प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में पल-बढ़ रहे सबसे बड़े रोग भ्रष्टाचार को लेकर चिंता जाहिर की है और फिर से देशवासियों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है। भ्रष्टाचार एक दीमक की तरह है जो देश को, उसकी अर्थव्यवस्था को, विकासमूलक कार्यों को और कुल मिलाकर नैतिकता एवं मूल्यों को खोखला कर रहा है। यह उन्नत एवं मूल्याधारित समाज के विकास में बड़ी बाधा है। शासन व्यवस्था की भ्रष्टता सशक्त भारत निर्माण का बड़ा अवरोध है। हाल में ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की ओर से जारी भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक में भारत को दुनिया भर के 180 देशों की सूची में 85वां स्थान मिला है। जाहिर है, यह तस्वीर कोई संतोषजनक नहीं है और देश में सत्ता से लेकर विपक्षी दलों और जनता तक के स्तर पर सभी पक्षों को सक्रिय रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाना होगा, भ्रष्टाचार का मुद्दा चुनावी मुद्दा भी बनना चाहिए एवं पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में इसकी खनक सुनाई देनी चाहिए। खासतौर पर राजनीतिक पार्टियों के भीतर इस बेहद जटिल समस्या से निपटने के लिए ईमानदार इच्छाशक्ति की जरूरत है।
आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए एक बड़ा एवं कड़वा सच यह है कि इस समस्या से देश लंबे समय से पीड़ित है और इसका खामियाजा आखिरकार जनता को भुगतना पड़ता है। स्वाभाविक ही इसका सीधा असर देश के विकास पर पड़ा, जिसके आईने में हम पिछले सात दशक से ज्यादा के आजादी के सफर को आंकते हैं। बड़े पदों पर आसीन अधिकारियों एवं मंत्रियों-राजनेताओं के भ्रष्टाचार ज्यादा बड़ी समस्या है क्योंकि उनके उजागर होने, उजागर हो जाने पर उन्हें दबा दिये जाने की त्रासद स्थितियां अधिक चुनौतीपूर्ण है, उन पर लगाम लगाना ज्यादा जटिल है। यह बात हाल ही में भ्रष्टाचार के आरोप में गैस अथारिटी आफ इंडिया लिमिटेड के मार्केटिंग निदेशक ईएस रंगनाथन की गिरफ्तारी बताती है।
सवाल है कि आखिर कौन-सी वजहें रहीं कि तमाम जद्दोजहद के बावजूद लंबे समय से यह समस्या न केवल ज्यों की त्यों बनी है, बल्कि कई स्तरों पर पहले के मुकाबले जटिल भी हुई है। क्या सरकार से लेकर आम लोगों के भीतर भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने की इच्छाशक्ति में कमी रही या दायित्वबोध का अभाव रहा, जिसके चलते आज भी इस पर फिक्र जतानी पड़ती है? सरकार के तमाम दावों के बावजूद भ्रष्टाचार पर प्रभावी लगाम नहीं लग पा रही है। पिछले दिनों भ्रष्टाचार का एक अन्य मामला भी चर्चा में रहा है जिसमें नेशनल सिक्योरिटी गार्ड के डिप्टी कमांडेंट प्रवीण यादव को 131 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया गया है। इस अधिकारी ने कितने बड़े पैमाने पर अपनी धोखाधड़ी का जाल फैला रखा था इसका पता इससे चलता है कि उसके करीब 45 खाते फ्रीज किए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ईमानदार एवं भ्रष्टाचारमुक्त शासन देने के संकल्प के साथ कहा गया वाक्य कि न खाऊंगा और न खाने दूंगा, का असर मंत्रियों, सांसदों पर तो ऊपरी तौर पर दिख रहा है, लेकिन विभिन्न सरकारी कम्पनियों में भ्रष्टाचार व्यापकता से आज भी पसरा है, गैल का ताजा भंडाफोड इसका उदाहरण है।
प्रधानमंत्री ने भी यह कहा कि हमें अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देते हुए मिल कर शीघ्र ही भ्रष्टाचार से मुक्ति पानी है। इसके लिए आने वाले दशकों तक या अनिश्चितकाल तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है। केन्द्र के साथ-साथ विभिन्न राज्य सरकार को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि अधिकारियों और कारोबारियों, अधिकारियों एवं गैर सरकारी संगठनों के बीच साठगांठ के चलते बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी भी हो रही है और सरकारी धन सेवा के नाम पर किन्हीं खास लोगों एवं संगठनों तक पहुंच रहा है। यह टैक्स चोरी या किन्हीं खास लोगों-संगठनों को स्व-लाभ की शर्तों पर लाभ पहुंचाना भी भ्रष्टाचार का ही रूप है। लिहाजा सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए नए उपायों पर विचार करे और प्रधानमंत्री लम्बे समय से इसके लिये प्रयासरत है। उनके प्रयासों का असर दिख भी रहा है। लेकिन इसके लिये प्रशासनिक, राजनीतिक एवं जनक्रांति की अपेक्षा है। इसकी एक बड़ी मुश्किल यह है कि देश में ऐसे तमाम लोग हैं, जो भ्रष्टाचार को एक गंभीर समस्या मानते हैं, उसके पीड़ित भी हैं, लेकिन लंबे समय से इसका सामना करने की वजह से शायद वे इसके अभ्यस्त हो गए हैं और इसीलिए इसके प्रति उदासीन दिखते हैं। हालांकि देश की ज्यादातर आबादी इस पर लगाम लगाने के लिए ठोस कदम उठाने की अपेक्षा करती है।
