उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने सधे हुए कदमों से आगे बढ़ते हुए अपनी चुनावी गोटियां बिछाना शुरू कर दी हैं। प्रियंका वाड्रा लगातार दौड़-भाग कर रही हैं। उन्नाव, हाथरस हो या फिर लखीमपुर कांड जहां भी उन्हें योगी सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा नजर आता है वह प्रियंका पीड़ितों को मलहम लगाने के बहाने अपनी सियासत चमकाने पहुंच जाती हैं। माथे पर तिलक, सिर पर पल्लू,सार्वजनिक रूप से मंत्रोचारण के द्वारा अपनी हिन्दुत्व वाली छवि चमकाने से लेकर जनता से संवाद में भी प्रियंका ने महारथ हासिल कर रखी है। इस बार कांग्रेस महासचिव प्रियंका की नजर मोदी-योगी सरकार से नाराज चल रहे किसानों और प्रदेश की उस आधी आबादी के वोटों पर है, जिनका बढ़ती मंहगाई, रसोई गैस और पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों से बजट बिगड़ गया है। कोरोना काल में तमाम लोगों को नौकरी से भी हाथ छोना पड़ा है,उनके लिए योगी सरकार रोजगार के नए अवसर नहीं तलाश पा रही है, जिसका भी खामियाजा घर-परिवार चलाने वाली महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। इसके साथ-साथ महिला उत्पीड़न की घटनाओं ने भी आधी आबादी को परेशान कर रखा है। कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी प्रियंका वाड्रा की महिलाओं को 40 फीसदी टिकट के साथ ही पार्टी का स्लोगन लड़की हूॅ, लड़ सकती हॅू’ भी जारी कर दिया है। कुछ ऐसा ही स्लोगन 2017 के विधान सभा चुनाव में भी देखने को मिला था,तब सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़े थे। कांग्रेस एवं सपा ने राहुल गांधी और अखिलेश यादव को ‘यूपी के लड़के’ कहकर चुनाव जीतने की जुगत बनाई थी,जो परवान नहीं चढ़ सकी थी।
पांच साल बाद अब प्रियंका वाड्रा 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देने की घोषणा के बाद उन्हें लुभाने के लिए ‘लड़की हॅू,लड़ सकती हॅू’ से यूपी फतह करने का सपना देख रही हैं तो सियासी पंडित अब प्रियंका के महिला दांव का राजनीतिक तापमान नापने में जुट गए हैं। प्रियंका ने 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देने की बात कही है,इस हिसाब से कांग्रेस करीब 160 विधान सभा सीटों पर महिला नेत्रियों को चुनाव लड़ाएंगी, परंतु क्या कांग्रेस के पास इतनी महिला नेत्रियां मौजूद हैं जो चुनाव लड़ ही नहीं सकें, बल्कि जीत भी सके। यह स्थिति 15 नवंबर के बाद से साफ होने लगेगी, क्योंकि प्रियंका ने महिला प्रत्याशियों से कहा है कि वह 15 नवंबर के बाद आवेदन कर सकती हैं। बात यहीं तक सीमित नहीं है,यदि प्रियंका ने 40 फीसदी महिलाओं को टिकट दे भी दिया तो उनको लड़ाने और जिताने की जिम्मेदारी वह किसको कंधों पर डालेंगी। दरअसल,प्रियंका जीत के बड़े-बड़े दावे तो कर रही हैं,लेकिन सच्चाई यह भी है कि यूपी में कांग्रेस संगठनात्मक रूप से काफी कमजोर स्थिति में है। कांग्रेस ने पिछले तीस सालों में नेताओं की नई पौध तैयार नहीं की है और पुराने नेता अब सियासी रूप से थक चुके हैं। कांग्रेस के बुजुर्ग नेता घर में बैठकर बयानबाजी करके अपना वजूद बचाने में लगे हैं। आज स्थिति यह है कि कांग्रेस में अजय लल्लू के अलावा कोई चेहरा ही नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस के बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं या फिर नाराज होकर घरों में बैठे हैं।
