लखनऊ
उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा से बाहुबली नेताओं का दबदबा रहा है। अपने रसूख के दम पर ये ‘माननीय’ चुनावी बयार का रुख अपनी तरफ मोड़ने में माहिर होते हैं। पूर्वांचल के ऐसे ही एक कद्दावर नेता हुआ करते थे अमरमणि त्रिपाठी। पूर्वांचल के ‘डॉन’ कहे जाने वाले हरिशंकर तिवारी के राजनीतिक वारिस रहे अमरमणि का जलवा कुछ ऐसा था कि सरकार चाहे भाजपा की रही हो या सपा-बसपा की, वे हर कैबिनेट का जरूरी हिस्सा हुआ करते थे। लगातार 6 बार विधायक रहे अमरमणि त्रिपाठी उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने जेल में रहते हुए भी जीत हासिल की है। अमरमणि आज भी गोरखपुर जेल में सलाखों के पीछे अपने गुनाहों की सजा काट रहे हैं।
अब हम आपको बताते हैं कि इतना रसूख वाला दबंग नेता आखिर जेल कैसे चला गया। वैसे तो अमरमणि त्रिपाठी का अपराध की दुनिया से हमेशा नाता रहा, लेकिन 19 साल पहले एक ऐसी बड़ी घटना हो गई थी जिसने इस बाहुबली का पूरा राजनीतिक करियर चौपट कर दिया। दरअसल 9 मई, 2003 को राजधानी लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी में मधुमिता शुक्ला नाम की 24 वर्षीय कवियत्री की गोली मार कर हत्या कर दी गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मधुमिता के प्रेग्नेंट होने की बात सामने आई थी। डीएनए जांच में पता चला कि कवियत्री के पेट में पल रहा बच्चा अमरमणि त्रिपाठी का है। इस घटना से यूपी के सियासी हलके में भूचाल आ गया था। मधुमिता की हत्या का आरोप अमरमणि पर लगा। इस पूरी साजिश में उनकी पत्नी मधुमणि भी शामिल थीं। छह महीने के भीतर ही देहरादून फास्टट्रैक कोर्ट ने अमरमणि, मधुमणि समेत चार दोषियों को उम्रकैद की सजा सुना दी।
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मधुमिता पर दिल हार बैठे शादीशुदा रहे अमरमणि
बताते हैं कि मधुमिता शुक्ला उन दिनों वीर रस की ओजपूर्ण कवियत्री हुआ करती थी। लखीमपुर खीरी की रहने वाली मधुमिता 16-17 साल की उम्र में ही बेहद चर्चित हो गई थी। वह अपनी कविताओं में देश के प्रधानमंत्री समेत तमाम बड़े नेताओं को निशााने पर रखने लगी थी। अपने तेजतर्रार अंदाज से मशहूर हुई मधुमिता शुक्ला हिंदी कवि सम्मेलनों की शान बन गई। प्रसिद्धि बढ़ी तो उसके अंदर राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी पनपने लगीं। अब यहां उसकी जिंदगी में अमरमणि त्रिपाठी की एंट्री होती है। दोनों में नजदीकियां बढ़ती है और शादीशुदा अमरमणि अपना दिल हार बैठते हैं। मधुमिता का नाम उस दौर के और भी कई सियासतदानों के साथ जुड़ा और वह स्टार कवयित्री बन गई। उसका कद इतना बढ़ गया था कि बड़े-बड़े कवि सम्मेलनों में उसकी मर्जी चलने लगी। सबकुछ सही चल रहा था पर एक दिन अचानक उसकी हत्या हो जाती है जो पूर्वांचल के बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी के पतन का कारण बन गया।
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2007 में हाईकोर्ट ने बरकरार रखी उम्रकैद की सजा
