अभय सिंह राठौर, लखनऊ
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (UP Vidhansabha Chunav 2022) का चुनावी बिगुल बज चुका है। ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी तैयारियों को लेकर भी अमली जामा पहनाने में जुट गई हैं। वहीं, नेता भी अपनी सियासी नैया को पार लगाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसी क्रम में कांग्रेस से बगावत कर चुके इमरान मसूद ने बुधवार को लखनऊ में सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात कर अपने सियासी भविष्य का संदेश दे दिया है।
कांग्रेस विधायक मसूद भी अखिलेश से मिले
हाल ही में सूबे के सहारनपुर जिले से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव इमरान मसूद (Imran Masood) ने जल्द ही अखिलेश यादव से मुलाकात करने की बात कहते हुए कहा था कि अगर भारतीय जनता को मात देनी है तो समाजवादी पार्टी ही एक मात्र विकल्प है। उनके इस बयान के बाद लगभय तय हो गया था कि वो बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए सपा की साइकिल का दामन थाम सकते हैं। जानकारी के मुताबिक, इमरान मसूद ने जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात की है, उनके साथ सहारनपुर की देहात सीट से कांग्रेस विधायक मसूद अख्तर भी मौजूद थे।
पश्चिमी यूपी में अखिलेश का प्लान
जानकारी के मुताबिक, 2013 में सपा सरकार में हुए मुजफ्फरनगर दंगे की तपिश भले ही किसान आंदोलन के बाद थोड़ी ठंडी पड़ी हो, लेकिन अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) इस बात से भलीभांति वाकिफ हैं कि पश्चिमी यूपी में उनके लिए माहौल ठीक नहीं है। बिना किसी बैशाखी के अकेले दम पर पश्चिमी यूपी में वैतरणी पार लगाना लोहे के चने चबाने जैसा हो सकता है। इसीलिये अखिलेश यादव ने पश्चिमी यूपी में बीजेपी को हराने के लिये एक मास्टर प्लान तैयार किया है। उस प्लान के तहत अखिलेश ने किसान आंदोलन से मजबूत हुए राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ गठबंधन किया। अब उसी पश्चिमी यूपी के बड़े मुस्लिम नेता माने जाने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव इमरान मसूद की सपा में जॉइनिंग भी उसी प्लान का एक हिस्सा है। मुजफ्फरनगर दंगे का खामियाजा अखिलेश यादव को 2014 के लोकसभा और विधानसभा के 2017 चुनाव में भुगतना पड़ चुका है।
मुस्लिम समुदाय में मजबूत पकड़
इमरान मसूद के राजनीतिक कॅरियर पर नजर डालें तो कुछ खास नहीं रहा है मसूद ने 2007 का विधानसभा चुनाव निर्दलीय लड़ा। जिसमें उनको जीता मिली, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, जिसके बाद वो सपा में शामिल हो गए, लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस में वापसी कर ली और सहारनपुर से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के प्रत्याशी बने, लेकिन मोदी लहर में हार गए। यही हाल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी हुआ। अब फिर से 2022 के चुनाव से पहले सपा का रुख कर चुके हैं, लेकिन चुनाव में हार जीत से इतर इमरान मसूद को सहारनपुर से पांच बार कांग्रेस से लोकसभा सांसद रहे राशिद मसूद के भतीजे होने का भरपूर फायदा मिलता रहा है, जिसके कारण उनकी मुस्लिमों में अच्छी पकड़ मानी जाती है। मसूद के पास अपने क्षेत्र में ही समर्थकों का एक बड़ा समूह है विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय से जुड़ा, जिनकी आबादी 42 प्रतिशत है।
50 से ज्यादा सीटों पर जाट-मुस्लिम का असर
जानकारी के मुताबिक, पश्चिमी यूपी में करीब 26 जिलों की 136 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली, आगरा समेत कई जिले आते हैं। वहीं, पश्चिमी यूपी में 20 फीसदी के करीब जाट और 30 से 40 फीसदी मुस्लिम हैं। इन दोनों के साथ आने से करीब 50 से ज्यादा सीटों पर जीत लगभग तय हो जाती है। वहीं, 2017 की बात करें तो भाजपा को रेकॉर्ड 136 में से 109 सीट मिली थीं, जबकि अखिलेश यादव के हिस्से में 20 सीटें ही आई थी। इसी किले को भेदने के लिए सपा पहले RLD के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ गठबंधन कर चुकी है, बस सीटों पर बात बननी तय रह गई है। वहीं, इमरान मसूद के साथ आने से बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी होना तय माना जा रहा है।
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