इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में 38 साल बाद फैसला सुनाते हुए अभियुक्त को बरी कर दिया, जबकि सहअभियुक्त पर जुर्माने के निर्धारण के लिए उसे किशोर न्याय बोर्ड के पास भेज दिया। हाईकोर्ट में यह मामला 1983 से लंबित चल रहा था। मामले में पांच अभियुक्तों की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है। हाईकोर्ट दो अभियुक्तों की सजा पर सुनवाई कर रहा था। यह फैसला न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने याची हरनाथ सिंह व अन्य के मामले मेें सुनवाई करते हुए दिया है।
कोर्ट ने पाया कि आरोपी घटना के समय मौके पर उपस्थित जरूर था, लेकिन हत्या में उसकी भूमिका संदिग्ध है। कोर्ट ने आरोपी को इसका लाभ देते हुए सजा से बरी कर दिया। जबकि सहअभियुक्त घटना के समय किशोरावस्था में था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उसे आईपीसी की धारा 149 के तहत दोषी पाया, इसलिए उस पर जुर्माना के निर्धारण के लिए उसे किशोर न्याय बोर्ड के पास भेज दिया।
फर्रूखाबाद जिले का है मामला
मामला फर्रुखाबाद जिले के कन्नौज थाने का है। मामले में कंचन सिंह द्वारा 22 जुलाई 1980 को सात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 323, 147, 149 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। आपसी विवाद में हुए झगड़े के दौरान एक व्यक्ति की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी, जबकि अन्य जख्मी हुए थे।
अपर जिला एवं सत्र न्यायालय ने 29 सितंबर 1983 को दिए गए अपने फैसले में सातों अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अभियुक्तों ने सत्र न्यायालय के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। मामले में पांच अभियुक्तों की मौत हो गई। हाईकोर्ट ने उनकी अपील समाप्त कर दी, जबकि अभियुक्त बृजेंद्र सिंह और सलीम के मामले में सुनवाई जारी रही। याची के अधिवक्ता विनय सरन का तर्क था कि बृजेंद्र सिंह घटना के समय किशोरावस्था का था।
संदेह का लाभ देते हुए किया बरी
सत्र न्यायालय ने सुनवाई के दौरान इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया और उसे भी उम्र कैद की सजा सुना दी। हालांकि, अभियोजन पक्ष का तर्क था कि उसने सहअभियुक्तों के साथ मिलकर घटना को अंजाम दिया। लेकिन, हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दिए गए कई फैसलों और घटना के दौरान बृजेंद्र की अवस्था को ध्यान में रखते हुए उसे केवल जुर्माना देने का निर्णय लिया। कोर्ट ने कहा कि यह जुर्माना किशोर न्याय बोर्ड को तय करना है। कोर्ट ने मामले को किशोर न्याय बोर्ड के पास भेज दिया, जबकि आरोपी सलीम को संदेह का लाभ देते हुए सजा से बरी कर दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में 38 साल बाद फैसला सुनाते हुए अभियुक्त को बरी कर दिया, जबकि सहअभियुक्त पर जुर्माने के निर्धारण के लिए उसे किशोर न्याय बोर्ड के पास भेज दिया। हाईकोर्ट में यह मामला 1983 से लंबित चल रहा था। मामले में पांच अभियुक्तों की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है। हाईकोर्ट दो अभियुक्तों की सजा पर सुनवाई कर रहा था। यह फैसला न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने याची हरनाथ सिंह व अन्य के मामले मेें सुनवाई करते हुए दिया है।
कोर्ट ने पाया कि आरोपी घटना के समय मौके पर उपस्थित जरूर था, लेकिन हत्या में उसकी भूमिका संदिग्ध है। कोर्ट ने आरोपी को इसका लाभ देते हुए सजा से बरी कर दिया। जबकि सहअभियुक्त घटना के समय किशोरावस्था में था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उसे आईपीसी की धारा 149 के तहत दोषी पाया, इसलिए उस पर जुर्माना के निर्धारण के लिए उसे किशोर न्याय बोर्ड के पास भेज दिया।
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