अक्टूबर 1965, में डॉ होमी जहांगीर भाभा ने ऑल इंडिया रेडियो पर घोषणा की थी कि अगर उन्हें अनुमति मिल जाती है, तो भारत के पास 18 महीने में परमाणु बम बनाने की क्षमता है। इसके ठीक तीन महीने के बाद होमी भाभा की 1966 में विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई। क्या यह षडयंत्र था? या सिर्फ एक दुर्घटना? आखिर किसने की थी ये साजिश? दरअसल, 24 जनवरी 1966 की सुबह लगभग 7:02 बजे, बॉम्बे से न्यूयॉर्क जाने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट आल्प्स पर्वत के मोंट ब्लांक में दुर्घटनाग्रस्त हो गई
जिसमें सवार सभी 117 यात्रियों की मौत हो गई थी। ‘कंचनजंगा’ नाम के इस बोइंग-707 पर सवार यात्रियों में से एक भारत के अग्रणी परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा भी थे। उस दौरान वह सिर्फ 56 वर्ष के थे। दुर्घटना का आधिकारिक कारण विमान और जिनेवा हवाई अड्डे के बीच गलत संचार बताया गया था। हालांकि, आज भी यह दुर्घटना संदेहास्पद है तथा कई ऐसे संकेत मिलते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA की एक साजिश थी, जिससे भारत परमाणु शक्ति न बन पाए।
मैकेनिकल इंजीनियरिंग में पारंगत थें भाभा उस दुर्घटना के बाद विक्रम साराभाई ने 25 जनवरी को बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) में अपनी संवेदना व्यक्त की और भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष के रूप में होमी भाभा के उत्तराधिकारी बने। होमी जहांगीर भाभा का जन्म आज ही के दिन यानी 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक अमीर पारसी परिवार में हुआ था। 18 साल की उम्र में होमी भाभा ने कैंब्रिज यूनवर्सिटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की।
कहा जाता है कि वर्ष 1939 में वो भारत छुट्टियां मनाने आए थे लेकिन लौटकर वापस नहीं जा सकें, क्योंकि तब तक द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ चुका था। इसी दौरान 1940 में भारत के नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ सी वी रमन ने उन्हें बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में भौतिक विज्ञान के रीडर के तौर पर कॉलेज में पढ़ाने को कहा। इसके बाद धीरे-धीरे उनकी पहचान बढ़ती गयी और उन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों का बीड़ा उठाया।
भाभा नोबेल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन की प्रयोगशाला, भारतीय विज्ञान संस्थान और बॉम्बे में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के संस्थापक-निदेशक बने। अलग-अलग रिपोर्ट में अलग-अलग दावे 1966 की दुर्घटना से ब्लैक बॉक्स कभी भी बरामद नहीं हुआ और मोंट ब्लांक के आसपास खतरनाक मौसम की स्थिति के कारण दुर्घटना के एक दिन बाद ही बचाव अभियान रोक दिया गया था। सितंबर 1966, में जांच फिर से शुरू हुई और फ्रांसीसी जांच आयोग ने मार्च 1967 में अपनी रिपोर्ट पूरी की।
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