दुुनिया में दीपावली जैसा अनूठा पर्व दूसरा नहीं है, यह पर्व अपने घरों को रोशन करने के साथ पड़ोसी के घरों को रोशन करने का भी पर्व है, यह रिश्तों में मिठास एवं सौहार्द का उजाला करता है और उसकी ऊष्मा ठंडी या मद्धिम न पड़े, इसलिये दीपकों की कतारें सजाई जाती है। दीपावली इसलिये भी अनूठा है कि यह पांच पर्वों का संगम पर्व है। इसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीया आदि मनाए जाते हैं। दीपावली की रात्रि को महानिशीथ के नाम से जाना जाता है। इस रात्रि में कई प्रकार के तंत्र-मंत्र से महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर पूरे साल के लिए सुख-समृद्धि-स्वस्थता और धन लाभ की कामना की जाती है। यद्यपि लोक मानस में दीपावली एक धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्व के रूप में अपनी व्यापकता सिद्ध कर चुका है। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि भगवान श्रीराम, भगवान महावीर, स्वामी दयानन्द सरस्वती आदि ऐतिहासिक महापुरुषों के घटना प्रसंगों से इस पर्व की महत्ता जुड़ी है, वे अध्यात्म जगत के शिखर पुरुष थे। इस दृष्टि से दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का अनूठा पर्व है।
दीपावली के मौके पर सभी आमतौर से अपने घरों की साफ-सफाई, साज-सज्जा और उसे संवारने-निखारने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार अगर भीतर चेतना के आँगन पर जमे कर्म के कचरे को बुहारकर साफ किया जाए, उसे संयम से सजाने-संवारने का प्रयास किया जाए और उसमें आत्मा रूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्ज्वलित कर दिया जाए तो मनुष्य शाश्वत सुख, शांति एवं आनंद को प्राप्त हो सकता है। तभी कोरोना रूपी महामारी के घावांे को भर सकेंगे एवं तभी समाज में व्याप्त राक्षस शक्तियों का विनाश कर वास्तविक रूप में रामराज्य की स्थापना कर सकेंगे।
हम हर वर्ष दीपावली एवं उससे जुड़े पांच पर्वों को मनाते हैं। वास्तव में धनतेरस, नरक चतुर्दशी (जिसे छोटी दीवाली भी कहा जाता है) तथा महालक्ष्मी पूजन- इन तीनों पर्वों का मिश्रण है दीपावली। भारतीय पद्धति के अनुसार प्रत्येक आराधना, उपासना व अर्चना में आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक इन तीनों रूपों का समन्वित व्यवहार होता है। इस मान्यतानुसार इस उत्सव में भी सोने, चांदी, सिक्के आदि के रूप में आधिभौतिक लक्ष्मी का आधिदैविक लक्ष्मी से संबंध स्वीकार करके पूजन किया जाता हैं। घरों को दीपमाला आदि से अलंकृत करना इत्यादि कार्य लक्ष्मी के आध्यात्मिक स्वरूप की शोभा को आविर्भूत करने के लिए किए जाते हैं। इस तरह इस उत्सव में उपरोक्त तीनों प्रकार से लक्ष्मी की उपासना हो जाती है।
जब हम ध्यान करते हैं हम सार्वभौमिक आत्मा को अपनी प्रचुरता के लिए धन्यवाद देते हैं। हम और ज्यादा के लिए भी प्रार्थना करतें हैं ताकि हम और ज्यादा सेवा कर सकें। सोना चांदी केवल एक बाहरी प्रतीक है। दौलत हमारे भीतर है। भीतर में बहुत सारा प्रेम, शांति और आनंद है। इससे ज्यादा दौलत आपको और क्या चाहिए? ज्ञान ही वास्तविक धन है। आप का चरित्र, आपकी शांति और आत्म विश्वास आपकी वास्तविक दौलत है। जब आप ईश्वर के साथ जुड़ कर आगे बढ़ते हो तो इससे बढ़कर कोई और दौलत नहीं है। यह शाही विचार तभी आता है जब आप ईश्वर और अनंतता के साथ जुड़ जाते हो। जब लहर यह याद रखती है कि वह समुद्र के साथ जुड़ी हुई है और समुद्र का हिस्सा है तो विशाल शक्ति मिलती है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है दीपावली। उसके अगले दिन होती है गोवर्धन पूजा। यानी पांच पर्वों की श्रृंखला का यह चैथा पर्व है। इस साल ये पूजा 5 नवंबर को होगी। कई क्षेत्रों में इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इसका तात्पर्य है अन्न का समूह। इस पूजा में कई तरह के अन्न भगवान को चढ़ाए जाए हैं। बाद में उन्हें प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा की शुरुआत द्वापर युग से हुई थी। लोग इस दिन आंगन में गाय के गोबर से भगवान गोवर्धन नाथ (श्रीकृष्णजी) की अल्पना बनाकर उनकी पूजा करते हैं। फिर गिरिराज को खुश करने के लिए लोग उन्हें अन्नकूट का भोग लगाते हैं।
