Anand Kumar
राज्य के पांच विधायकों सरयू राय, सुदेश महतो, अमित यादव, कमलेश सिंह और लंबोदर महतो ने झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा बनाया है. इनमें सुदेश महतो और लंबोदर महतो आजसू पार्टी के हैं. सरयू राय और अमित यादव विगत चुनाव में भाजपा से टिकट नहीं मिलने के बाद निर्दलीय लड़कर जीते हैं और कमलेश सिंह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के टिकट पर विधायक बने हैं. सुदेश, कमलेश और सरयू झारखंड की अलग-अलग सरकारों में मंत्री भी रहे हैं. मोर्चे में शामिल विधायकों का कहना है कि एक या दो विधायकों को सदन में बोलने के लिए जो समय आवंटित किया जाता है, वह पर्याप्त नहीं होता. इसलिए उन्होंने मिल कर यह मोर्चा बनाया है, ताकि सदन के भीतर वे जनहित की समस्याओं को प्रमुखता और मुखरता से उठा सकें. लेकिन इस मोर्च के गठन के कई और मायने भी हैं. साथ ही इस मोर्चे के गठन के बाद कई संभावनाएं और आशंकाएं भी उठ खड़ी हुई हैं. आइये जानते हैं कि इस मोर्चे के गठन से आनेवाले समय में क्या-क्या संभावनाएं बन सकती हैं –
संभावना 1- राज्यसभा चुनाव
रघुवर उम्मीदवार बनते हैं, तो वोट जुटाना मुश्किल होगा
इसी साल जून में झारखंड से राज्यसभा की दो सीटों के लिए चुनाव होना है. मुख्तार अब्बास नकवी और महेश पोद्दार की जगह खाली हो रही है. विधानसभा चुनाव हारने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास अभी भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर हैं. ऐसे में संभावना है कि भाजपा उन्हें राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाये. भाजपा के पास अभी 26 विधायक हैं और उसे एक उम्मीदवार को जिताने के लिए 28 विधायकों के वोट की जरूरत पड़ेगी. आजसू के झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा में शामिल होने से उनकी जीत की संभावनाओं पर ग्रहण लग सकता है, क्योंकि मोर्चा के विधायक दल के नेता सुदेश महतो और प्रमुख रणनीतिकार सरयू राय के संबंध रघुवर दास से अच्छे नहीं हैं. सुदेश महतो की अगुवाई वाली आजसू झारखंड गठन के बाद से एनडीए फोल्डर में रहती आयी है. राष्ट्रीय स्तर पर आजसू अभी भी एनडीए के फोल्डर में है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने आजसू के एकमात्र सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी के लिए गिरिडीह सीट छोड़ी थी. लेकिन 2019 के ही विधानसभा चुनाव में दोनों दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर राज्य के स्तर पर खटास आ गयी है. आजसू इसका कारण रघुवर दास को मानता है, जो उस समय मुख्यमंत्री थे. उसी चुनाव में रघुवर दास ने अपनी सरकार में मंत्री सरयू राय को जमशेदपुर पश्चिम से टिकट देने पर वीटो लगा दिया. नजीतन सरयू राय निर्दल उम्मीदवार के रूप में मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ चुनाव लड़ गये और उन्हें हरा कर झारखंड ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी बड़े-बड़े दिग्गजों के अनुमान को फेल कर दिया. इसलिए यह मोर्चा रघुवर दास की उम्मीदवारी की संभावनाओं की जड़ों में मट्ठा डाल सकता है.
दूसरे उम्मीदवार के लिए मोर्चा का समर्थन लेने की मजबूरी होगी. अगर भाजपा रघुवर दास को राज्यसभा का उम्मीदवार नहीं बनाती है, तो भी उसके किसी अन्य उम्मीदवार को इन विधायकों में से दो का समर्थन लेना होगा और इसके लिए मोर्चा को राजी करना जरूरी होगा.
