लखनऊ
कभी शेक्सपियर ने कहा था- नाम में क्या रखा है, गुलाब को चाहे जिस नाम से पुकारो, गुलाब ही रहेगा। लेकिन अगर यही सवाल 1989 में कोई मुलायम सिंह यादव से कोई पूछता तो शायद वे उसे शायद उठाकर पटक ही देते।
22 नवंबर 2021 को धरती पुत्र के नाम से प्रसिद्ध मुलायम सिंह यादव का 83वां जन्मदिन है। देशभर के नेता उन्हें बधाई दे रहे हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना कर रहे हैं। इस मौके पर हम आपको वह दिलचस्प किस्सा बता रहे हैं कि जब उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री और भारत के रक्षा मंत्री रहे मुलायम सिंह यादव को अपने ही नाम ने परेशान होना पड़ा और स्थिति ऐसी बन गई कि उन्हें अपनी पहचान बताने के लिए अपने नाम के आगे पिता का नाम जोड़ना पड़ा। सोचिए, अब अगर उस समय कोई मुलायम सिंह यादव से कहता है कि छोड़िए नाम में क्या रखा है, तो शायद उसका भी हश्र वही होता, जो उन्होंने गुस्से में आकर कभी एक दरोगा का किया था।
मुलायम सुघड़ सिंह यादव बनाम मुलायम सिंह यादव
वाकया साल 1989 का है। यह वही विधानसभा चुनाव है जिसके बाद से कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन तलाश रही है। इस चुनाव ने कांग्रेस को अर्श से फर्श तक पहुंचा दिया। इससे पहले 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 425 सीटों में से 309 सीटों पर शानदार जीत मिली थी। इसके बाद 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 269 सीटें मिली और पार्टी को 40 सीटों का नुकसान हुआ।
इसके बाद जब 1989 का चुनाव हुआ, तब मुलायम सिंह यादव प्रदेश की राजनीति का उभरता हुआ नाम था। इस चुनाव में कांग्रेस को करारी हार झेलनी पड़ी और नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री साबित हुए। इस चुनाव में कांग्रेस को महज 94 सीटों पर जीत मिली। इसी चुनाव में मुलायम सिंह यादव पहली बार देश के सबसे बड़े सूबे के मुखिया बने। हालांकि उनका कार्यकाल ज्यादा नहीं चला। 05-12-1989 से 24-06-1991 तक वे प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
वर्ष 1989 के इसी चुनाव में एक वक्त ऐसा भी आया जब मुलायम सिंह यादव अपने नाम की वजह से परेशान हो गए। तब मुलायम सिंह जसवंत नगर विधानसभा सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे। इसी सीट से एक और मुलायम सिंह यादव मैदान में थे। एक ही नाम के दो प्रत्याशियों को लेकर जनता ऊहापोह की स्थिति में थी।
UP chunav 2022: किसान आंदोलन और अब आरएलडी-एसपी गठबंधन…जानें वेस्ट यूपी में बीजेपी के लिए कितनी खड़ी कर सकता है मुश्किलें
उस समय मुलायम सिंह यादव को पूरे प्रदेश में जाना-पहचाना लगा था, लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी ने उनके सामने नाम को लेकर चुनौती तो खड़ी कर ही दी थी। प्रिटिंग में गए बैनर, पोस्टर को रुकवाया गया। मतदाताओं के बीच खुद को प्रचारित करने के लिए उन्हें अपने नाम में पिता का नाम सुघड़ सिंह जोड़ना पड़ा और बैलेट पेपर पर उनका नाम छपा- मुलायम सुघड़ सिंह यादव।
हालांकि मुलायम को मुलायम से चुनौती दिलाने की विपक्ष की वह तरकीब काम नहीं आयी और निर्दलीय मुलायम महज 1032 वोट हासिल कर पाये और असली वाले मुलायम सिंह यादव ने 64.5 हजार वोटों से बड़ी जीत हासिल की।
1991 में जब मुलायम सिंह यादव जसवंतनगर सीट से ही जनता पार्टी से चुनाव लड़े तो उस बार भी उनके सामने निर्दलीय प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव थे, लेकिन इस बार उन्हें पिछली बार से भी कम 328 वोट मिले और इस बार भी मुलायम सिंह यादव ने शानदार जीत दर्ज की।
एक नहीं, कई बार हुई मुलायम की मुलायम से टक्कर
मुलायम सिंह यादव बनाम मुलायम सिंह यादव वाला सीन एक बार नहीं, कई बार बना। 1991 में ही जसवंतनगर सीट से एक और मुलयम सिंह यादव मैदान में थे, जिन्हें 218 वोट मिले थे।
वर्ष 1993 के विधानसभा चुनावों में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। राम आंदोलन के बाद हुए इस चुनाव से पहले ही समजावादी पार्टी का गठन हो चुका था। मुलायम उत्तर प्रदेश की तीन सीट जसवंत नगर (इटावा), शिकोहाबाद (फिरोजाबाद) और निधौली कलां (एटा) से सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में थे और तीनों सीटों पर उनके नाम के निर्दलीय प्रत्याशी भी मैदान में थे।
Kahani Uttar Pradesh ki: तिलमिलाने वाले सवाल पर जब मुस्कुरा के नारायण दत्त तिवारी बोले- मुलायम कब से इतने कठोर बन गए…?
