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लावारिस लाल कार, लैब में खून से सनी PhD स्‍कॉलर लड़की की लाश…9 साल पहले का वो ब्‍लाइंड मर्डर जब दहल गया आगरा

दिल्‍ली के निर्भया कांड (16 दिसंबर, 2012) से भड़के गुस्‍से की आग अभी शांत भी नहीं हुई थी। इसी बीच 200 किलोमीटर दूर मोहब्‍बत की नगरी आगरा में हुए एक ब्‍लाइंड मर्डर (Agra Blind Murder) ने खलबली मचा दी। यह उस समय का बहुत चर्चित और जघन्‍य अपराध था। वाकया 9 साल पहले की एक सर्द शाम का है। 15 मार्च, 2013 को शाम सात बजे के आगरा के पुलिस कंट्रोल रूम में फोन आता है। सूचना ये आई कि दयालबाग खेल गांव के पास एक लावारिस ऑल्‍टो कार खड़ी हुई। कार का रंग लाल था। कार काफी देर से खड़ी हुई है। सूचना वायरलेस पर प्रसारित हुई। उस इलाके के बीट सिपाही को ये सूचना मिली। खेल गांव और दयालबाग का नाम सुनकर वह सीधे मौके पर पहुंच गए। गाड़ी लॉक थी। काफी कोशिशों के बाद भी नहीं खुली तो सिपाही ने किसी चाबी वाले को बुलाया। करीब आधे पौन घंटे लग गए गाड़ी को खुलवाने में। ड्राइविंग सीट की बगल वाली सीट पर एक कागज पड़ा हुआ था। उसमें एक मोबाइल नंबर लिखा था। इसके अलावा उस गाड़ी में कोई चीज असामान्‍य नहीं थी।

रिटायर्ड आईपीएस अफसर राजेश पांडेय ने आगरा के इस बहुचर्चित हत्‍याकांड के बारे में अपने यूट्यूब चैनल पर बेहद बारीक जानकारियां साझा की हैं। वह बताते हैं कि सिपाहियों ने तत्‍काल कागज पर लिखे मोबाइल नंबर पर फोन मिला दिया। पता चला कि कार के मालिक ऋषि पाल शर्मा हैं। उनको बताया गया कि उनकी गाड़ी इस-इस तरह से दयालबाग में खेल गांव के पास खड़ी हुई है। यह सुनते ही ऋषि पाल को काटो तो खून नहीं। उन्‍होंने फौरन तमाम रिश्‍तेदारों और मित्रों को इस बारे में बताया। ऋषि पाल आगरा के राधास्‍वामी संप्रदाय से जुड़े थे। ये सभी लोग मौके पर भागते-भागते आए। पाल ने बताया कि लाल रंग की यह गाड़ी उनकी 23 साल की बेटी नेहा शर्मा इस्‍तेमाल करती है और आज सुबह वो ही ये कार लेकर घर से कॉलेज गई थी। वह शाम पांच बजे तक घर आ जाती है लेकिन उस दिन वह देर शाम तक घर नहीं पहुंची थी। उसकी मां भी मौके पर पहुंची। लोगों ने बहुत कोशिश की, लेकिन पता नहीं चल पाया कि आखिर कार यहां कैसे पहुंची? थाने पर घरवालों ने बताया कि नेहा आज सुबह अपने कॉलेज दयालबाग एजुकेशनल इंस्‍टीट्यूट गई थी। वह पीएचडी की स्‍कॉलर थी। निर्भया कांड के चलते माहौल बहुत खराब था। मामले की गंभीरता को देखते हुए आगरा के सारे बड़े पुलिस अफसर मौके पर पहुंच गए।

