लखनऊ:लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ (University Politics) की ‘नर्सरी’ से राजनीतिक दीक्षा लेकर कई छात्र नेता राजनीति में गहरी जड़ें जमा चुके हैं और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अलग-अलग राजनीतिक दलों के जरिये 18वीं विधानसभा में अपनी सीट सुरक्षित करने की प्रक्रिया में फिर से सक्रिय हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके उत्तर प्रदेश सरकार के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक भाजपा के टिकट पर लखनऊ के कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और अब दस मार्च को चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहे हैं। पाठक ने पिछला चुनाव लखनऊ मध्य सीट से भाजपा के ही टिकट पर जीता था।
लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके मनोज तिवारी भी लखनऊ पूर्व क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में थे और उन्हें भी परिणाम का इंतजार है। समाजवादी पार्टी ने इस बार फिर रविदास मेहरोत्रा को लखनऊ मध्य से उम्मीदवार बनाया जबकि लखनऊ उत्तर से पूजा शुक्ला को मौका दिया। लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र नेता पूजा शुक्ला 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को काला झंडा दिखाने के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद सुर्खियों में आईं थीं।
लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के एक और पूर्व पदाधिकारी तेज नारायण पांडेय उर्फ पवन पांडेय सपा के टिकट पर अयोध्या की अपनी परंपरागत सीट पर मैदान में हैं और पांचवें चरण में रविवार को वहां मतदान होना है। पवन पांडेय सपा प्रमुख अखिलेश यादव के करीबी माने जाते हैं और 2012 में उनकी सरकार में मंत्री रह चुके हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय में 90 के दशक में छात्रसंघ अध्यक्ष का पद संभालने वाले कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि ‘मुझे छात्र राजनीति के दौरान ही राजनीति की बारीकियों से अवगत होने का मौका मिला और बुनियादी चीजें मैंने उसी दौर में सीखीं।’ पाठक ने बताया, ‘उस समय छात्र राजनीति में मैंने जो सबक सीखा आज भी मेरी मदद और मार्गदर्शन करते हैं। एक छात्र नेता के रूप में मेरे अनुभवों ने मेरे राजनीतिक जीवन और इच्छा को विस्तार दिया है।’
पाठक पहली बार 2004 में उन्नाव से बसपा के टिकट पर लोकसभा सदस्य चुने गये और इसके बाद उन्हें राज्यसभा में भी जाने का मौका मिला। अस्सी के दशक में रविदास मेहरोत्रा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के जरिये छात्र राजनीति का हिस्सा थे। विधानसभा चुनाव में सियासी पारी की शुरुआत कर रहे मनोज तिवारी ने कहा, ‘छात्र राजनीति के दिनों ने मुझे अलग अलग दृष्टिकोण रखने वाले लोगों को साथ लेकर चलना सिखाया और आज की राजनीति में इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।’
लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ नेताओं का कहना है कि पहले छात्रसंघों के चुनाव शिक्षा के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक हुआ करते थे। लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति में सक्रिय रहीं मंजुला उपाध्याय ने कहा, ‘छात्र संघ चुनाव निस्संदेह मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश करने की दिशा में पहला कदम थे लेकिन चुनाव लड़ने वाले लगभग सभी छात्र कैंपस में कुछ सकारात्मक बदलाव लाना चाहते थे।’
उन्होंने कहा कि सार्वजनिक तौर पर बोलने, लोगों को एकजुट करने और जनसंपर्क आदि का हुनर छात्र संघों के चुनावों के दौरान छात्र नेताओं को सीखने को मिला। उपाध्याय ने कहा कि जो नेता छात्र राजनीति से निकले हैं वे उन लोगों की तुलना में समाज की जमीनी हकीकत को बेहतर तरीके से समझते हैं, जिन्हें राजनीति विरासत में मिली।
लखनऊ विश्वविद्यालय में लंबे समय से छात्रसंघ के चुनाव नहीं हुए हैं। पिछला चुनाव लखनऊ विश्वविद्यालय में वर्ष 2006 में हुआ था। लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता अतुल कुमार अंजान ने कहा कि विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनावों के न होने के परिणामस्वरूप गुणवत्तापूर्ण राजनेताओं के निर्माण में कमी आई है क्योंकि छात्रसंघ चुनाव राजनीति की नर्सरी है।
अंजान ने कहा कि छात्र संघों ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम के लिए नेता दिए हैं जिन्होंने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के लिए नई दृष्टि दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि कोई भी राजनीतिक दल लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ को बहाल नहीं करना चाहता है लेकिन ऐसा करके वे सामाजिक प्रक्रिया में बाधा डाल रहे हैं। यह अवरोध राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को जीवंत करने से प्रभावित करता है।
उल्लेखनीय है कि लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप सपा से बाराबंकी जिले की दरियाबाद, मौजूदा विधायक शैलेश सिंह शैलू बलरामपुर की गैसड़ी से चुनाव लड़ रहे हैं। एक और पदाधिकारी दयाशंकर सिंह बलिया सदर से भाजपा के टिकट पर किस्मत आजमा रहे हैं जबकि छात्र नेता धीरेंद्र बहादुर सिंह रायबरेली की सरैनी सीट से फिर भाजपा उम्मीदवार हैं।
अयोध्या से चुनाव लड़ रहे पवन पांडेय ने कहा कि उन्हें छात्रसंघ की राजनीति के अनुभवों ने नई दिशा दी और इसका राजनीतिक जीवन में लाभ मिला। उन्होंने कहा, ‘इससे मुझे लोकतंत्र के गुणों और वोट की वास्तविक शक्ति का अहसास हुआ।’
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