पहले तो सीबीसीआईडी ने इस हत्याकांड की जांच शुरू की पर बाद में सीबीआई को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी गई। दरअसल विपक्षी नेताओं की शिकायत थी कि अमरमणि अपने रसूख के चलते जांच प्रभावित कर रहे थे। सीबीआई ने अपनी जांच पूरी की और जब चार्जशीट दाखिल किया तो उसमें अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि, भतीजा रोहित चतुर्वेदी समेत दो शूटरों संतोष राय और प्रकाश पांडेय को आरोपी बनाया। देहरादून फास्टट्रैक ने तेजी से इस मामले को निपटाया और प्रकाश पांडे को छोड़कर सभी लोगों को दोषी करार दिया। सबको उम्रकैद की सजा सुनाई गई जबकि प्रकाश पांडे को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। बाद में मामला नैनीताल हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट ने 2007 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार तो रखा ही, प्रकाश पांडे को भी उम्रकैद की सजा सुनाई।
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गोली की आवाज आई और बिस्तर पर खून से सनी पड़ी थी मधुमिता
सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक, पेपरमिल कॉलोनी में मधुमिता अकेली रहती थी। साथ में उनका नौकर देशराज भी रहता था। घटना वाले दिन शूटर संतोष राय और प्रकाश पांडे मधुमिता के घर सुबह के वक्त पहुंचते है। मधुमिता उन दोनों के साथ कमरे में बैठकर बातचीत कर रही होती है जबकि देशराज किचन में चाय बना रहा होता है। इसी दौरान गोली चलने की आवाज आती है। देशराज दौड़कर जब कमरे में पहुंचता है तो बिस्तर पर लहूलुहान हालत में मधुमिता पड़ी मिली। संतोष राय और प्रकाश पांडे वहां से रफूचक्कर हो जाते हैं। नौकर देशराज के बयान को अहम मानते हुए सीबीआई ने जब जांच आगे बढ़ाई तो अमरमणि तक कडि़यां जुड़ती चली गईं।
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बिजनेसमैन के बेटे की किडनैपिंग में भी रहे शामिल
अमरमणि त्रिपाठी के कारनामों की बात करें और साल 2001 के उस वाकये का जिक्र न हो, ऐसा हो नहीं सकता। दरअसल उस समय यूपी में बीजेपी की सरकार थी। इस समय देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तब मुख्यमंत्री हुआ करते थे। अमरमणि उनकी सरकार में मंत्री थे। उस दौरान बस्ती जिले के एक बड़े कारोबारी के 15 साल के बेटे की किडनैपिंग हो गई। खूब हो-हल्ला मचा और आनन-फानन बिजनेसमैन के बेटे राहुल मदेसिया को पुलिस ने बरामद कर लिया। पूरे मामले की जब छानबीन हुई तो पता चला कि अपहरणकर्ताओं ने राहुल को अमरमणि के बंगले में ही छिपा रखा था। इस घटना को लेकर बीजेपी सरकार की जमकर किरकिरी हुई और अमरमणि त्रिपाठी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया।
पिता की तरह बेटे अमनमणि त्रिपाठी का दामन भी दागदार
महराजगंज की नौतनवा सीट से चुनाव जीतते आ रहे अमरमणि त्रिपाठी ने 2007 में जेल के भीतर से चुनाव लड़ा पर इस बार वह लक्ष्मीपुर सीट से उतरे और जीत हासिल की। हालांकि हाईकोर्ट से सजा मिलने के बाद अमरमणि की राजनीतिक सक्रियता धीरे-धीरे कम होने लगी और अब पूरी तरह से खत्म हो गई है। अब उनके बेटे अमनमणि त्रिपाठी नौतनवां सीट से विधायक हैं। अपने पिता की तरह अमनमणि त्रिपाठी का दामन भी दागदार रहा है। 2015 में उन पर अपनी पत्नी सारा सिंह की हत्या करने का आरोप लगा था। आगरा में हुए कार हादसे में सारा की मौत हो जाती है जबकि अमनमणि त्रिपाठी को मामूली खरोंचे लगती हैं। फिलहाल मामला कोर्ट में चल रहा है।
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