पुलिस गिरफ्त में उदय स्‍वरूप

आंटी, नेहा दीदी तो मूवी का टिकट ले रही हैं…
इस बीच, मां ने बताया कि शाम छह बजे से वह नेहा के मोबाइल पर 50 फोन कर चुकी है, लेकिन फोन नहीं उठ रहा था। अभी थोड़ी देर पहले फोन उठा और एक लड़के ने बताया कि नेहा दीदी तो सदर बाजार गई हैं। अभी मां कुछ पूछ पाती कि तुम कौन हो, तुम्‍हारे पास नेहा का फोन कैसे आया? नेहा सदर बाजार किसलिए गई है, वह फोन क्‍यों साथ लेकर नहीं गई, उधर से फोन कट गया। करीब आधे घंटे तक फिर कई बार फोन किया गया पर उठा नहीं। आधे घंटे बाद उसी लड़के ने फोन उठाया और कहा कि आंटी, नेहा दीदी तो मूवी का टिकट लेने के लिए लाइन में खड़ी हैं, इसलिए अपना मोबाइल उन्‍होंने मुझे दे दिया है। मां बार-बार पूछती रही कि तुम कौन हो, नेहा किस मूवी का टिकट ले रही है, वह कौन से थियेटर में है पर उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया और एक बार फिर फोन कट गया। इसके बाद नेहा की मां ने करीब 20 बार फोन मिलाया पर फोन नहीं उठा और थोड़ी देर बाद स्विच ऑफ हो गया।

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आखिरी बार लैब जाती हुई दिखाई दी थी नेहा
ये बात पुलिस अधिकारियों को बताई गई। पुलिस अफसर घर वालों से कहते हैं अगर नेहा का किसी से प्रेम संबंध है तो बताइए। हो सकता है कि वह उसके साथ मूवी देखने गई हो। किसके साथ आती जाती थी, आप लोगों को किसी पर शक हो तो बताइए, किससे संबंध थे? इस तरह की बातें पूछी जाने लगी। पुलिस ने अलग-अलग एंगल से पूछताछ की पर कोई सुराग नहीं लग पा रहा था। एक जवान लड़की के इस तरह गायब हो जाने से पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया था। घरवालों ने बताया कि नेहा दयालबाग एजुकेशनल इंस्‍टीट्यूट में बायो टेक्नोलॉजी से पीएचडी कर रही थी। पुलिस ने इस इंस्‍टीट्यूट के रास्‍ते में पड़ने वाली जगहों पर पूछताछ की। रात में रिसर्च कर लौट रहे कुछ स्‍टूडेंट्स से भी बात की गई। किसी स्‍टूडेंट ने बताया कि नेहा को आज अंतिम बार नैनो बायो टेक्नोलॉजी लैब की तरफ जाते हुए देखा गया था। नैनो बायो टेक्नोलॉजी काफी एडवांस कोर्स है। इससे पता चलता है कि इसमें पीएचडी कर रही नेहा पढ़ने में काफी तेज थी। उसने एमएससी के बाद एम फिल किया था। एम फिल के बाद वह नैनो बायो टेक्नोलॉजी में रिसर्च कर रही थी।

नेहा के साथ पढ़ने वाले बच्‍चों ने जानकारी दी है कि दयाल एजुकेशनल इंस्‍टीट्यूट के चेयरमैन जो कि पूर्व आईएएस भी हैं, उनका एक भांजा है। उसका नाम है उदय स्‍वरूप। वह अक्‍सर लैब में आया करता था। थोड़ी देर बैठता था। दूसरे रिसर्च स्‍कॉलर्स से बातचीत करता था। पानी पीता था और चला जाता था। बच्‍चों को शक है कि हो न हो ये उसी की करतूत है। वह बहुत मनबढ़ किस्‍म का है और अपने मामा के दम पर दबंगई दिखाता है।

नेहा के घरवाले

सलवार घुटने से नीचे खिसकी हुई, लैब में हर तरफ खून ही खून
पुलिस रात में ही माता-पिता को लेकर लैब पहुंची। लैब बंद कर कॉलेज का स्‍टाफ जा चुका था। लैब का ताला तोड़ा गया। लैब में जो दिखा उससे सबके होश उड़ गए। नेहा फर्श पर पड़ी हुई थी। पूरे लैब में खून ही खून बिखरा हुआ था। नेहा के मुंह में रुमाल ठूंसा हुआ था। उसके हाथ पीछे की ओर बंधे हुए थे। उसके शरीर पर बीसों जगह कटने के निशान थे। ऐसा लग रहा था किसी नुकीले औजार से काटा गया था। पूरे लैब में हर तरफ खून से सने टिशू पेपर फेंके गए थे। देखकर लग रहा था कि मारने वाले ने हर वार के बाद अपना हाथ टिशू पेपर से साफ किया होगा। मां वही बेहोश हो गिर गई। बाप भी जमीन पर बैठ गया। इतना खौफनाक मंजर देखकर हर कोई हैरान रह गए। पुलिस वाले भी। लैब में रिसर्च के दौरान इस्‍तेमाल होने वाला पिपेट का छोटा टुकड़ा फर्श पर पड़ा था, बाकी का हिस्‍सा नेहा की पेट में घुसा हुआ था। पिपेट कांच का बना एक लंबा उपकरण होता है जिसकी मदद से रिसर्च स्‍कॉलर किसी केमिकल की नाप लेते हैं। नेहा की सलवार घुटने के नीचे तक खिसकी हुई थी। देखने में साफ लग रहा था कि या तो उसके साथ बलात्‍कार हुआ है या फिर कोशिश की गई है। लैब में इस तरह एक जवान लड़की की लाश मिलने की खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। पुलिस ने मौके से सबूत इकट्ठा करने के बाद लैब को सील कर दिया। नेहा की बॉडी को पोस्‍टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया।

