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Allahabad High Court : पूर्व की प्रक्रिया का पालन किए बिना गैर जमानती वारंट जारी करना गलत

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पूर्व प्रक्रिया पूरी किए बिना निचली अदालत की ओर से सीधे गैर जमानती वारंट जारी करना गलत है। कोर्ट ने निचली अदालत की ओर से जारी आदेश और पूरी प्रक्रिया को रद्द करते हुए निचली अदालत को मामले में नए सिर से आदेश पारित करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने हाईकोर्ट के महानिबंधक को निर्देश दिया कि उक्त आदेश प्रदेश की सभी जिला अदालतों को भेज दिया जाए जिससे सुप्रीम कोर्ट की ओर से उषा जैन, सत्येंद्र कुमार सहित कई अन्य केसों में पारित आदेश के तहत की गई कानूनी व्यवस्था का पालन हो सके।  यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने कौशाम्बी के पश्चिमी शरीरा थाने में दर्ज प्राथमिकी में आरोपी पीर मोहम्मद की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

मामले में याची के खिलाफ आईपीसी की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 504, 506 सहित एससी/एसटी एक्ट में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल किया तो निचली अदालत ने उसका संज्ञान लेते हुए आरोपी को गैर जमानती वारंट जारी कर दिया। जबकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में कहा कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद पहले समन, फिर जमानती और फिर गैर जमानती वारंट जारी करना चाहिए लेकिन निचली अदालत ने सीधे गैर जमानती वारंट जारी कर दिया। यह नियम के विरुद्ध है। कोर्ट ने निचली अदालत की ओर से गैर जमानती वारंट के आदेश को रद्द कर नए सिरे से प्रक्रिया पूरी कर आदेश पारित करने का आदेश दिया।

हत्या के आरोपी को मिली जमानत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अलीगढ़ के थाना टप्पल में आठ वर्ष पूर्व हुई हत्या की घटना में आरोपी चंद्रमोहन की जमानत मंजूर कर ली है। उसे निजी मुचलके और दो प्रतिभूतियों पर रिहा करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की खंडपीठ ने चंद्रमोहन की अपील पर सुनवाई करते हुए दिया है।

मामले में सत्र न्यायालय ने याची को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। याची ने सत्र न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए अपनी जमानत के लिए अर्जी दाखिल की थी। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले पर रोक लगाते हुए जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया है। याची पर आरोप है कि उसने एक व्यक्ति की निर्मम हत्या करने सहित उसकी गाड़ी भी जला दी थी।

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पूर्व प्रक्रिया पूरी किए बिना निचली अदालत की ओर से सीधे गैर जमानती वारंट जारी करना गलत है। कोर्ट ने निचली अदालत की ओर से जारी आदेश और पूरी प्रक्रिया को रद्द करते हुए निचली अदालत को मामले में नए सिर से आदेश पारित करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने हाईकोर्ट के महानिबंधक को निर्देश दिया कि उक्त आदेश प्रदेश की सभी जिला अदालतों को भेज दिया जाए जिससे सुप्रीम कोर्ट की ओर से उषा जैन, सत्येंद्र कुमार सहित कई अन्य केसों में पारित आदेश के तहत की गई कानूनी व्यवस्था का पालन हो सके।  यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने कौशाम्बी के पश्चिमी शरीरा थाने में दर्ज प्राथमिकी में आरोपी पीर मोहम्मद की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

मामले में याची के खिलाफ आईपीसी की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 504, 506 सहित एससी/एसटी एक्ट में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल किया तो निचली अदालत ने उसका संज्ञान लेते हुए आरोपी को गैर जमानती वारंट जारी कर दिया। जबकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में कहा कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद पहले समन, फिर जमानती और फिर गैर जमानती वारंट जारी करना चाहिए लेकिन निचली अदालत ने सीधे गैर जमानती वारंट जारी कर दिया। यह नियम के विरुद्ध है। कोर्ट ने निचली अदालत की ओर से गैर जमानती वारंट के आदेश को रद्द कर नए सिरे से प्रक्रिया पूरी कर आदेश पारित करने का आदेश दिया।