लखनऊ: रमाबाई रैली स्थल पर स्ट्रॉन्ग रूम बनाकर ईवीएम (EVM) रखी गई हैं। स्ट्रॉन्ग रूम सील किया गया है। मतगणना के दिन तक उसकी सुरक्षा के पूरे बंदोबस्त किए गए हैं। फिर भी समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party), बहुजन समाज पार्टी (BSP) और कांग्रेस (Congress) के कार्यकर्ता उसके बाहर टेंट डालकर दिन-रात निगरानी के लिए तैनात हैं। सपा कार्यकर्ता विशेष रूप से चौकस हैं। किसी भी सरकारी अधिकारी के उस तरफ जा निकलने पर वे हंगामा मचा देते हैं। उन्हें आशंका है कि सत्तारूढ़ दल के इशारे पर अधिकारी गड़बड़ कर सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janata Party) सत्ता में हैं। उसे ऐसी कोई आशंका नहीं है। इसलिए भाजपा के कार्यकर्ता स्ट्रॉन्ग रूम के बाहर डटे हुए नहीं हैं।
यह देखकर साल 1977 के चुनाव की याद आती है। वह अलग ही जमाना था। मतपेटियां होती थीं, जिन्हें सीलबंद कर कलेक्ट्रेट के कमरों में सुरक्षित रखा जाता था। मतदान के दिन मतपेटियों की लूट के किस्से बहुत होते थे। हिंसा और खून-खराबे खूब होते थे। गोलियां चलाते हुए गुंडे मतदाताओं और मतदानकर्मियों को भगा देते और फर्जी मतदान करते थे। सफल नहीं होने पर मतपेटियां उठा ले जाते थे। कोई मतपेटियों में पानी डाल देता था। मतपेटियों को रात में चुपचाप बदल देने की शिकायतें भी की जाती थीं। उन दिनों परिणाम को इस तरह प्रभावित कर सकना अपेक्षाकृत आसान था।
आपातकाल की अतियों के कारण साल 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस के विरुद्ध बहुत आक्रोश था। मतदान के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगीं थीं। कई दलों को मिलाकर बनी जनता के पार्टी के कार्यकर्ता ही नहीं, जनता भी बड़े जोश में थी। पहले मतदान करके और फिर दिन-रात मतपेटियों की सुरक्षा के लिए तैनात होकर आपातकाल की ज्यादतियों का बदला लेने के लिए जनता उमड़ी पड़ी थी। हमें याद है कि हम कुछ युवकों का दल मतदान के बाद अपने बूथ से मतपेटियों का पीछा करते हुए कलेक्ट्रेट तक गया था। वहां पहले से पहरा देते कार्यकर्ता और आम जनता मौजूद थी।
प्रशासन कभी भी मतपेटियां बदल सकता है, ऐसी हवा उड़ती और चारों तरफ शोर मच जाता था। वैसे, उस समय शासन-प्रशासन के अधिसंख्य अधिकारी-कर्मचारी सत्तारूढ़ पार्टी के विरुद्ध हो गए थे। बदलाव की बड़ी लहर थी। लोकतंत्र में जनता की असली ताकत का वह प्रदर्शन अद्भुत था। लगभग तभी से मतदान के बाद मतपेटियों और अब ईवीएम की सुरक्षा के लिए विपक्षी दलों के कार्यकर्ता स्ट्रॉन्ग रूम के बाहर तैनात होने लगे। बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में टीएन शेषन की सख्त व्यवस्था और फिर ईवीएम से मतदान के कारण स्थितियां काफी बदल गईं। ईवीएम की लूट या उनमें पानी डाल देने जैसी हरकतें अब नहीं होतीं। विपक्ष की आशंकाओं में हालांकि कमी नहीं आई है।
पहले तो ईवीएम ही संदिग्ध बना दी गईं कि उन्हें ‘हैक’ किया जा सकता है, कि बटन कहीं और दबाओ तो वोट किसी और को जाता है, आदि-आदि। इनमें कोई भी संदेह साबित नहीं हुआ है। मतदान के दौरान ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायतें अवश्य होती हैं, लेकिन वह मशीन की खराबी होती है और शीघ्र दूर कर दी जाती हैं। ईवीएम से चुनाव परिणाम बदल देने की आशंकाएं धीरे-धीरे कम होती गई हैं, हालांकि पराजित विपक्ष ऐसे आरोप अब भी लगाता ही है। इस बार उत्तर प्रदेश में कड़ा मुकाबला दिखाई दे रहा है। भाजपा मजबूत है, लेकिन उसको कड़ी चुनौती मिल रही है। कम से कम माहौल ऐसा बना है कि उसकी सरकार जा भी सकती है। इसी माहौल के कारण विपक्ष, विशेष रूप से सपा में उत्साह है। इसी कारण उसके कार्यकर्ता और प्रत्याशी ईवीएम की सुरक्षा के लिए अधिक ही सतर्क हैं। दस मार्च आने में अधिक समय नहीं है।
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