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आगरा की सड़कों पर उतर आए नाराज लोग
निर्भया कांड को लोग अभी भूले नहीं थे। ऐसे में 16 मार्च की सुबह जब यह मर्डर आगरा के अखबारों की सुर्खियां बनी तो लोगों का गुस्‍सा भड़क उठा। सभी स्‍कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राएं सड़क पर आ गए। महिलाओं के संगठनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। हत्‍यारों को पकड़ने और उन्‍हें कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग जोर पकड़ने लगी। नेहा के कत्‍ल को तीन दिन बीत चुके थे। पुलिस ने नेहा के साथ पढ़ने वाले सभी लोगों की सूची बनाई। नेहा और उसके सभी दोस्‍तों चाहे वह लड़की हो या लड़का, सभी के मोबाइल का सीडीआर (कॉल डिटेल रेकॉर्ड) निकाला जाने लगा। कॉलेज कैंपस के भीतर बायो टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट और उसके भीतर मौजूद लैब में रिसर्च स्‍कॉलर का शव मिलने से पुलिस के पास ज्‍यादा स्‍कोप नहीं था कि वह बाहर पूछताछ के लिए भटके। इसलिए पुलिस नेहा के साथ पढ़ने वाले लोगों से पूछताछ पर ही ज्‍यादा जोर दे रही थी। आईजी जोन और डीआईजी रेंज ने मिलकर पुलिस अफसरों की एक बड़ी टीम बनाई। आसपास के जिलों से भी क्राइम में रुचि रखने वाले कुछ इंस्‍पेक्‍टर्स और सब इंस्‍पेक्‍टर्स इस काम में लगाए गए। सादे कपड़े में कुछ पुलिसकर्मी कॉलेज कैंपस में भी तैनात किए गए ताकि कुछ सुराग हाथ लग सके।

ठेकेदार की शर्ट पर मिले खून के दाग
इस बीच नैनो बायो टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के एक प्रोफेसर ने पुलिस को बताया कि कॉलेज में कंस्‍ट्रक्‍शन का काम करा रहे ठेकेदार विशाल शर्मा के कपड़ों पर खून के दाग देखे गए हैं। प्रोफेसर को यह जानकारी विशाल शर्मा के घर के पास रहने वाले बच्‍चों ने दी थी। डर की वजह से बच्‍चे पुलिस के पास नहीं गए। दूसरी बात उन्‍होंने बताई कि विशाल के साइकिल में भी खून के धब्‍बे लगे हुए थे। पुलिस को लगा कि हमारा काम हो गया। विशाल शर्मा उठाया गया और थाने पर लाया गया। वाकई में उसके शर्ट, जूते और साइकिल पर लाल धब्‍बे पड़े हुए थे। इन धब्‍बों को पानी से धोकर छुड़ाने की कोशिश की गई थी। पुलिस ने पूछताछ शुरू की। उसने बताया कि साहब हम ठेकेदार हैं। हम तमाम इमारतों में पेटिंग्‍स का काम भी करते हैं। ये निशान पेंट के ही हैं, लेकिन पुलिस कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। बहरहाल, सीनियर अफसरों के हस्‍तक्षेप के बाद पुलिस ने ठेकेदार की शर्ट, जूते और साइकिल पर मिले धब्‍बों को जांच के लिए आगरा स्थित फोरेंसिंक लैब में भेजा। तीन दिन बाद रिपोर्ट आई। इसमें यह स्‍पष्‍ट हो गया कि ये खून के धब्‍बे नहीं थे। ये कोई रंग है जो हूबहू खून से मैच कर रहा है। विशाल शर्मा को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया।