संभावना – 2
भविष्य में राजनीतिक जोड़तोड़ की स्थिति में मोर्चा की भूमिका अहम होगी
फिलहाल झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा है और सरकार पर कोई आसन्न संकट भी नहीं दिख रहा, लेकिन पूर्व में मध्यप्रदेश और गोवा में बहुमत की सरकारों को गिराकर सरकार बनाने के उदाहरणों को देखें, तो झारखंड में भी ऐसी किसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. खासकर तब, जब यदा-कदा विधायकों को प्रलोभन दिये जाने और सरकार गिराये जाने की अफवाहें राजनीतिक गलियारों में उड़ती रहती हैं. कुछ माह पहले बेरमो से कांग्रेस विधायक कुमार जयमंगल उर्फ अनूप सिंह ने तो बाकायदा रांची के कोतवाली थाने में सरकार गिराने की साजिश रचने का एफआईआर भी दर्ज कराया था. इसके बाद घाटशिला के झामुमो विधायक रामदास सोरेन ने अपनी ही पार्टी के केंद्रीय कोषाध्यक्ष रहे रवि केजरीवाल पर आरोप लगाया था कि वे सरकार गिराने की साजिश रच रहे हैं. सोरेन ने भी इस बारे में एफआइआर दर्ज करायी थी. अगर सचमुच ऐसा कोई प्रयास होता है, तो झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा के इन पांच विधायकों की भूमिका अहम होगी.
संभावना – 3
आगामी चुनावों में नया राजनीतिक समीकरण बन सकता है
आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो दक्षिणी छोटानागपुर के रांची जिले की सिल्ली विधानसभा सीट से विधायक है. उनकी पार्टी के दूसरे विधायक लंबोदर महतो कोयलांचल के बोकारो जिले की गोमिया सीट से जीते हैं. अमित यादव और हजारीबाग जिले की बरकट्ठा सीट से एमएलए हैं. ये दोनों जिले उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल में हैं. सरयू राय कोल्हान प्रमंडल के पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और कमलेश सिंह पलामू प्रमंडल की हुसैनाबाद सीट से आते हैं. यानी ये पांच विधायक झारखंड के पांच में से चार प्रमंडलों रांची, दक्षिणी छोटानागपुर, उत्तरी छोटानागपुर और कोल्हान का प्रतिनिधित्व करते हैं. इन चार प्रमंडलों में 18 जिले हैं, जहां विधानसभा की 81 में से 63 सीटें हैं. संथाल परगना प्रमंडल में 6 जिले हैं. इन छह जिलों में 18 विधानसभा की सीटें हैं.
संभावना – 4
अगले चुनाव तक कायम रही, तो सरयू और सुदेश की जोड़ी कर सकती है कमाल
सुदेश महतो, कमलेश सिंह और सरयू राय मंत्री रहे हैं. इनकी राज्यव्यापी पहचान है. खासतौर पर सरयू राय की छवि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़नेवाले और दो मुख्यमंत्रियों को जेल भिजवानेवाले नेता की है. ईमानदार और स्पष्टवादी होने के कारण इन्हें पसंद करनेवालों की संख्या काफी ज्यादा है. भाजपा में लंबे समय तक रहने और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को संभालने के कारण इनका संपर्क का दायरा काफी व्यापक है. दामोदर बचाओ आंदोलन और पर्यावरण संरक्षण अभियानों का नेतृत्व करने के कारण राय के पास सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबका भी है. सरयू राय ने भारतीय जनतंत्र मोर्चा नामक एक नया राजनीतिक दल भी बनाया है.
दूसरी ओर सुदेश महतो झारखंड सरकार में उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री समेत कई बड़े ओहदों को संभाल चुके हैं. लंबे समय तक मंत्री रहे हैं. आजसू का नेटवर्क पूरे राज्य में है. उसके पास लाखों कार्यकर्ताओं की फौज है. आजसू को राज्य की बड़ी राजनीतिक ताकतों में गिना जाता है. ऐसे में अगले चुनाव तक झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा और सरयू-सुदेश की जोड़ी कायम रह गयी, तो राज्य की राजनीति में कमाल कर सकती है. ऐसे वक्त में, जब यूपी और पंजाब के चुनावों के परिणाम बता रहे हैं कि जनता जातिवाद और मुर्गा-दारू से ऊपर उठकर सुरक्षा, गर्वनेंस और विकास के मुद्दों पर वोट कर रही है, झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा एक सशक्त विकल्प बन सकता है.
संभावनाएं हैं, तो आशंकाएं भी कम नहीं
आशंका 1
क्या झारखंडी सवालों पर वैचारिक मतभिन्नता के बावजूद टिक पायेगा मोर्चा?
