चित्रकला में भारतीय सनातन परम्परा’’ विषयक लघुचित्रों पर छायाचित्र प्रदर्शनी का किया गया आयोजन – Lok Shakti

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चित्रकला में भारतीय सनातन परम्परा’’ विषयक लघुचित्रों पर छायाचित्र प्रदर्शनी का किया गया आयोजन

शैक्षिक कार्यक्रम के अर्न्तगत विश्व धरोहर दिवस के अवसर पर आज 18 अप्रैल, 2022 को राज्य संग्रहालय, लखनऊ में ’’चित्रकला में भारतीय सनातन परम्परा’’ विषयक लघुचित्रों पर आधारित छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। जिसका उद्घाटन डॉ0 संजीव किशोर गौतम राजपूत विभागाध्यक्ष, ललित कला विभाग, कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा किया गया। प्रदर्शनी में विभिन्न शैलियों में बने लघुचित्रों के छायाचित्र प्रदर्शित किए गए है। यह प्रदर्शनी दर्शकों के अवलोकनार्थ दिनांक 30 अप्रैल, 2022 तक खुली रहेगी।
भारत समृद्ध कला विरासत का देश है जिसका अनिवार्य गुण उसकी आत्मा है। भारतीय कला कलाकार की रचनात्मक कल्पना (ध्यान) और दैवीय (देवतत्व) वास्तविकता के प्रतीक को समग्र रूप में लोगों की सामूहिक चेतना द्वारा कल्पना और समझने के प्रयास का फल है। प्राचीन काल से ही भारतीय कला भारतीय संस्कृति के आदर्शाें को साकार किए सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के मूल तत्व को धारण किए है।
प्राचीन सभ्यता से लेकर वर्तमान समय तक विभिन्न देवी-देवताओं का अंकन कला में पाया जाता है, जिसका विशेष अर्थ भारतीय धर्म, संस्कृति, सभ्यता और तत्वज्ञान से जुड़ा है। यद्यपि कला में सौन्दर्यतत्व महत्वपूर्ण है, परन्तु सौन्दर्यतत्व में भी अर्थ का सर्वोपरि महत्व है। गूढ़ अर्थ को समाहित किए प्रदर्शनी में भारतीय सनातन परम्पराः शैव एवं वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित विभिन्न लघुचित्रों के छायाचित्रों को प्रदर्शित किया गया है। ये चित्र मेवाड़, मारवाड़, कोटा, आमेर, मालवा, मण्डी, गढ़वाल, बिलासपुर तथा कांगड़ा आदि शैलियों का प्रतिनिधित्व करते है, जिनमें प्रत्येक शैली की अपनी निजीगत विशेषता है।
चित्रकला जनमानस की अभिव्यक्ति एवं आस्था का एक प्रमुख माध्यम है। विभिन्न कालखण्डों एवं विभिन्न शैलियों में निर्मित यहां प्रदर्शित चित्र में समुद्रमंथन, बाणासुर द्वारा शिव स्तुति, शिव द्वारा विषपान, नृत्यरत शिव (नटेश), भगीरथ द्वारा शिव स्तुति, गंगावतरण, देवताओं द्वारा उमा-महेश्वर स्तुति, राम एवं हनुमान द्वारा उमा-महेश्वर की स्तुति, शिव-पार्वती, पार्वती पुत्र गणेश, शेषशायी विष्णु, लक्ष्मी-नारायण की देवताओं द्वारा आराधना, गजेन्द्रमोक्ष, वामन अवतार, नृसिंह अवतार, विराटरूप विष्णु, बलराम द्वारा यमुनाकर्षण, हरिहर (संघाट स्वरूप), भक्ति रत्नावलि, योगी, सूर्य पूजा राधा कृृष्ण बहुत ही प्रासंगिक हैै।
संग्रहालय की सहायक निदेशक डॉ0 मीनाक्षी खेमका ने प्रदर्शनी का अवलोकन कराते हए विस्तारपूर्वक प्रदर्शित चित्रों के विषय में बताया।डॉ0 संजीव किशोर गौतम राजपूत विभागाध्यक्ष, ललित कला विभाग, कला एवं शिल्प महाविद्यालय ने विश्व की धरोहरों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हमें अपनी धरोहरों को संजोकर रखना है क्योंकि ये हमारे भविष्य की थाती है।
संग्रहालय के निदेशक डॉ0 आनन्द कुमार सिहं ने कहा कि संग्रहालय अमूल्य धरोहरो का संग्रह है। अपने विरासत को संजोकर रखना हम सभी का कर्तव्य है। मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखना हम भवी पीढ़ी के लिए आर्दश प्रस्तुत कर सकते है। संग्रहालय द्वारा समय-समय पर अस्थायी प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है।
इसी क्रम में विश्व धरोहर दिवस के अर्न्तगत चित्रकला अनुभाग द्वारा चित्रकला में भारतीय सनातन परम्परा विषयकप्रदर्शनी के माध्यम से प्राचीन काल में प्रचलित विभिन्न कला शैलियों को दर्शको के अवलोकनार्थ प्रदर्शित किया गया है।
इस अवसर पर राज्य संग्रहालय, लखनऊ की डॉ0 मीनाक्षी खेमका, श्री विजय यादव, श्रीमती रंजना मिश्रा, डॉ0 अनीता चौरसिया,श्री प्रमोद कुमार सिंह, श्रीमती शालिनी श्रीवास्तव, गायत्री गुप्ताएवं राज्य संग्रहालय, उ0प्र0 संग्रहालय निदेशालयतथा लोक कला संग्रहालय के कर्मचारी उपस्थित रहे।