लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) के लिए प्रत्याशियों की एक और लिस्ट (BJP Candidate List 2022) जारी कर दी है। इस लिस्ट में 91 प्रत्याशियों के नाम है। टिकटों के बंटवारे में अगर अवध क्षेत्र (Avadh Kshetra BJP Candidates) की सीटों को देखें तो पार्टी ने ज्यादातर पुराने चेहरों यानी सिटिंग एमएलए पर भरोसा जताया है। अयोध्या सीट (Ayodhya) पर वर्तमान विधायक वेद प्रकाश गुप्ता (Ved Prakash Gupta) को मौका दिया गया है। वहीं आस-पड़ोस के बाराबंकी, गोंडा, बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती, सुलतानपुर और अंबेडकरनगर जैसे जिलों में ज्यादातर प्रत्याशी रिपीट हैं। एक विश्लेषण…
पुराने चेहरों पर भरोसा जताना बीजेपी को भारी पड़ सकता है या उसे पहले जैसी कामयाबी मिल सकती है? यूपी की राजनीति को गहरे से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया, ‘चुनाव के ठीक पहले कद्दावर नेताओं के पार्टी छोड़ने से सकते में आई बीजेपी ने जोखिम उठाने से खुद को रोका। जिन क्षेत्रों में प्रदर्शन के आधार पर विधायकों के टिकट कटने का अंदेशा जताया जा रहा था, वहां दावेदारों के बीच में किसी तरह के विवाद से बचने के लिए आखिरकार सबको चुनाव लड़ने के लिए भेज दिया। इसकी एक वजह और भी रही है। अवध क्षेत्र में जो भी वर्तमान विधायक हैं वो बीजेपी के किसी न किसी खेमे से जुड़े रहे हैं। बीजेपी में जो शक्ति पुंज हैं, उनमें भी आपस में होड़ लगी थी कि हमारे प्रत्याशियों का टिकट क्यों कटे? इस वजह से भी खराब छवि वाले या बेहतर प्रदर्शन न करने वाले जिन विधायकों की लोकप्रयिता घटी थी, उनको भी टिकट वापस दे दिया है।’
क्या इस रणनीति की वजह से बीजेपी को नुकसान हो सकता है या पार्टी अच्छे प्रदर्शन को लेकर आश्वस्त है? इस पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस आगे कहते हैं, ‘चुनाव के इस नाजुक मौके पर बीजेपी अंतर्कलह भी मोल नहीं लेना चाहती थी। उससे बचना चाहती थी। इसका नुकसान यह है कि विधायकों के प्रति जो नाराजगी है और जो सत्ता विरोधी रुझान होता है, ये दोनों मिलकर बीजेपी को परेशानी में डालेंगे। अंतर्कलह से तो पार्टी बची लेकिन विधायकों के प्रति नाराजगी और आम तौर पर सरकार चलाने के बाद सत्ता विरोधी रुझान होता है, उसको थामने में बीजेपी को मशक्कत करनी पड़ेगी। इसकी भरपाई करने के लिए बीजेपी पश्चिम की तरह ही नेताओं की पूरी फौज उताकर लोगों को समझाने बुझाने और अपने पाले में बनाए रखने का प्रयास करेगी।’
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कुछ ऐसी सीटें थीं, जिन पर प्रत्याशियों के खिलाफ असंतोष का फीडबैक बीजेपी के पास था लेकिन फिर भी टिकट नहीं बदले गए। इस पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया, ‘जैसे रायबरेली की सरेनी सीट से धीरेंद्र बहादुर सिंह या बलरामपुर की गैंसड़ी सीट से शैलेश प्रताप सिंह शैलू को ले लीजिए या डुमरियागंज से 167 वोटों से जीतने वाले राघवेंद्र प्रताप सिंह को ले लीजिए। ज्यादातर नाम ऐसे हैं जिनको लेकर माना जा रहा था कि इनके टिकट पर संकट के बादल हैं। लेकिन इन सबको ले लिया।’
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वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस आगे कहते हैं, ‘गोंडा की गौरा सीट से प्रभात वर्मा का उदाहरण ले लीजिए। उनके खिलाफ मनकापुर स्टेट से जुड़े कद्दावर नेता आनंद सिंह ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को चिट्ठी लिखी थी। अस्वस्थ अजय प्रताप सिंह लल्ला भैया जो खुद अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे, उनको ही टिकट दे दिया गया। बहराइच सदर से अनुपमा जायसवाल को तमाम शिकायतों के बाद मंत्री पद से हटाया गया था लेकिन उनको भी टिकट दे दिया गया। कैसरगंज से मुकुट बिहारी वर्मा के बेटे गौरव वर्मा को टिकट दिया गया है। उनकी उम्र 75 साल हो चुकी थी, इसलिए पैमाने में फिट नहीं हो रहे थे लेकिन टिकट परिवार में ही रह गया।’
बीजेपी के इस दांव का नफा-नुकसान क्या है? इस पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने बताया, ‘विधानसभा में 33 प्रतिशत पार्टी के नाम पर, 33 प्रतिशत सीएम चेहरे के नाम पर और 33 प्रतिशत कैंडिडेट के नाम पर मिलता है। कैंडिडेट की अलोकप्रियता को टिकट काटने का आधार नहीं बनाते हैं तो आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है।’
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