जसवंत नगर में मुलायम को 60 हजार 242 मत मिले जबकि उनकी नामराशि वाले निर्दलीय उम्मीदवार को केवल 192 मत हासिल हुए।. शिकोहाबाद में मुलायम को 55 हजार 249 मत हासिल हुए जबकि उनकी नामराशि वाले निर्दलीय प्रत्याशी को केवल 154 मत मिले, निधौलीकलां में मुलायम सिंह यादव को 41 हजार 683 वोट मिले जबकि उनकी नामराशि वाले निर्दलीय को मात्र 184 मत मिले। मुलायम तीनों सीटों पर विजयी हुए।
सरकार के लिखाफ कविता पढ़ने से रोका तो दरोगा को मंच पर ही उठाकर पटका
खबर पढ़ने से पहले जब आपकी नजर हेडिंग पर गई हो तो आप सोचे होंगे कि उठाकर पटकने जैसी हिंसक बात क्यों?
इसके पीछे भी एक बड़ा दिलचस्प किस्सा है। राजनीति में आने से पहले मुलायम सिंह यादव पहलवानी करते थे, ज्यादातर लोग ये बात जानते हैं। कॉलेज के समय ही प्रतियोगिताओं में भागे लेते थे और अपने क्षेत्र में उनकी पहचान भी पहलवानी को लेकर ठीक-ठाक थी।
तारीख थी 26 जून और साल 1960। मैनपुरी के करहल जैने इंटर कॉलेज में कवि सम्मेलन का अयोजन होता है। सम्मेलन में उस समय के मशहूर कवि दामोदर स्वरूप विद्रोही मंच पर पहुंचते हैं और कविता ‘दिल्ली की गद्दी सावधान’ पढ़ना शुरू करते हैं। कविता सरकार के खिलाफ थी। इसे देखकर वहां तैनात दरोगा ने मंच पर जाकर माइक छीन ली और यक कविता न पढ़ने से मना किया। मंच के पास ही खड़े मुलायम सिंह यादव की उम्र उस समय यही कोई 20-21 की रही होगी।
उन्हें दरोगा के ऊपर इतना गुस्सा आता है कि वे मंच पर जाकर दरोगा को वहीं उठाकर पटक देते हैं। स्कूल में तैनात शिक्षकों ने मुलायम को समझाया, तब जाकर कहीं मामला शांत हुआ। ये किस्सा उस समय वहां अध्यापक रहे बकियापुर, जहानाबाद के बंसलाल ने सुनाया था खूब प्रचलित हुआ।
UP CM रहे चौधरी चरण सिंह का वो किस्सा, जब पूरा थाना सस्पेंड हो गया था
More Stories
Lucknow की ‘लेडी डॉन’ ने आईएएस की पत्नी बनकर महिलाओं से ठगी की, 1.5 करोड़ रुपये हड़पे
Rishikesh में “अमृत कल्प” आयुर्वेद महोत्सव में 1500 चिकित्सकों ने मिलकर बनाया विश्व कीर्तिमान, जानें इस ऐतिहासिक आयोजन के बारे में
Jhansi पुलिस और एसओजी की जबरदस्त कार्रवाई: अपहृत नर्सिंग छात्रा नोएडा से सकुशल बरामद