10-11-2021
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की बागड़ोर संभालने के बाद गरीबों, वंचितों, किसानों और अन्य जरूरतमंदों को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करने के साथ ही उनके सशक्तीकरण का प्रयास शुरू किया। इसके लिए उन्होंने वित्तीय समावेशन पर जोर दिया और कई योजनाएं शुरू कीं। इसके तहत जनधन योजना, आधार-मोबाइल (जैम) और गांव-गांव खुले बैंक मित्रों (बीसी) ने वित्तीय समावेशन में असाधारण एवं सराहनीय भूमिका निभाई है। वहीं डिजिटल ढांचा मजबूत होने, डिजिटल सुविधाएं बढ़ने और डिजिटल इंडिया मिशन से देश का आम आदमी भी डिजिटल दुनिया से जुड़ा है। इसका नतीजा है कि भारत वित्तीय समावेशन के मामले में चीन, जर्मनी और दक्षिण अफ्रीका से आगे निकल गया है।
नोटबंदी के पांच साल पूरे होने पर जारी एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में 1,000 वयस्कों पर मोबाइल एवं इंटरनेट बैंकिंग लेनदेन 74 गुना से ज्यादा बढ़कर 13,615 पहुंच गया, जो 2015 में महज 183 था। बीते सात वर्षों के दौरान न्यूनतम बैलेंस की अनिवार्यता खत्म होने से बैंकों में जमा खाते वाले खाताधारकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं और यहां तक कि कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं के आसपास पहुंच गई हैं। ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सेवाओं की पहुंच बढ़ाने में बैंक मित्रों की अहम भूमिका रही है। ये बैंक मित्र सप्ताह में कम-से-कम पांच दिन प्रतिदिन चार घंटे बैंकिंग सेवाएं मुहैया कराते हैं। इसका असर वित्तीय समावेशन पर भी दिखा है। आज जनधन खाताधारकों में महिलाओं की संख्या 55 प्रतिशत है। इससे जहां गरीब महिलाएं वित्तीय रूप से सशक्त हुई हैं, वहीं कई महिलाएं अपने उद्यमी बनने के सपने को पूरा करने के लिए आगे बढ़ रही हैं।
देशभर में नो-फ्रिल बैंक खातों की संख्या 20 अक्टूबर, 2021 तक 1.46 लाख करोड़ रुपये जमा के साथ 43.7 करोड़ तक पहुंच गई है। इनमें से लगभग दो-तिहाई ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में हैं। बैंक शाखाओं की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। 2015 में प्रति एक लाख व्यस्कों पर 13.6 बैंक शाखाएं थीं, जिनकी संख्या 2020 में बढ़कर 14.7 पहुंच गईं। बैंक शाखाओं की यह संख्या जर्मनी, चीन और दक्षिण अफ्रीका से ज्यादा है। मार्च, 2010 तक ग्रामीण इलाकों में कुल 33,378 बैंक शाखाएं थीं, जिनकी संख्या दिसंबर, 2020 में बढ़कर 55,073 पहुंच गईं। इसी तरह, गांवों में बैंकिंग आउटलेट/बैंक मित्र की संख्या भी 34,174 से बढ़कर 12.4 लाख पहुंच गई। बैंकों में जमा खातों की संख्या प्रति हजार व्यस्क 1,536 से बढ़कर 2,031 हो गई, ऋण खातों की संख्या 154 से 267 हो गई।
एसबीआई समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि शोध से यह भी पता चलता है कि जिन राज्यों में वित्तीय समावेशन/प्रधानमंत्री जनधन योजना खातों की संख्या ज्यादा है, वहां अपराध में गिरावट देखने को मिली है। यह भी देखा गया है कि अधिक बैंक खाते वाले राज्यों में शराब और तंबाकू उत्पादों जैसे नशीले पदार्थों की खपत में महत्वपूर्ण एवं सार्थक गिरावट आई है।
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