पुलिस को लगाने पड़े हाई कोर्ट के चक्‍कर
नेहा के कॉलेज का स्‍टाफ पुलिस जांच में कोई खास सहयोग नहीं दे रहा था। नतीजन 15 दिन बाद भी पुलिस के हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लग पाया था। कॉलेज के लोगों ने पुलिस पर परेशान किए जाने का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में रिट दाखिल कर दी। आरोप यही कि पुलिस सीनियर प्रोफेसरों को, सीनियर कर्मचारियों को बार-बार थाने बुलाकर तंग कर रही है पैसों के लिए। अब जब पुलिस पर इस तरह के आरोप लगाए जाते हैं तो पुलिस का काम धीमा पड़ जाता है। कॉलेज का कोई भी प्रोफेसर, कोई भी स्‍टूडेंट पुलिस के पास आने को तैयार नहीं था। अगर उन्‍हें पूछताछ के लिए थाने बुलाया जाता था तो उनकी तरफ से फौरन एक याचिका हाई कोर्ट में पड़ जाती थी। हाई कोर्ट में डेट पड़ती थी और पुलिस अधिकारियों को जवाब देना पड़ता था।

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कॉलेज चेयरमैन के दबंग भांजे का आया नाम
एक दिन नेहा के घरवालों ने आईजी जोन आगरा से संपर्क किया। उन्‍होंने बताया- ‘सर, नेहा के साथ पढ़ने वाले बच्‍चों ने जानकारी दी है कि दयाल एजुकेशनल इंस्‍टीट्यूट के चेयरमैन जो कि पूर्व आईएएस भी हैं, उनका एक भांजा है। उसका नाम है उदय स्‍वरूप। वह अक्‍सर लैब में आया करता था। थोड़ी देर बैठता था। दूसरे रिसर्च स्‍कॉलर्स से बातचीत करता था। पानी पीता था और चला जाता था। बच्‍चों को शक है कि हो न हो ये उसी की करतूत है। वह बहुत मनबढ़ किस्‍म का है और अपने मामा के दम पर दबंगई दिखाता है। वह कहता है कि इस कैंपस के भीतर हम चाहे जो करें मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। शायद इसीलिए बच्‍चे पुलिस के सामने आकर उसका नाम नहीं ले रहे हैं।’ पुलिस ने जब उदय स्‍वरूप को थाने में पूछताछ के लिए बुलाया तो बड़े-बड़े लोगों के फोन आने लगे। उसके चेयरमैन मामा ने फोन कर कहा कि उदय कोई चोर या लुटेरा नहीं है जो उसे थाने में बुलाकर पूछताछ की जा रही है। पुलिस को जो कुछ भी पूछना है घर पर आकर पूछ सकती है। मैंने उसको घर पर रोक रखा है। पुलिस घर पहुंची और पूछताछ शुरू की। उसके सारे जवाबों से ये लगा कि वह नेहा को जानता ही नहीं है। साफ इनकार करता है कि मैं नेहा को जानता ही नहीं। पूछताछ से पुलिस को भी लगा कि उदय का इस मर्डर से वास्‍ता नहीं है। वहीं, पुलिस पूछताछ से उदय का परिवार काफी नाराज हो गया।

उदय के घरवालों ने पुलिस पर लगाया उत्‍पीड़न का आरोप
कॉलेज में सादी वर्दी में तैनात पुलिसवालों ने धीरे-धीरे छात्र-छात्राओं से बातचीत शुरू की। सबने शक जताया कि ये उदय की ही करतूत हो सकती है। पुलिस ने एक बार फिर उदय स्‍वरूप से पूछताछ करने का फैसला लिया। पुलिस उसके घर पहुंची और इस बार थोड़ी कड़ाई बरती। अगले ही दिन हाई कोर्ट में घरवालों ने पुलिस के उत्‍पीड़न की शिकायत दर्ज करा दी। एक रिट लगा दी गई। इसी बीच नेहा की पोस्‍टमॉटर्म रिपोर्ट भी आ गई। इसमें दो बड़ी बातों का खुलासा हुआ। पहला यह कि नेहा की हत्‍या से पहले उसे क्‍लोरोफॉर्म सुंघाकर बेहोश किया गया। नेहा के साथ बलात्‍कार हुआ या नहीं, इसको लेकर रिपोर्ट में कुछ स्‍पष्‍ट नहीं किया गया। गोलमोल बातें बताई गई मसलन स्‍लाइड ले ली गई है, जांच के लिए भेज दी गई है। आने पर बताया जाएगा।

