Ranchi: पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास झारखंड से राज्यसभा के लिए सबसे काबिल उम्मीदवार माने जा रहे थे. उम्मीद थी कि उन्हें केंद्रीय नेतृत्व राज्यसभा जरूर भेजेगी, लेकिन वे राज्यसभा नहीं जा सके. कहा जा रहा है रघुवर का टिकट उन्हीं लोगों ने कटवा दिया जिन्हें पद और पहचान दिलाने में रघुवर दास ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. रघुवर दास जब झारखंड के मुख्यमंत्री थे और केंद्रीय नेतृत्व पर उनका प्रभाव था उस वक्त उन्होंने बीजेपी के कई नेताओं को संगठन में महत्वपूर्ण पद दिलवाया था. रघुवर को भी उम्मीद थी ये नेता समय आने पर उनकी मदद जरूर करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं बल्कि रघुवर का नाम राज्यसभा के लिए सामने आने के बाद वे ही नेता रघुवर के खिलाफ खड़े हो गये. कहा गया रघुवर चुनाव में जीत के आंकड़े नहीं जुटा पाएंगे, इसलिए ऐसा कैंडिडेट हो जो जीत के आंकड़े जुटा सके. तब जाकर आदित्य साहू उम्मीदवार बनाए गये.
भले ही केंद्रीय नेतृत्व ने दिल्ली से आदित्य साहू को राज्यसभा सदस्य बनाने की घोषणा की है, लेकिन आदित्य साहू के नाम की अनुशंसा और पैरवी प्रदेश नेतृत्व की ओर से की गई थी. आदित्य साहू प्रदेश के महामंत्री हैं, लेकिन केंद्रीय नेताओं के साथ उनका बहुत ज्यादा संपर्क नहीं है. झारखंड के कई नेता पार्टी के केंद्रीय नेताओं के टच में रहते हैं. अगर कैंडिडेट के चयन में केंद्रीय नेतृत्व की चलती तो झारखंड से रघुवर दास के अलावा रविंद्र राय जैसे नेताओं का भी चयन हो सकता था. प्रदेश बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक, रघुवर दास का पत्ता काटने में बीजेपी की चौकड़ी की ही चली है.
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद दीपक प्रकाश रघुवर दास के करीबियों में से एक रहे हैं. दीपक प्रकाश को राज्यसभा भेजने के लिये रघुवर दास ने एड़ी-चोटी का जोड़ लगा दिया था. दिल्ली जाकर भी उनके लिये लॉबिंग की थी, लेकिन इस राज्यसभा चुनाव के दौरान दीपक प्रकाश भी रघुवर की वो मदद नहीं कर सके, पुराने रिश्तों की वजह से रघुवर जिसके हकदार थे.
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आदित्य साहू को रघुवर दास ने ही जिला की कमेटी से उठाकर सीधे प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया था. आदित्य साहू और रघुवर दास के बीच किस तरह का करीबी रिश्ता था, उसे इसी बात से समझा जा सकता है कि पार्टी में महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए आदित्य साहू का ज्यादा वक्त पार्टी कार्यालय के बदले सीएमओ में ही गुजरता था. इस बार राज्यसभा की टिकट के लिये आदित्य साहू ही रघुवर दास के खिलाफ खड़े दिखे.
राज्यसभा की टिकट के लिये संघ के करीबी प्रदीप वर्मा भी दावेदार थे. रघुवर दास जब राज्य के मुख्यमंत्री थे, तब सरकार और संगठन दोनों जगह सिर्फ उनकी ही चलती थी. तब पार्टी के सारे कार्यक्रम प्रदीप वर्मा के स्कूल सरला-बिरला में ही होते थे. रघुवर दास ने ही प्रदीप वर्मा को पार्टी में महत्वपूर्ण पद दिलाया था. वहीं प्रदीप वर्मा इस बार राज्यसभा की टिकट के लिये रघुवर दास के लिये प्रतिद्वंदी की भूमिका में थे.
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