इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत लाभ के लिए न्यायिक प्रणाली को साधन नहीं बनाया जा सकता है, यह गलत है। खासकर जब हमारे देश में कानूनी प्रणाली पहले से ही बोझिल है। इस तरह का दुरुपयोग केवल स्थिति को और उलझाने वाला है और झूठे मामलों से निपटने में जांच एजेंसी और अदालतों दोनों का कीमती समय नष्ट हो रहा है। इसके परिणामस्वरूप वास्तविक मामलों का नुकसान होना तय है।
यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने शादी से पहले पति के खिलाफ दुष्कर्म के झूठे आरोप में एफआईआर दर्ज कराने वाली महिला पर 10 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को भी रद्द कर दिया।
महिला को यह रकम 15 दिनों की अवधि के भीतर जमा करनी होगी। ऐसा न करने पर महिला से भू-राजस्व के बकाए के रूप में वसूला जाएगा। यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा एवं न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने सलमान उर्फ मोहम्मद सलमान व दो अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया है।
पहले आरोप लगाया फिर बाद में मुकर गई महिला
कोर्ट ने कहा किप्रथम सूचना रिपोर्ट व्यक्तिगत फायदे के लिए दर्ज कराई गई थी। कोर्ट ने इसे गलत माना। पाया कि एफआईआर दर्ज कराना शादी कराने के लिए दबाव बनाने का तरीका था। मुरादाबाद के गल शहीद थाने में 25 अगस्त 2021 को दुष्कर्म सहित विभिन्न धाराओं एफआईआर दर्ज की गई थी। इसमें आरोप लगाया गया कि आरोपी ने शादी के वादे पर पहले याचिकाकर्ता के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किए, फिर शादी करने से इनकार कर दिया।
हालांकि, बाद में दोनों ने एक-दूसरे से शादी कर ली और मामले में समझौता कर लिया। इसके बाद एफआईआर दर्ज कराने वाली महिला (आरोपी की पत्नी) ने जांच अधिकारी के समक्ष आवेदन दायर कर कहा कि एफआईआर रद्द कर दी जाए। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्डों और बयानों के आधार पर महिला ने स्पष्ट रूप से कहा कि याची और उसके बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं थे। वह याची से प्यार करती थी। बाद में दोनों के बीच 13 दिसंबर 2021 को शादी हो गई।
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