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लैब में मिले बालों से कातिल का लग गया सुराग
कत्‍ल के 15 दिन बार 29 मार्च को पुलिस एक बार फिर बायो टेक्नोलॉजी लैब गई। पुलिस ने वहां दो सीसीटीवी कैमरे लगवाए ताकि हर एंगल से जांच कवर हो सके। लैब में मौजूद उपकरणों पर धूल जम गई थी, उसे कागजों में इकट्ठा किया जाने लगा। खून सूख चुका था, इसलिए फर्श को साफ किया जाने लगा। करीब ढाई घंटे तक पुलिस ने साफ सफाई की और इस दौरान जो भी सामान मिला – कूड़ा करकट, किसी उपकरण का पार्ट, धूल आदि सब अलग-अलग पैकेटों में इकट्ठा कर लिया गया। लैब के सभी उपकरणों पर मौजूद फिंगर प्रिंट्स भी ले लिए गए। फोरेंसिक लैब में इन सब चीजों की बहुत बारीकी से जांच की गई। इस दौरान कुछ बाल मिले। कुछ बाल महिला के थे तो कुछ पुरुष के। इसके बाद पुलिस एक बार फिर उदय के घर पहुंची और उसके पहने हुए एक कपड़े की मांग की। इस बात पर घरवालों ने घोर विरोध जताया पर बाद में उन्‍होंने उदय का कपड़ा दे दिया। यहां ध्‍यान देने वाली बात है कि पुरुषों के पैंट, अंडरगारमेंट या फिर बनियान को आप जब भी चेक करेंगे तो उनके शरीर का कोई न कोई बाल उसमें चिपका हुआ जरूर मिल जाएगा। फोरेंसिक लैब ने बहुत सावधानी से उदय स्‍वरूप के कपड़ों में चिपके हुए बाल निकाले। इनमें से कुछ प्‍यूबिक हेयर्स भी थे यानी उदय के गुप्‍तांग के बाल। जब इन प्‍यूबिक हेयर्स को बायो टेक्नोलॉजी लैब में मिले बाल से मैच कराया गया तो दोनों पूरी तरह से मैच हो गए। यानी ये बाल उदय स्‍वरूप के ही थे। इससे पुलिस का शक पुख्‍ता हो गया कि इस मर्डर में उदय स्‍वरूप का ही हाथ है।

लैब टेक्निशियन का कनेक्‍शन सामने आया
पुलिस इस मामले में करीब ढाई सौ लोगों से पूछताछ कर चुकी थी। इतने दिन बीतने पर केस को सीबीआई को सौंपने की मांग उठने लगी थी। पुलिस ने नेहा से रिलेशन को लेकर उदय स्‍वरूप के दोस्‍तों से भी पूछताछ की। इसी बीच दयालबाग इंस्‍टीट्यूट के एक प्रोफेसर ने पुलिस को बताया कि मर्डर वाले दिन नेहा की लाल रंग की कार को लैब का एक टेक्निशियन यशवीर संधू चला रहा था। पुलिस देर रात संधू के घर गई और उसे उठा लाई। पूछताछ के दौरान संधू ने पूरी घटना तो बताई लेकिन आरोपी का नाम नहीं बताया।

