10-6-2022
दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती ताकत का सामना करने के लिए अब भारत और वियतनाम अपने रणनीतिक संबंधों को और मजबूत कर रहे हैं। इसी की दिशा में कार्य करते हुए दोनों देशों ने बीते दिन बुधवार को 10 वर्षीय विजन दस्तावेज सहित प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जो चीन से क्षेत्रीय चुनौतियों के बीच दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को गहरा करने का प्रयास करता है। वियतनाम में अपने तीन दिवसीय दौरे के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने वियतनामी समकक्ष के साथ द्विपक्षीय वार्ता की, जिसके दौरान दोनों पक्ष हनोई को 500 मिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट के विस्तार पर सहमत हुए।
लाइन ऑफ़ क्रेडिट एक पूर्व निर्धारित उधारी सीमा है जिसमें उधारकर्ता अपनी आवश्यकता अनुसार तब तक धन निकाल सकता है जब तक की अधिकतम सीमा तक न पहुंच जाये। इसका उपयोग वियतनाम भारत से रक्षा उपकरण खरीदने के लिए करेगा। ऐसा भी अनुमान लगाया जा रहा है कि इन रक्षा उपकरणों में भारत की बनाई ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल शामिल हो सकती है, जिस पर वियतनाम कुछ समय से नजर गड़ाए हुए है। वियतनाम से पहले फिलिपिन्स यह मिसाइल खरीद चुका है।
दोनों देशों ने आपूर्ति की मरम्मत और पुन:पूर्ति के लिए दोनों पक्षों की सेनाओं को एक-दूसरे के ठिकानों का उपयोग करने की अनुमति देते हुए एक रसद सहायता समझौता भी किया। हनोई में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके वियतनामी समकक्ष जनरल फान वान गियांग के बीच द्विपक्षीय वार्ता के बाद इन दो दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए। इस लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट के तहत दोनों देश एक दूसरे के मिलिट्री बेस का इस्तेमाल कर सकेंगे। हालांकि, भारत पहले भी इस तरह के पैक्ट अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, जापान, फ्रांस और साउथ कोरिया के साथ साइन कर चुका है लेकिन आपसी रसद समर्थन पर समझौता ज्ञापन (एमओयू) पहला ऐसा बड़ा समझौता है जिस पर वियतनाम ने किसी देश के साथ हस्ताक्षर किए हैं।
चीन की बढ़ती ताकत का मुकाबला करने के लिए दोनों देश अपने-अपने रक्षा क्षेत्र को और मजबूत कर रहे हैं। चीन पहले दिन से ही ज़मीन हथियाने की कई नाकाम कोशिशें करता रहा है। पहले उसने तिब्बत को हथिआया फिर ताइवान पर हमला किया और वर्ष 1962 में भारत पर भी आक्रमण की कोशिश की। फिर 1979 में चीन ने जब वियतनाम पर आक्रमण किया तो काफी बुरी तरह हार गया।
इसी इतिहास के कारण भारत और वियतनाम ने अब आपसी सम्बन्ध और मजबूत करने के इरादे से “छ्वशद्बठ्ठह्ल ङ्कद्बह्यद्बशठ्ठ स्ह्लड्डह्लद्गद्वद्गठ्ठह्ल शठ्ठ ढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड-ङ्कद्बद्गह्लठ्ठड्डद्व ष्ठद्गद्घद्गठ्ठष्द्ग क्कड्डह्म्ह्लठ्ठद्गह्म्ह्यद्धद्बश्च ह्लश2ड्डह्म्स्रह्य 2030” पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसका उद्देश्य मौजूदा रक्षा सहयोग के दायरे और पैमाने को बढ़ाना है। अपने वियतनाम दौरे के दौरान राजनाथ सिंह दूरसंचार विश्वविद्यालय सहित न्हा ट्रांग में वियतनामी सेना के प्रशिक्षण संस्थानों का भी दौरा करेंगे, जहां भारत से 5 मिलियन डॉलर के अनुदान के साथ एक आर्मी सॉफ्टवेयर पार्क स्थापित किया जा रहा है।
वियतनाम बना भारत का एक महत्वपूर्ण भागीदार
रक्षा मंत्री रजनाथ सिंह ने गुरूवार को भारत द्वारा वियतनाम को 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ़ क्रेडिट के तहत निर्मित 12 हाई स्पीड गार्ड बोट सौंपी। उन्होंने दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में बीजिंग की बढ़ती सैन्य दृढ़ता से निपटने के लिए दोनों पक्षों के बीच बढ़ते समुद्री सुरक्षा सहयोग के बीच हांग हा शिपयार्ड में एक समारोह में ये नौकाएं दीं। शुरुआती पांच नावों का निर्माण भारत में रु&ञ्ज शिपयार्ड में किया गया था और शेष सात को हांग हा शिपयार्ड में बनाया गया था।
समारोह के दौरान राजनाथ सिंह ने कहा, “भारत द्वारा 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की रक्षा लाइन ऑफ क्रेडिट के तहत 12 हाई-स्पीड गार्ड बोट बनाने की परियोजना के सफल समापन को चिह्नित करने वाले इस ऐतिहासिक समारोह में शामिल होते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। मुझे विश्वास है कि यह भारत और वियतनाम के बीच कई और सहकारी रक्षा परियोजनाओं का अग्रदूत साबित होगा। यह परियोजना हमारे ‘मेक इन इंडिया – मेक फॉर द वल्र्डÓ मिशन का एक ज्वलंत उदाहरण है।”
भारत और वियतनाम पिछले कुछ वर्षों में साझे हितों की रक्षा के लिए अपने समुद्री सुरक्षा सहयोग को बढ़ा रहे हैं। हनोई और नई दिल्ली के बीच द्विपक्षीय संबंध पिछले कुछ वर्षों में गहरे हुए हैं। यहां तक ??कि भारत को दक्षिण चीन सागर में वियतनामी जल क्षेत्र में तेल अन्वेषण परियोजनाओं से भी सम्मानित किया गया था, चीन ने नाराजगी जताई थी लेकिन वियतनाम पीछे नहीं हटा और भारत को तेल के 2 कुएं सौंप दिए थे। जुलाई 2007 में वियतनाम के तत्कालीन प्रधानमंत्री गुयेन तान डुंग की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों एवं ‘रणनीतिक साझेदारीÓ के स्तर को बढ़ावा मिला था। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री मोदी की वियतनाम यात्रा के दौरान, द्विपक्षीय संबंधों को एक ‘व्यापक रणनीतिक साझेदारीÓ तक बढ़ा दिया गया था। अब अपनी इस नयी नीति से वियतनाम भारत की एक्ट ईस्ट नीति और इंडो-पैसिफिक विजन में एक महत्वपूर्ण भागीदार बन गया है।
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