आसान शब्दों में कहें तो भ्रष्टाचार उन लोगों के द्वारा जिनमें पॉवर होती है एक प्रकार का बेईमान या धोखेबाज आचरण को दर्शाता है। यह समाज की बनावट को भी खराब एवं भ्रष्ट करता है। यह लोगों से उनकी आजादी, स्वास्थ्य, धन और कभी-कभी उनके जीवन को ही खत्म कर देता है। किसी ने सही कहा है कि भ्रष्टाचार एक मीठा जहर है। भारत में हर साल खरबों की राशि या तो रिश्वतखोरी या फिर भ्रष्ट तरीकों की भेंट चढ़ जाती है जिससे कानून के शासन की अहमियत तो कम होती ही है, साथ ही स्वस्थ शासन व्यवस्था का सपना चकनाचूर होता है।
प्रधानमंत्री के नया भारत एवं सशक्त भारत के निर्माण में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। इस विकराल होती समस्या से मुक्ति के प्रधानमंत्री युवाओं से विशेष उम्मीद जाहिर की है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार को खत्म करने का काम हम सभी देशवासियों को, आज की युवा पीढ़ी को मिल कर करना है। इसके लिए बहुत जरूरी है कि हम अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता दें। आज की युवा पीढ़ी न केवल समूचे तंत्र में गहरे पैठे भ्रष्टाचार को बाकी समस्याओं की जड़ मानती है, बल्कि समय पर उचित प्रतिक्रिया भी देती है। चाहे इस पर राय जाहिर करना हो, किसी रूप में भ्रष्ट व्यवहार के खिलाफ जूझना हो या फिर इसके अंत के लिए आंदोलनों में हिस्सा लेना हो। विडम्बना तो यह भी है कि भ्रष्टाचार के जितने मामले प्रकाश में आते हैं, उन्हें दबाने में भी एक नये तरीके का भ्रष्टाचार होता है। आवश्यक केवल यह नहीं है कि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों की निगरानी हो और उनके खिलाफ समय-समय पर छापेमारी भी की जाए। इसके साथ ही आवश्यक यह भी है कि उन कारणों का निवारण भी किया जाए जिनके चलते अधिकारी भ्रष्टाचार करने में सक्षम बने हुए हैं। यदि भ्रष्ट अधिकारियों को यथाशीघ्र सजा देने में सफलता नहीं मिलती तो फिर भ्रष्ट तत्वों को हतोत्साहित नहीं किया जा सकता।
दरअसल, राष्ट्र के प्रति कर्तव्य भाव की अनदेखी के चलते भ्रष्ट मानसिकता वाले लोग अपने दायित्व की उपेक्षा करके कदाचार में लिप्त होते हैं और जो सेवा व्यवस्थागत तौर पर जनता के अधिकार के तौर पर तय की गई होती है, उसे हासिल करने के लिए लोगों को अवैध तरीके से पैसे चुकाने से लेकर कई स्तरों पर परेशान होना पड़ता है। यह मुश्किल केवल निचले स्तर पर नहीं है, बल्कि समूचे तंत्र में हर ऊपरी सीढ़ी पर भ्रष्टाचार अपने जटिल स्वरूप में और गंभीर होता चला जाता है। भ्रष्टाचार के ज्यादातर मामलों में यही सामने आता है कि अधिकारी और कारोबारी मिलकर मनमानी करते हैं। भ्रष्ट अधिकारियों और कारोबारियों के बीच मिलीभगत कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह चिंता की बात है कि इस मिलीभगत को तोड़ने में अपेक्षित सफलता मिलती हुई नहीं दिख रही है। यह ठीक है कि केंद्र सरकार के शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है और भ्रष्टाचार का कोई बड़ा मामला पिछले छह-सात सालों में सामने नहीं आया है, लेकिन यह तो चिंताजनक है ही कि निचले स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार में कोई उल्लेखनीय कमी आती नहीं दिख रही है।
भारत अभी भी विकासशील देशों में से एक है। पूर्ण रूप से विकसित ना होने का सबसे बड़ा कारण यहां देश मे बढ़ता भ्रष्टाचार ही है। भ्रष्टाचार की बढ़ती विभीषिका को नियंत्रित करने के लिये मोदी के अनेक प्रभावी एवं कारगर प्रयत्नों में नोटबन्दी भी एक है। मोदी सरकार ने देश में एक नयी चुस्त-दुरूस्त, पारदर्शी, जवाबदेह और भ्रष्टाचार मुक्त कार्यसंस्कृति को जन्म दिया है, इस तथ्य से चाह कर भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। न खाऊंगा का प्रधानमंत्री का दावा अपनी जगह कायम है लेकिन न खाने दूंगा वाली हुंकार अभी अपना असर नहीं दिखा पा रही है। वर्तमान सरकार की नीति और नियत दोनों देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की है, लेकिन उसका असर दिखना चाहिए।
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