सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक वर्ष 01 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस सबसे पुराना अंतर्राष्ट्रीय उत्सव माना जाता है जो कि साल 1950 से मनाया जाता आ रहा है। इसकी शुरुआत का निर्णय मॉस्को में ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला लोकतांत्रिक संघ’ की एक विशेष बैठक में किया गया था। इस दिवस का उद्देश्य बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। रूस में आज के दिन अनाथ, विकलांग और ग़रीब बच्चों की समस्याओं की ओर विशेष रूप से लोगों का ध्यान खींचा जाता है। बच्चों को तोहफ़े दिए जाते हैं और उनके लिए विशेष समारोहों का आयोजन किया जाता है। रूस की ही भांति भारत में भी इस दिवस से तीन दिन पूर्व नरेंद्र मोदी सरकार की आठवीं वर्षगांठ पर कोरोना के समय अनाथ हुए बच्चों के लिये बाल-कल्याण एवं राहत योजना घोषित करते हुए बच्चों को उन्नत, अपराधमुक्त एवं कल्याणकारी भविष्य देने की स्वागतयोग्य पहल की गयी है। प्रधानमंत्री ने सोमवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बच्चों के लिए पीएम केयर योजना के तहत अनेक लाभ एवं बाल-कल्याण की घोषणाएं की। जिससे न केवल सरकार के लोकल्याणकारी स्वरूप को बल मिलेगा, बल्कि दुनिया की सरकारों के लिये यह अनुकरणीय एवं प्रेरक उदाहरण होगा। पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन स्कीम के जरिये कोरोना से अनाथ हुए बच्चों के लिए स्कॉलरशिप और अन्य आर्थिक सहायता की घोषणा से अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस की सार्थकता सामने आयेगी।
प्रधानमंत्री मोदी ने स्कूल जाने वाले बच्चों को छात्रवृत्ति दी है। पीएम केयर फॉर चिल्ड्रन की पासबुक और आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का स्वास्थ्य कार्ड भी भेंट किया है। वैसे यह पिछले वर्ष ही स्पष्ट हो गया था कि केंद्र सरकार अनाथ हुए बच्चों को सहारा देने के लिए अनेक उपाय करेगी। बेशक, आज ऐसे बच्चों को अधिकतम देखभाल व मदद की जरूरत है, केंद्र ही नहीं, राज्य सरकारों को भी ऐसे बच्चों के साथ खड़ा होना चाहिए। दुनिया में दूसरी सरकारों ने भी अपने यहां अनाथ हुए बच्चों के हित में कदम उठाए हैं। सरकारें होती ही इसलिए हैं कि जरूरतमंदों को भरपूर सहारा दें, विशेषतः बच्चों के जीवन पर छाये अंधेरों को दूर करें। इसकी आवश्यकता इसलिये भी है कि भारत में आज भी 14 साल से कम उम्र के 40 प्रतिशत बच्चें चाय के होटल, ढाबा, दुकान और मोटर मैकैनिक के अलावा अनौपचारिक क्षेत्र में न्यूनतम वेतन पर काम करते हैं। कुछ तो बेहद कम मजबूरी में काम करते हैं या कुछ बच्चों के माता-पिता हाथ में हुनर का हवाला देने की बात कहकर उन्हें किसी न किसी काम में लगा देते हैं। इससे उनकी शिक्षा पर गहरा असर पड़ता है। खेलने-कूदने और शिक्षा से लेकर उनके भरण−पोषण तक हर जगह बच्चों के अधिकारों को अनदेखा किया जाता है। बच्चों के अधिकार क्या हैं और कैसे हो इनकी सुरक्षा, इस पर गंभीरता से मंथन की जरूरत है। मोदी बच्चों को देश के भविष्य की तरह देखते थे। लेकिन उनका यह बचपन रूपी भविष्य आज अभाव, नशे, उपेक्षा एवं अपराध की दुनिया में धंसता चला जा रहा है। बचपन इतना उपेक्षित, डरावना एवं भयावह हो जायेगा, किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। आखिर क्या कारण है कि बचपन अभाव एवं उपेक्षा की अंधी गलियों में जा रहा है? बचपन इतना उपेक्षित क्यों हो रहा है? बचपन के प्रति न केवल अभिभावक, बल्कि समाज और सरकार इतनी बेपरवाह कैसे हो गयी है? यह प्रश्न अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस मनाते हुए हमें झकझोर रहे हैं।
कुछ ऐसी की पीड़ा ने मोदी को झकझोरा है, इसलिये एक संवेदनशील प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने राहत-मदद की घोषणा करते हुए उचित ही कहा है कि मैं प्रधानमंत्री के रूप में नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य के रूप में संबोधित कर रहा हूं। जरूरी है, सरकार के सभी अंग प्रधानमंत्री की मंशा के अनुरूप ही जरूरतमंद बच्चों को अपने परिवार का सदस्य मानकर चलें। ऐसे बच्चों की शिक्षा एवं खुशहाली से लेकर रोजगार तक की चिंता सरकार को करनी चाहिए। बच्चे स्वास्थ्य कार्ड से पांच लाख रुपये तक की मुफ्त सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं। सरकार ने ऐसे बच्चों के नामांकन के लिए ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया है, जिसके माध्यम से बच्चों के नाम अनुमोदन की प्रक्रिया व अन्य कार्य आसानी से किए जा सकेंगे। सभी सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि जरूरतमंद बच्चों तक मदद आसानी से पहुंच सके। एक भी बच्चा वंचित नहीं रहना चाहिए। साथ ही, यदि हो सके, तो उन सभी बच्चों को मदद दी जाए, जो मां या पिता में से किसी एक को भी खो चुके हैं। दोनों अभिभावकों के कोरोना से निधन की पीड़ा एवं वेदनादायक स्थितियों को मानवीय व व्यावहारिक दृष्टि से देखना चाहिए। बच्चों के आवेदनों में तकनीकी खामियों या कमियों को भी उदारता से दूर करना चाहिए। क्योंकि आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए निर्मित हुए भारत में आज भी हम यत्र-तत्र 12-14 साल के बच्चे को टायर में हवा भरते, पंक्चर लगाते, चिमनी में मुंह से या नली में हवा फूंकते, जूठे बर्तन साफ करते या खाना परोसते देखते हैं और जरा-सी भी कमी होने पर उसके मालिक से लेकर ग्राहक द्वारा गाली देने से लेकर, धकियाने, मारने-पीटने और दुर्व्यवहार होते देखते हैं तो अक्सर ‘हमें क्या लेना है’ या ज्यादा से ज्यादा मालिक से दबे शब्दों में उस मासूम पर थोड़ा रहम करने के लिए कहकर अपने रास्ते हो लेते हैं। लेकिन कब तक हम बचपन को इस तरह प्रताड़ित एवं उपेक्षा का शिकार होने देंगे।
हमें मोदी के स्वर में अपना स्वर मिलाते हुए खुशहाल बचपन को जीवंत करने के लिये प्रयत्नशील होना चाहिए। एक-एक बच्चे तक मदद पहुंचाने की प्रधानमंत्री की कोशिश तभी कामयाब होगी, जब समाज के नागरिकों के साथ-साथ अधिकारी भी पूरी ईमानदारी से अनाथ बच्चों का सहारा बनेंगे। सबसे जरूरी है कि ऐसे बच्चों का सही डाटा एकत्र किया जाए। यहां केवल सरकार ही नहीं, स्थानीय सामाजिक संगठनों की भी जिम्मेदारी बनती है। आखिर ऐसे कितने बच्चे हैं? चूंकि सरकार के पास अभी स्पष्ट डाटा नहीं है, इसलिए तरह-तरह के अध्ययन सामने आए हैं। द लैंसेट के अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 19 लाख बच्चों ने कोविड-19 के चलते माता-पिता या दोनों में से किसी एक को खोया है। दूसरी ओर, इस साल 5 फरवरी तक महिला और बाल विकास मंत्रालय के पास कुल 3,890 कोविड अनाथों का डाटा पंजीकृत था। मतलब, आधिकारिक रूप से डाटा दुरुस्त करने का अहम कार्य शेष है। योजना की सफलता इसी में है कि हर जरूरतमंद बच्चे तक जल्द से जल्द मदद पहुंचे। जरूरत है कोरोना में अनाथ हुए बच्चों को राहत पहुंचाने के साथ खेलने-कूदने और शिक्षा से लेकर उनके भरण−पोषण तक हर जगह बच्चों के अधिकारों को अनदेखा करने की स्थितियों पर काबू पाने की। जरूरत इस बात की भी है कि बच्चों को डांटने और मारने की बजाय उन्हें स्नेह एवं प्यार से समझाने की। बच्चों को एक सख्त माता-पिता नहीं बल्कि एक दोस्त और प्यार की आवश्यकता होती हैं। इसलिए डांट, मार से नहीं प्यार से बच्चे सुधरेंगे।
कमजोर नींवों पर हम कैसे एक सशक्त राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं? कैसा विरोधाभास है कि हमारा समाज, सरकार और राजनीतिज्ञ बच्चों को देश का भविष्य मानते नहीं थकते लेकिन क्या इस उम्र के लगभग 25 से 30 करोड़ बच्चों से बाल मजदूरी के जरिए उनका बचपन और उनसे पढने का अधिकार छीनने का यह सुनियोजित षड्यंत्र नहीं लगता? बाल मजदूरी से बच्चों का भविष्य अंधकार में जाता ही है, देश भी इससे अछूता नहीं रहता क्योंकि जो बच्चे काम करते हैं वे पढ़ाई-लिखाई से कोसों दूर हो जाते हैं और जब ये बच्चे शिक्षा ही नहीं लेंगे तो देश की बागडोर क्या खाक संभालेंगे? इस तरह एक स्वस्थ बाल मस्तिष्क विकृति की अंधेरी और संकरी गली में पहुँच जाता है और अपराधी की श्रेणी में उसकी गिनती शुरू हो जाती हैं। आवश्यक है कि अभिभावकों और बच्चों के बीच बर्फ-सी जमी संवादहीनता एवं संवेदनशीलता को फिर से पिघलाया जाये। फिर से उनके बीच स्नेह, आत्मीयता और विश्वास का भरा-पूरा वातावरण पैदा किया जाए। सरकार को बच्चों से जुड़े कानूनों पर पुनर्विचार करना चाहिए एवं बच्चों के समुचित विकास के लिये योजनाएं बनानी चाहिए। ताकि इस उपेक्षित एवं अभावग्रस्त बचपन और भटकते राष्ट्र के नव पीढ़ी के कर्णधारों का भाग्य और भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। ऐसा करके ही हम अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस को मनाने एवं प्रधानमंत्री मोदी की बाल-कल्याणकारी योजनाओं की सार्थकता हासिल कर सकेंगे।