नेहा नहीं देती थी लिफ्ट, इस बार टूट गया उदय स्‍वरूप
अब पुलिस ने लैब में काम करने वाले चपरासियों और सफाई कर्मचारियों से लंबी-लंबी पूछताछ शुरू की। इस पूछताछ से यह पता चल गया कि उदय स्‍वरूप बार-बार लैब में आता था। अब पुलिस ने दबाव डालकर उदय स्‍वरूप को पूछताछ के लिए थाने बुलाया। एक साइकोलॉजिस्‍ट को भी साथ में बैठाया गया। पुलिस ने इस बार उससे मौखिक सवाल नहीं किए। छोटी-छोटी पर्चियों में ढेरों सवाल लिखे गए और उदय से कहा कि वह लिखकर सबका जवाब दे। पुलिस ने कड़े सवालों से ऐसी घेराबंदी की कि इस बार उदय स्‍वरूप टूट गया। उसने नेहा की हत्‍या करने का सच कबूल कर लिया। उदय स्‍वरूप और यशबीर संधू को पुलिस ने अरेस्‍ट कर लिया। इस जांच टीम में एक एसपी स्‍तर का अफसर, दो डीएसपी समेत 15 पुलिसकर्मी शामिल थे। पूछताछ में उदय स्‍वरूप ने बताया कि वह बार बार लैब जाकर नेहा से बातचीत करने की कोशिश करता था पर नेहा उसे बिलकुल लिफ्ट नहीं देती थी। इस बात से परेशान होकर उसने लैब टेक्निशियन यशवीर संधू से संपर्क साधा। उदय को पता था कि यशवीर संधू ही कभी कभी नेहा की गाड़ी ड्राइव कर उसको घर छोड़ता था।

चुपके से पीछे आया, नाक पर रख दी क्‍लोरोफॉर्म से डूबी रुमाल
15 मार्च, 2013 को संधू ने उदय को फोन कर बताया कि आज लैब में नेहा अकेली है। और कोई रिसर्च स्‍कॉलर नहीं है। चपरासी को लेकर मैं बाहर चाय पिलाने जा रहा हूं। तुम चाहो तो आ सकते हो। उदय स्‍वरूप अपने साथ लैब में यूज होने वाली क्‍लोरोफॉर्म की शीशी लेकर आया। वह लैब पहुंचा तो देखा नेहा अपना काम कर रही थी। नेहा ने उसे एक बार फिर नजरअंदाज कर दिया। उदय चुपके से नेहा के पीछे आया और अपने रुमाल पर क्‍लोरोफॉर्म डाल दिया। और एक झटके में रुमाल नेहा के नाक पर रख दबा दिया। थोड़ी ही देर में नेहा बेहोश होकर फर्श पर गिर गई। उदय ने अब नेहा के मुंह में रुमाल ठूंस दिया और उसके हाथ पीछे से बांध दिए। इसके बाद उसने सलवार उतारने की कोशिश की पर शायद क्‍लोरोफॉर्म कम तीव्रता का था, इसलिए नेहा पूरी तरह बेहोश नहीं हो पाई थी। उसने उदय की हरकतों का कड़ा प्रतिरोध किया। हाथ तो बंधे थे उसने पैर चलाकर, उठ कर और सिर झटककर उदय को उसके मकसद में कामयाब नहीं होने दिया।

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नुकीले पिपेट से किया वार, लैपटॉप तोड़ डाला
इस पर झल्‍लाए उदय ने कांच का पिपेट उठाया और उसे आधा तोड़कर नेहा पर हमला करना शुरू कर दिया। वह नेहा के शरीर पर नुकीले पिपेट से लगातार वार करता रहा। करीब डेढ़ घंटे तक शरीर से बहुत ज्‍यादा खून बह जाने की वजह से उसकी जान चली गई। अब उदय ने नेहा की कार की चाबी उठाई और लैब के बाहर मौजूद यशवीर संधू को दे दी ताकि वह उसे दूर कहीं ठिकाने लगा दे। यशवीर ने नेहा की कार को चुपके से दयालबाग के खेल गांव के पास खड़ी कर दी और वहां से चला आया। इसके बाद चपरासी से लैब में ताला लगवा दिया। इस बीच उदय ने नेहा के लैपटॉप को पूरी तरह से तोड़कर वहीं पास की झाड़ियों में फेंक दिया। मर्डर के 39 दिनों बाद 23 अप्रैल, 2013 में इस घटना का खुलासा हुआ और साल 2015 में दोनों आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल हुई। चार्जशीट फाइल करने में पुलिस को इतना समय इसलिए लग गया क्‍योंकि आरोपियों ने हाई कोर्ट में कई याचिकाएं लगाकर मामले को लटकाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने हर याचिका का बखूबी जवाब दिया। जब हाई कोर्ट से सारे स्‍टे खारिज हो गए तब कहीं जाकर चार्जशीट फाइल हो पाई। फिलहाल मामले की सुनवाई कोर्ट में चल रही है। उदय स्‍वरूप और यशबीर संधू 9 सालों से जेल में बंद हैं।