रही परम्परा लोकगीत एवं गायन को पुनः संरक्षित करने का प्रयास होगा।