लेकिन इस मोर्चा के सामने भी एक चुनौती है. सुदेश महतो और उनकी आजसू पार्टी राज्य की नौकरियों को स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने और इसके लिए 1932 का खतियान को आधार बनाने की पक्षधर है, वहीं सरयू राय और कमलेश सिंह 1932 का खतियान लागू करने के पक्ष में नहीं हैं. सरयू राय 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति के मुद्दे पर शिबू सोरेन के बयान का खुला विरोध करने वाले पहले विधायक रहे हैं. कमलेश सिंह भी 1932 खतियान आधारित स्थानीयता नीति के पक्ष में नहीं हैं. आजसू ने 1932 खतियान, स्थानीय नीति और नियोजन नीति जैसे झारखंडी मुद्दों को लागू करने के लिए विधानसभा के चालू सत्र में विधानसभा का घेराव भी किया था. ऐसी परिस्थिति में नये झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा के नेता भले ही यह दावा करें कि वे इस मोर्चा के बैनर तले राज्य के विकास और जनहित मुद्दों को मजबूती से उठा सकेंगे, लेकिन उनके लिए 1932 खतियान, स्थानीयता और नियोजन नीति जैसे झारखंडी मुद्दों पर एकमत होना बड़ी चुनौती होगी.
आशंका 2
कमलेश सरकार के साथ, सरयू की सहानुभूति, आजसू विरोध में, कैसे निभेगी
सरयू राय विधानसभा चुनाव के समय से ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ सहानुभूति रखते हैं. कई मुद्दों पर उन्होंने सरकार का बचाव किया है, हालांकि मैनहर्ट मामला, शाह ब्रदर्स खान घोटाला तथा झारखंड स्थापना दिवस पर टीशर्ट-टॉफी वितरण और गायिका सुनिधि चौहान के कार्यक्रम में रघुवर दास के खिलाफ भ्रष्टाचार और सरकारी धन के अपव्यय के मुद्दों पर हेमंत सोरेन सरकार द्वारा अपनी अपेक्षा के अनुरूप कार्रवाई नहीं होने पर राय ने कई अवसरों पर हेमंत सरकार सरकार पर परोक्ष रूप से निशाना भी साधा है. वहीं कमलेश सिंह हेमंत सरकार को समर्थन दे रहे हैं, जबकि आजसू विपक्षी दल है. ऐसे में झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा के नेताओं के सामने आपसी तालमेल कायम रख पाने की चुनौती होगी.
आशंका 3
सुदेश की आजसू बड़ी पार्टी, सरयू की नवजात, बाकी दो सिंगल
आजसू राज्य में बड़ी राजनीतिक ताकत है. 2009 और 2014 के चुनावों में उसके पांच विधायक चुनकर झारखंड विधानसभा में पहुंचे थे. पांचवीं विधानसभा में आजसू के दो विधायक हैं और लोकसभा में उसका एक सांसद है. मोर्चा के बाकी तीन विधायक सरयू राय, अमित यादव और कमलेश सिंह एकला चलो वाले हैं. कमलेश सिंह एनसीपी के सिंबल पर अपने बूते जीते, वरना उनकी पार्टी का झारखंड में कहीं कोई वजूद नहीं दिखता. सरयू राय ने एक पार्टी जरूर बनायी है, लेकिन यह नवजात है और फिलहाल जमशेदपुर में ही इसका जमीनी अस्तित्व दिखाई दे रहा है. अमित यादव भी निर्दलीय हैं. इसलिए अगले चुनाव में मोर्चा बचा भी रहा, तो क्या भूमिका निभा पायेगा, यह समय बतायेगा.
इन तमाम संभावनाओं और आशंकाओं में एक बात जो साफ है और सबसे पहले होनी है, वह है राज्यसभा का चुनाव. पांच विधायकों का यह मोर्चा भविष्य में कितना बड़ा राजनीतिक उलटफेर करेगा अथवा सदन में जनहित के सवालों को कितनी मुखरता से उठायेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तो तय है कि इस मोर्चाबंदी ने आगामी जून में होनेवाले राज्यसभा चुनाव में नये समीकरणों को जरूर जन्म दे दिया है.
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