सवाल यह भी उठ रहा है कि प्रियंका स्वयं चुनाव लड़ेगी या नहीं, इसके बारे में वह फैसला क्यों नहीं ले पा रही हैं। पूछा यह भी जा रहा है कि प्रियंका चुनाव नहीं लड़ेंगी तो कांग्रेस का मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा। प्रियंका 40 फीसदी महिलाओं को टिकट तो दे रही हैं,लेकिन जब उनसे यह पूछा जाता है कि क्या कांग्रेस सीएम के चेहरे के रूप में भी किसी महिला को आगे करेंगी तो वह बात टाल जाती हैं।खैर, यह तय है कि यदि कांग्रेस 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देगी तो इस बार चुनावी दंगल में महिला प्रत्याशी बढ़ी संख्या में ताल ठोंकते नजर आएंगी,लेकिन इससे विधान सभा में महिलाओं का ग्राफ भी बढ़ पाएगा,यह नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा,इस समय विधान सभा में महिला विधायकों की भागीदारी 11 प्रतिशत है। कांग्रेस के महिला दांव से विधान सभा की तस्वीर कितना बदलेगी, इसको लेकर सियासी पंडितों का अलग-अलग नजरिए हैं। इन लोगों का मानना है कि प्रियंका के इस दांव से महिलाओं के अगुआई की बहस जरूर तेज होगी, लेकिन सही स्थिति नतीजे आने के बाद ही देखने को मिलेगी।
गौरतलब हो, यूपी के कुल 14.61 करोड़ वोटरों में 6.70 करोड़ वोटर महिलाएं हैं। कांग्रेस का दांव इन्हीं पर है। 2019 के लोकसभा चुनाव का ट्रेंड देखें तो यूपी में एक-तिहाई से ज्यादा जिलों में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से कहीं ज्यादा था। खासतौर पर बुंदेलखंड, पश्चिम और पूर्वांचल के कई जिलों में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में वोट देने में ज्यादा भागीदारी निभाई। इसका सबसे अधिक फायदा बीजेपी को हुआ था। इसके बावजूद बीजेपी सहित तमाम राजनीतिक दलों से टिकट पाने में महिलाएं पीछे ही रही हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 46, सपा ने 34, बसपा ने 21 और कांग्रेस ने 12 महिलाओं को टिकट दिए थे। इनमें 41 महिलाएं विधायक बन पाईं थीं। इनमें से सिर्फ चार को ही सरकार में मंत्री बनाया गया और इस वक्त एक भी महिला कैबिनेट मंत्री नहीं है। कांग्रेस के पास भी दो महिला विधायक हैं, जिनमें एक भाजपा के संपर्क में हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन केंद्र के पूर्व निदेशक प्रो.राकेश चंद्रा कहते हैं कि जब तक महिलाओं की निर्णयों और उच्च पदों पर भागीदारी नहीं बढ़ेगी, तब तक उनका सशक्तीकरण नहीं किया जा सकता। कांग्रेस का फैसला अच्छा जरूर है पर यूपी में कांग्रेस की राजनैतिक स्थिति को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि इसका महिलाओं की स्थिति पर असर कितना पड़ेगा। यह जरूर है कि अन्य राजनीतिक दलों पर इस फैसले का दबाव जरूर पड़ेगा। वहीं पूर्व कांग्रेसी नेत्री और अब भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस की नियत पर सवाल खड़ा करते हुए प्रियंका को आईना दिखाते हुए कह रही हैं कि यदि कांग्रेस मेें महिलाओं का सम्मान होता तो हम जैसी तमाम नेत्रियों को बाहर का रास्ता नहीं देखना पड़ता।आधी जिंदगी कांग्रेस की सेवा में समर्पित रहने के बाद मैं पार्टी नहीं छोड़ती।
