लखनऊ : सपा मुखिया अखिलेश यादव ने साफ कर दिया है कि यादव-मुस्लिम के परंपरागत वोट बैंक को सहेजने की हर कवायद जारी रहेगी। साथ ही गैर यादव पिछड़ा वोट बैंक के विस्तार पर भी पार्टी फोकस करेगी। परिषद की चार सीटों में आधे पर पिछड़ा और आधे पर मुस्लिम चेहरों का चयन इसकी नजीर है। हाल में ही मुस्लिमों की नाराजगी के ‘घाव’ भरने की कोशिश भी दिखी। राज्यसभा में तीन प्रत्याशियों को भेजने में सक्षम सपा के खाते में तकनीकी तौर पर एक ही सीट आई थी, उस पर भी अखिलेश ने संभल से जावेद अली खान को भेजा। उपचुनाव के दो सीटों पर भी यादव-मुस्लिम की ही उम्मीदवारी हुई। आजमगढ़ में दलित उम्मीदवार उतारने के प्रयोग से पार्टी थोड़े से मुखर विरोध के बाद ही पीछे हट गई। परिषद में भी यह साहस नहीं दिखा पाई। समीकरण के साथ ही वफादारी साधने की चिंता ही टिकटों में अधिक दिखी।
आजम के जेल जाने के दौरान सपा की निष्क्रियता को लेकर पार्टी के अंदर और बाहर मुद्दा बनता देख भी नेतृत्व दबाव में आया। कुछ और मुस्लिम विधायकों पर हुई कार्रवाइयों पर चुप्पी ने इसे और विस्तार दिया। सदन में संवाद से लेकर भागीदारी तक के जरिए अखिलेश ने इस चिंगारी को बुझाने की कोशिश की है। विधानसभा में अकेले सपा का ही वोट 10% बढ़ा था। इसमें बड़ा योगदान परंपरागत वोटरों के अलावा पार्टी से जुड़े नए वोटरों का था। स्वामी को सम्मान देकर अखिलेश की नजर इस पूंजी को बचाने पर है, हालांकि इस राह में विरोध के कांटे भी बिछने लगे हैं।
केशव देव की राह अलग, बोले-अखिलेश को कठपुतली चाहिए
परिषद में हिस्सेदारी न मिलने से नाराज महान दल ने गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया है। अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव को जनाधारविहीन कठपुतली नेता पसंद है इसलिए उनको टिकट नहीं मिला और स्वामी प्रसाद मौर्य को एमएलसी बना दिया गया। चुनाव के समय जयंत चौधरी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के साथ चाट खाकर, ओमप्रकाश राजभर भाजपा नेता दयाशंकर सिंह के साथ घूमकर अधिक सीटें पा गए और मुझे केवल दो सीटें मिलीं, वह भी मन की नहीं। अखिलेश ने धोखा दिया है, इसलिए वह गठबंधन से अलग हो रहे हैं। केशव के ऐलान के बीच सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर की नाराजगी की चर्चा है। वह अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे। सपा के भीतर भी रेवती रमण सिंह जैसे पुराने नेताओं की भी नाराजगी की चर्चा है। रेवती रमण को राज्यसभा नहीं भेजा गया है जबकि उनके बेटे उज्ज्वल रमण विधानसभा चुनाव हार चुके हैं।
…इसलिए मिली उच्च सदन में एंट्री
स्वामी प्रसाद मौर्य : हार के बाद भी कुर्सी का उपहार
विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही सपा में गैर यादव पिछड़े चेहरे के तौर पर लाए गए स्वामी को फाजिलनगर में 45 हजार वोटों से करारी हार मिली थी। फिर भी उन्हें उच्च सदन भेजकर अखिलेश यादव ने जनाधार के विस्तार के लिए नए वोट बैंक को जोड़ने की कवायद जारी रखी है। स्वामी मुखर वक्ता हैं, इसलिए परिषद में भी सपा की आवाज बुलंद रहेगी। साथ ही मौर्य, शाक्य आदि बिरादरी को जुड़ने की संभावना भी मजबूत होगी।
जासमीर अंसारी : भाजपा के दांव का जवाब
सीतापुर के लहरपुर से 2007 में बसपा के विधायक रहे जासमीर 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हुए थे। जासमीर बैकवर्ड मुस्लिम समुदाय से आते हैं, जिसे मध्य प्रदेश में ओबीसी में शाामिल किया गया है। भाजपा ने इधर पिछड़े मुस्लिमों, पसमांदा मुस्लिमों में पैठ बनाने की कवायद शुरू की है। इसी कड़ी में दानिश आजाद अंसारी को राज्यमंत्री भी बनाया है। सपा ने इसके दांव के जवाब में भागीदारी बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया है।
मुकुल यादव : पिता के कोटे से सियासी इनाम
मुकुल यादव को सपा के करहल से विधायक रहे पिता सोबरन सिंह यादव के त्याग का इनाम मिला। करहल से चार बार विधायक रहे सोबरन को अपनी सीट अखिलेश यादव के लिए छोड़नी पड़ी थी। अखिलेश ने सरकार न बनने के बाद भी विधानसभा में ही बने रहने का फैसला किया और आजमगढ़ से सांसद की कुर्सी छोड़ दी। सोबरन को करहल के बदले अखिलेश उच्च सदन भेजना चाहते थे, लेकिन सोबरन यह कुर्सी अपने बेटे के लिए चाहते थे और मुराद पूरी भी हुई।
शाहनवाज खान : आजम के नजदीकी होने का इनाम
एमएलसी का टिकट शाहनवाज खान को पिता के आजम खां के नजदीकी होने के इनाम के तौर पर मिला है। अखिलेश सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे सहारनपुर के सरफराज खान आजम के खास लोगों में गिने जाते हैं। सहारनपुर में कांग्रस छोड़कर सपा में आए इमरान मसूद भी एमएलसी के दावेदार थे, लेकिन आजम की पसंद उन पर भारी पड़ी।
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