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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में उत्तर प्रदेश हायर एजूकेशन सर्विसेस कमीशन एक्ट (यूपीएचईएससी अधिनियम)-1980 की वैधता को सही ठहराया है। हाईकोर्ट ने कहा कि इसमें कोई दोष नहीं है, क्योंकि यह राज्य विधानमंडल द्वारा प्रक्रियागत पारित किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर विचार करते हुए सही ठहराया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने पंडित पृथ्वीनाथ मेमोरियल सोसाइटी व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
मामले में याची ने उत्तर प्रदेश हॉयर एजूकेशन सर्विसेस कमीशन की वैधता को चुनौती दी थी। याची का कहना था कि यह एक्ट सहायता प्राप्त गैर अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों की प्रबंधकीय शक्तियां को समाप्त कर देता है।
याची ने इस एक्ट को असांविधानिक बताते हुए तर्क दिया कि यह कानून उनके मूल अधिकारियों खासकर अनुच्छेद 14, 19 और 19(1)(जी) का हनन करता है। याची ने याचिका में अपने शैक्षणिक संस्थान में शिक्षकों की नियुक्ति एवं अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की छूट देने की मांग की थी। लेकिन हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की टीएमए पाई फाउंडेशन बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक (2002) के मामले में सांविधानिक पीठ के फैसले के साथ कई अन्य निर्णयों का हवाला देते हुए याची के तर्कों को खारिज कर दिया।
कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट निर्णय दिया है। इसलिए यूपीएचईएससी अधिनियम-1980 की वैधता पर कोई सवाल नहीं खड़ा होता है। हाईकोर्ट ने कहा कि याची स्वयं स्वीकार कर रहा है कि विधानमंडल को कानून पारित करने का अधिकार है। लिहाजा यह कानून न तो असांविधानिक है और न ही इससे याची के मूल अधिकारों का हनन होता है, अत: याचिका पोषणीय नहीं है।
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