डॉ. रामू सिंह परिहार, फतेहपुर: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Vidhansabha Chunav 2022) का मतदान कुछ ही दिनों में शुरू होने वाला है। सभी दल यूपी की सत्ता में आने को पूरी तरह से अपनी ताकत झोंक रह हैं। वहीं, कांग्रेस कभी एक समय में बड़ी पार्टी में शुमार हुआ करती थी, लेकिन वर्तमान में कांग्रेस अस्तित्व के लिए लड़ती हुई दिख रही है। एक ऐसा ही किस्सा यूपी की राजनीति से जुड़ा हुआ है, जब बोफोर्स का मामला सामने आने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। ये कोई और नहीं देश के आठवें प्रधानमंत्री वीपी सिंह थे तो आइए जानते हैं वो किस्सा…
उत्तर प्रदेश का फतेहपुर जिला गंगा-जमुनी तहजीब के लिए ही नहीं जाना जाता, राजनीति से भी इसका काफी पुराना नाता रहा है। आप चाहे इंदिरा गांधी का नाम लें या सम्पूर्णानंद का, चाहे फिर लाल बहादुर शास्त्री हों या राजा मांडा विश्वनाथ प्रताप सिंह रहे हों। विश्वनाथ प्रताप सिंह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के काफी करीबी माने जाने थे। उसी दौरान भारत में बोफोर्स का मामला काफी चर्चा में था।
मांडा के राजा रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह बोफोर्स दलाली का मामला सामने आने पर ही कांग्रेस छोड़ दी थी। इसके बाद उन्होंने देशभर में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला और विपक्षी पार्टियों को एकजुट किया। उसी दौरान कांग्रेस के खिलाफ प्रयागराज में सबसे बड़ी रैली हुई थी, जिसमें एनटी रामाराव, देवीलाल जैसे दिग्गज भी शामिल हुए थे।
वीपी सिंह ने बोफोर्स तोप दलाली मुद्दे पर मंत्री पद को त्याग दिया था
80 के दशक के आखिरी सालों में राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है, नारे के साथ विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के आठवें प्रधानमंत्री बने थे। बोफोर्स तोप दलाली के मुद्दे पर मंत्री पद को लात मार आए वीपी सिंह भारतीय राजनीति के पटल पर नए मसीहा और क्लीन मैन की इमेज के साथ अवतरित हुए, लेकिन मंडल कमीशन की सिफारिशों को देश में लागू करते ही वीपी सिंह सवर्ण समुदाय की नजर में राजा नहीं, रंक और देश का कलंक में तब्दील हो गए।
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