बहरहाल,कांग्रेस के आधी आबादी वाले दांव से सपा-बसपा और भाजपा की बेचौनी बढ़ सकती है। भाजपा को खासकर महिलाओं के मुद्दे पर ज्यादा ध्यान देना होगा,उसे बार-बार महिलाओं को यह बताना होगा कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने निश्चित ही बड़ा दांव चला हो,लेकिन बीजेपी ने भी महिलाओं के लिए कम काम नहीं किया है, जिसमें प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री आवास योजना,उज्जवला योजना, शौचालय से लेकर अन्य कई योजनाएं शामिल हैं जो महिलाओं को समर्पित हैैैं।
बात प्रियंका वाड्रा की ही कि जाए तो ऐसा लगता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी संभालने वाली कांग्रेस महासचिव प्रियंका ने हर उस मुद्दे को थामने का प्रयास किया है, जिसमें उन्हें जरा भी मोदी-योगी सरकार को घेरने की गुंजाइष नजर आई। कोरोना काल में वह सोषल मीडिया के माध्यम से बीजेपी पर हमलावर रहीं तो अब सड़क पर सियासी जंग लड़ रही हैं। प्रियंका की अन्य विपक्षी दलों की तुलना में सक्रियता ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भी हौसला अफजाई की है। खास तौर पर महिला उत्पीड़न से जुड़े उन्नाव और हाथरस कांड में ज्यादा तीखे रूप में योगी सरकार पर हमला करती नजर आईं थीं। हालांकि, प्रियंका ने यूपी की महिलाओं को साधने के लिए बड़ा दांव चल दिया है, लेकिन इसी से काम चलने वाला नहीं है। कुछ मुद्दों के चयन को लेकर पार्टी के रणनीतिकारों का असमंजस भी साफ-साफ देखने को मिल रहा है। वैसे यहां यह बताना भी जरूरी है कि आधी आबादी की ताकत को समझते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस दिशा में काफी पहले से काम कर रहे हैं। मसलन, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजना में 80 फीसदी आवासों का स्वामित्व महिलाओं को दिया गया है। शौचालय को इज्जत घर नाम देने के पीछे सोच महिला सुरक्षा की बताई। उज्जवला योजना में मुफ्त रसोई गैस कनेक्षन महिलाओं को उपहार है। इधर, योगी ने बैकिंग सखी बनाकर युवतियों को स्वरोजगार दिया। स्वयं सहायता समूहों से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने की दावा सरकार करती है।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका के 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को दिए जाने वाली घोषणा पर विभिन्न दलों की अलग-अलग प्रतिक्रिया आई है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह कहते हैं कि महिलाएं भाजपा की प्राथमिकता पर हैं। पार्टी ने पहले ही सबसे ज्यादा टिकट महिलाओं को दिए थे। पंचायत चुनावों में हमने उन्हें सबसे ज्यादा सम्मान दिया। इस बार भी हमारा संसदीय बोर्ड महिलाओं को पूरा सम्मान देगा। भाजपा के महामंत्री जेपीएस राठौर कहते हैं कि भाजपा के पास ही सबसे ज्यादा महिला प्रतिनिधि हैं। इनमें महिला सांसद, विधायक, एमएलसी और जिला पंचायत अध्यक्ष बीजेपी ने ही जिताए हैं। वहीं, सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि सपा सरकार ने महिलाओं को फोकस करके ही कन्या विद्या धन योजना शुरू की। महिलाओं की सुरक्षा के लिए 1090 हेल्पलाइन शुरू की। महिलाओं के सम्मान के लिए अनेक कदम उठाए गए। टिकट में भी सभी वर्गों की भागीदारी होगी। बसपा के प्रवक्ता डॉ0 एमएच खान कहते हैं कि हमारी तो मुखिया ही महिला हैं। उनसे ज्यादा महिलाओं के लिए कोई फिक्रमंद नहीं। हम उन्हें हिस्सेदारी भी सबसे ज्यादा देंगे।