पांच दिवसीय त्योहार के पांचवें दिन मनाया जाता है भाई दूज का पर्व। भाई दूज को यम द्वितीया भी कहा जाता है। भाई दूज का पर्व भाई−बहन के रिश्ते पर आधारित पर्व है, जिसे बड़ी श्रद्धा और परस्पर प्रेम के साथ मनाया जाता है। रक्षाबंधन के बाद, भाईदूज ऐसा दूसरा त्योहार है, जो भाई बहन के अगाध प्रेम को समर्पित है। इस दिन विवाहिता बहनें अपने भाई को भोजन के लिए अपने घर पर आमंत्रित करती हैं और गोबर से भाई दूज परिवार का निर्माण कर, उसका पूजन अर्चन कर भाई को प्रेमपूर्वक भोजन कराती हैं। बहन अपने भाई को तिलक लगाकर, उपहार देकर उसकी लम्बी उम्र की कामना करती हैं।
भाई दूज से जुड़ी मान्यता के अनुसार सूर्यदेव की पत्नी छाया की कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देखकर हर्ष−विभोर हो गई। प्रसन्नचित्त हो भाई का स्वागत−सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा। तब बहन ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे। यमराज ‘तथास्तु’ कहकर यमपुरी चले गए। ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं उन्हें तथा उनकी बहन को यम का भय नहीं रहता।
पांच पर्वों के महापर्व दीपावली के साथ सेवा का भाव भी जुड़ा है, कोई भी उत्सव सेवा भावना के बिना अधूरा है। ईश्वर से हमें जो भी मिला है, वह हमें दूसरों के साथ भी बांटना चाहिए क्योंकि जो बाँटना है, वह हमें भी तो कहीं से मिला ही है, और यही सच्चा उत्सव है। आनंद एवं ज्ञान को फैलाना ही चाहिए और ये तभी हो सकता है, जब लोग ज्ञान में साथ आएँ एवं ज्ञान को बांटे। दिवाली का अर्थ है वर्तमान क्षण में रहना, अतः भूतकाल के पश्चाताप और भविष्य की चिंताओं को छोड़ कर इस वर्तमान क्षण में रहें। यही समय है कि हम साल भर की आपसी कलह और नकारात्मकताओं को भूल जाएँ। यही समय है कि जो ज्ञान हमने प्राप्त किया है उस पर प्रकाश डाला जाए और एक नई शुरुआत की जाए। जब सच्चे ज्ञान का उदय होता है, तो उत्सव को और भी बल मिलता है।
इस वर्ष दीपावली का पर्व मनाते हुए हम अधिक प्रसन्न एवं उत्साहित है, क्योंकि सदियों बाद हमारे आराध्य भगवान श्रीराम का मन्दिर अयोध्या में बन रहा है। यानी जिस तरह चैदह वर्षों के वनवास के बाद भारतीय लोकमानस के महत्तम नायक श्रीराम अयोध्या लौटने पर दीपावली पर्व मनाया गया, उसी तरह सदियों तक जन-जन की आस्थाकेन्द्र से दूर रहने के बाद श्रीराम अब मन्दिर रूप में स्थापित हो रहे हैं, तो इस वर्ष दीपावली के विशेष मायने हैं। श्रीराम का अयोध्या में बन रहा मन्दिर इस रूप में होगा कि जन-जन के संकट दूर होंगे, आशंकाओं एवं भयों से मुक्ति मिलेगी, धन-धान्य, शांति एवं समृद्धि से परिपूर्ण जीवन की स्थापना हो सकेगी। श्रीराम वंचितों के पक्षधर है और प्रकृति की लय के साथ एकनिष्ठ है। पर्यावरण से जुड़ी विकराल समस्याओं पर विराम लगेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से इस वर्ष दीपावली का पर्व वास्तविक एवं सार्थक होने जा रहा है। हर हिन्दू एवं आस्थाशील व्यक्ति श्रीराम के अखंड ज्योति प्रकट करने वाले संदेश को अपने भीतर स्थापित करने का प्रयास करें, तो संपूर्ण विश्व में निरोगिता, अमन, अयुद्ध, शांति, सुशासन और मैत्री की स्थापना करने में कोई कठिनाई नहीं हो सकेगी तथा सर्वत्र खुशहाली देखी जा सकेगी और वैयक्तिक जीवन को प्रसन्नता और आनंद के साथ बीताया जा सकेगा।