चुनाव आते ही हर राजनीतिक दलों का फोकस महिला वोटर्स पर सबसे ज्यादा रहता है। बड़े से बड़े नेता घर-घर जाकर महिलाओं के सामने हाथ जोड़कर वोट मांगते हैं। महिलाओं के लिए चुनावी वादे किए जाते हैं। सभी बड़ी पार्टियां यही दावा करती हैं कि उनके यहां महिलाओं का काफी सम्मान होता है। वह महिलाओं के हक के लिए सबसे ज्यादा खड़े होते हैं। लेकिन आंकड़े कुछ और ही बोल रहे हैं। ये हैरान करने वाले हैं….
पहले जान लीजिए पहले चरण की कहानी
10 फरवरी को उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान हुआ। 58 सीटों पर 623 प्रत्याशी मैदान में थे। इनमें महिलाओं की संख्या महज 74 यानी 12% थी। बाकी 549 पुरुष प्रत्याशी थे। किसी भी पार्टी ने महिलाओं को 50% भागीदारी देना तो छोड़िए सही से 30% भी नहीं दिया। टिकट बंटवारे में पुरुष ही हावी थे। सबसे ज्यादा खराब स्थिति समाजवादी पार्टी में है। टिकट देने में सपा सबसे पीछे रही।
पार्टी
उम्मीदवार
कांग्रेस
28%
भाजपा
12%
बसपा
07%
सपा
07%
दूसरे चरण में भी वही कहानी
दूसरे चरण में 55 सीटों पर 586 प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई। इसमें भी महिलाओं की स्थिति दयनीय रही। सभी राजनीतिक दलों ने मिलकर केवल 12% यानी 69 महिलाओं को टिकट दिया था।
पार्टी
महिला उम्मीदवार
कांग्रेस
37%
भाजपा
9%
बसपा
07%
सपा
06%
आरएलडी
00%
तीसरे चरण में थोड़ी ठीक हुई स्थिति
पहले और दूसरे चरण के मुकाबले तीसरे चरण में महिला प्रत्याशियों की संख्या में थोड़ी बेहतर हुई है। पहले और दूसरे फेज में जहां 12% महिला प्रत्याशी मैदान में थीं, वहीं तीसरे फेज में यह 15% हो गई हैं। इस चरण में कुल 627 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें से 96 यानी 15% महिला प्रत्याशी हैं।
पार्टी
महिला उम्मीदवार
कांग्रेस
45%
भाजपा
16%
बसपा
12%
समाजवादी पार्टी
09%
लेकिन मतदाता सूची में करीब-करीब बराबरी की हिस्सेदारी?
भले ही महिलाओं को टिकट देने में राजनीतिक दल काफी पीछे रहे, लेकिन मतदाता सूची में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग बराबरी की है। देखिए ये आंकड़े
पहले चरण में कुल 2.28 करोड़ मतदाता थे। इनमें 1.24 करोड़ पुरुष और 1.04 करोड़ महिला वोटर्स थे।
दूसरे चरण में 2.02 करोड़ मतदाता थे। इनमें 1.07 करोड़ पुरुष, जबकि 93 लाख वोटर्स महिलाएं थीं।
तीसरे चरण में 2.15 करोड़ मतदाता हैं। इनमें 1.16 करोड़ पुरुष, जबकि 99 लाख महिला वोटर्स हैं।
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